चीखों में कितनी वेदना है कोई तो सुनो
मुस्लिम भी जले हिंदु भी बस अस्थियां चुनो
हँसता हुआ पल में शहर शमशान कर दिया
नफरत की साजिशो के क्रूर जाल ना बुनो
ख्वाइश है आपकी मोहब्बत हमें मिले
गीतों के गुलिस्तां में फूल मेरे भी खिले
मेरी कलम है बेअसर बेनाम तबतलक
जब तक ना लब सराहना में आपके हिले
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