chhand

कितने किसानो ने करी है खुदखुशी यँहा 
और कितनो ने  फांसी खुद को लगाई है 
कितने किसानो की फसल बर्बाद हुई 
आंधी ,ओले ,बारिश की विपदा जब आयी है 
नेता बोले हमसे ना इसका हिसाब माँगो 
 रकम  मुआवजे की बस भिजवाई  है 
विपदा को झेलना ना काम सरकार का 
अपनी मुसीबत हमने भी खुद उठाई है 
गालिओं का बोझ और विपक्षियों के हमले
मीडिया के ताने पर फांसी ना लगायी है



                            व्यंग 
जनता के सपनो को धूल में मिला के वो 
अपने सुनहरे सपनो को सजाते हैं 
जिसने पहनाया ताज,गद्दी जिसने सौंप दी 
उसी जनता को वो डराते ,धमकाते हैं 
मुश्किल नहीं है कोई गणित की गणना 
जितना कठिन किसी नेता जी को पढ़ना 
अपना चरित्र रोज ऐसे ये बदलते 
जैसे सड़को पे नित नये वाहन चलते 
                               

                                           
                                         

Comments