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माँ है आशिर्वाद की मूरत
और पावन मन्दिर है माँ
जग में सबसे सुन्दर मूरत
माँ से बढ़ कर ओर कहाँ
माँ आँचल है स्नेह ,त्याग का
लोरी की सरगम है माँ
माँ है पावन तिलक शीश का
विकट समय हमदम है माँ
नमस्कार दोस्तों
मुझे मेरी माँ ,मेरी एक कविता सी लगती है ,वो मुझे मीठे फलों से लदा वृक्ष सी लगती है ,वो पंछियों को उड़ने की आजादी देता आसमान सी लगती है ,वो तूफानी लहरों को आगे बढ़ने से रोकते तटो सी लगती है ,वो शीतल पवन के झोंके सी लगती है ,माँ मुझे कठोर पर्वत सी लगती है। आपको आपकी माँ कैसी लगती है कृपया जरूर बतायें।
मैं खुशनसीब हूँ जो मुझको मिली तू ए मेरी माँ
आ छू लूं तेरे पैर तू ही मन्दिर भी है ,मस्जिद भी है यहाँ
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