badra

बूंद  बूंद  छलका  है  पानी
मन प्यासा नल का है पानी
              गर्मी  की  सौगात  है  पानी
              भाता अब दिन रात है पानी
बरखा ले जब आती  पानी
प्यासी  भू  पी जाती  पानी
               माली ने  जब  दिया  है  पानी
               हंसी है कलियां  पिया है पानी

                                 शालिनी शर्मा

ये बदरा घिर घिर आते हैं 
गरज कर शोर मचाते हैं
बूंद टप टप टपकाते हैं 
डालियों को ये हिलाते हैं 
फूल होले मुस्काते हैं 
वृक्ष चिड़ियों  को छिपाते हैं 
कृषको के मन को भाते हैं 
खेतों की प्यास बुझाते हैं 
गर्मी को दूर भगाते हैं 
समा खुशनुमा बनाते हैं 
आया सावन कह जाते हैं 
झूले डालो समझाते हैं 
                      शालिनी शर्मा 



 गुजरने वाली है  शब पर  वो घर नही आया
कहा था आऊंगा  वापस मगर  नही  आया

सम्भालो आज ही इसको ना खाली जाने दो
गया  जो  वक्त  कभी  लौटकर  नही  आया

बहेगा  कतरा  कतरा  बन के तेरी आँखों से
ये  दर्द   तेरा  किसी  को नजर  नही  आया

जुबां   खामोश   रही   जुल्म  तेरे  सहते  हैं
दगायें  देने  का  हमको  हुनर  नही   आया

वो जा रहा है जहां से जो कम उमर है बहुत
दुआएें दी थी बहुत पर असर नही  आया

जिसे भी देखिये वो गुम है अपने  झंझट में
बिमारी  में  भी  वो  लेने  खबर  नही आया
                                शालिनी शर्मा

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