मैं हूं पेंशन की फाइल इत उत दोड़ लगाती हूं
ले देकर जैसे तैसे कुछ आगे बढ़ पाती हूं
इस बाबू ते पास कभी दूजे तक जाती हूं
फिर सालो तक एक मेज पर मैं जम जाती हूं
कभी कभी जम्हायी लेकर बाबू मुझे उठाता है
और देख के क्षण भर तो वापस रख जाता है
तीन साल के बाद आज पूरी हो जाऊंगी
कल से मिस्टर गिरधारी जी को मैं मिल पाउंगी
पर पता चला कि एक नयी फाइल फिर आयेगी
जो गिरधारी की पत्नि को पेंशन दिलवायेगी
क्योंकि कल गिरधारी जी इस जग को छोड़ गये
और एक नयी फाइल का चक्कर फिर से जोड़ गये
शालिनी शर्मा
ले देकर जैसे तैसे कुछ आगे बढ़ पाती हूं
इस बाबू ते पास कभी दूजे तक जाती हूं
फिर सालो तक एक मेज पर मैं जम जाती हूं
कभी कभी जम्हायी लेकर बाबू मुझे उठाता है
और देख के क्षण भर तो वापस रख जाता है
तीन साल के बाद आज पूरी हो जाऊंगी
कल से मिस्टर गिरधारी जी को मैं मिल पाउंगी
पर पता चला कि एक नयी फाइल फिर आयेगी
जो गिरधारी की पत्नि को पेंशन दिलवायेगी
क्योंकि कल गिरधारी जी इस जग को छोड़ गये
और एक नयी फाइल का चक्कर फिर से जोड़ गये
शालिनी शर्मा
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