छन्द
टूटे फूटे शब्दों को पेश कर रही हूँ मै
भाव बन जाये गर आपकी जो ताल हो
ऐसी तालियों का साथ यहां मुझे चाहिए
गुंजायमान जिससे सारा पंडाल हो
जंगल का राज तो है अब हर राज्य में
कैसे इस देश में शांति बहाल हो
घर में सुरक्षित नही है जब आदमी
सड़को पे कैसे आदमी की सम्भाल हो
चोर और सिपाही लूटा मिलजुल खाते हैं
चोरी का काहें को फिर किसी को मलाल हो
चोरी और डकैती से ना अच्छा व्यापार कोई
क्यों ना खाये कोई जब मलाई वाला माल हो
गूंगे कहेंगे क्या और बहरे सुनेंगे क्या
पूरे वादे ना हो तो फिर काहे को बबाल हो
रात का अँधेरा हो तो दिया कोई दिखा भी दे
क्या करे जो आत्मा के अन्धे का सवाल हो
महंगाई की मार ने कमर तोड़ डाली है
नैतिकता क्या ना जब रोटी हो ना दाल हो
गर्व से घोटाले करो देश को हजम करो
झोपड़ी में रहने वाला चाहे बेहाल हो
सीधे सादे सच्चे लोगो से जो तुम्हे मिलने का
मन से निकाल दो अगर ये ख्याल हो
ऐसी चीज ढूंढ़ते हो राजनीति में क्यों भइया
जिसका यहां पे सर्वथा अकाल हो
शालिनी शर्मा
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