MERI KALAM SE

वो लम्हे बन गये थे जीवन की त्रासदी 
जब खुद भंवर को हमने पतवार सौंप दी 
     तेरे लिये मिटा दी हमने ये जिन्दगी 
     तू भी तो दे मुझे थोड़ी सी अब ख़ुशी 
  जब भी दिखी सँवरती मेरी ये जिन्दगी 
  कोई हादसा भयंकर हो जाता है तभी 
     उसको    उखाड़ने में आंधी     समर्थ    थी 
     वो झुक गया था मार अब आँधी की व्यर्थ थी
मां की सेवा में ही उसने उम्र बसर की 
ये माँ की दुआ थी कि बददुआ बे असर थी 
   मैंने कदम बढ़ा के की उससे दोस्ती 
   वो भी भुला रहा है मुझसे अपनी दुश्मनी 
वो जा रहा जहां से मैं कुछ ना कर सकी 
कुदरत के आगे देखी मैंने अपनी बेबसी 
                     शालिनी शर्मा 

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