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पतझड़
आंधी से शिकायत करे पत्ते चनारो के
पतझड़ ही बस पतझड़ है ना दर्शन बहारो के
मौसम उदास है क्यों कलियों के नयन नम हैं
तितली ने पूछा भँवरो से फूलो को क्या गम है
गुलशन में बदले से मिजाज हैं नजारों के
माली की बेरुखी से उजड़ा उजड़ा है चमन
ना जाने क्यों कम हो गया वो प्यार ,अपनापन
ना जल से सींचा ना दिये छींटे फव्वारों के
पतझड़ के बाद नयी ,हरी पत्ती निकलती है
डाली हरी चूनर को ओढ़ जब मचलती है
लगता सँवारे केश देवदास पारो के
पतझड़ गया आया बसन्त ,कलियाँ खिल गयी
खुशबू लिये हवा चली तो डाली हिल गयी
जैसे बंधे घुँघरू बजे लय में बंजारो के
शालिनी शर्मा
आंधी से शिकायत करे पत्ते चनारो के
पतझड़ ही बस पतझड़ है ना दर्शन बहारो के
मौसम उदास है क्यों कलियों के नयन नम हैं
तितली ने पूछा भँवरो से फूलो को क्या गम है
गुलशन में बदले से मिजाज हैं नजारों के
माली की बेरुखी से उजड़ा उजड़ा है चमन
ना जाने क्यों कम हो गया वो प्यार ,अपनापन
ना जल से सींचा ना दिये छींटे फव्वारों के
पतझड़ के बाद नयी ,हरी पत्ती निकलती है
डाली हरी चूनर को ओढ़ जब मचलती है
लगता सँवारे केश देवदास पारो के
पतझड़ गया आया बसन्त ,कलियाँ खिल गयी
खुशबू लिये हवा चली तो डाली हिल गयी
जैसे बंधे घुँघरू बजे लय में बंजारो के
शालिनी शर्मा
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