गीतिका शालिनी शर्मा

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HINDI POEMS

नफरत वो हमसे अब कुछ करने लगे हैं शायद
कुछ गैर लोगो पे यकीं करने लगे हैं शायद

कैसे यकीं दिलाये अपनी बेगुनाही का
वो फैसला बिन पैरवी करने लगे हैं शायद

महफिल में हंस रहे हैं बतिया रहे हैं सबसे
बस एक हमसे बेरूखी करने लगे हैं शायद

अब हम नही रखते हिसाब अपने जख्मो का
हम माफ उनकी हर खता करने लगे है शायद 

वादा किया था हमसे मय्यत में आने का,पर
वादा खिलाफी भी वो करने लगे है शायद
                                    शालिनी शर्मा                                                               

कब सूखे पेड़ चिड़ियों को पनाह देते हैं
सच्ची गवाही कब यहां गवाह देते हैं

उजला लिबास है मगर कालिख जमीर पर
हंसते हैं वो मजलूम जो कराह देते हैं

वो देश से फरार ,गुनहगार बैंक के         
उनके गबन की किस्ते हम हर माह देते हैं

उल्टी कहावते हैं कुछ सुधार लीजिये
अब जख्म ना ही दर्द ना ही आह देते हैं

मुल्जिम उठा के लाभ भीड़ भाग जाते है
और जान सरे राह बेगुनाह देते हैं
                      शालिनी शर्मा
राह के पत्थर हटा कर उन्नति की राह बढ़
पढ़ना है तुझको अगर आँखो के आंसू,दर्द पढ़
मिल गया मानव का जीवन तू ना इसको व्यर्थ कर
पर्वतो को पार करके शीर्ष प्रगति राह चढ़
                                  शालिनी शर्मा
 भोर की उजली किरण नव चेतना फिर लायी है
पक्षियों की चहचहाहट में नयी तरूणायी है
पत्तियों पर,घास पर चांदी सी बिखरी ओस की
भोर की किरणें नया उल्लास लेकर आयी है
                           शालिनी शर्मा

हार्दिक आभार पढ़ने के लिये अगर रचना पसन्द आये तो कृपया कमेन्ट करके हौसला अफजाई कीजियेगा
हर रात के बाद सुबह होनी जरूर है
मिटना है सबको किस बात का गुरूर है

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