नयी उमंगे नयी तरंगे लाते हैं त्योहार
नीरस जीवन में लाते हैं खुश्बू संग बहार
आओ रंगो में भर दे बस प्यार,खुशी,सदभाव
होली में मतभेद भुला कर गले मिलेगें यार
शालिनी शर्मा
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मस्ती का त्योहार है ये गम कूड़े में ड़ाल
खोज रहे हैं साजन तुझको आगे कर दे गाल
लाल,गुलाबी,नीला,पीला,हरा और केसरिया
होली सूनी रंग अबीर बिन सूनी बिना गुलाल
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
होली पर कींचड़,गुब्बारे का प्रयोग ना करे
जिन्दगी में रंग सिर्फ प्यार का सदभावना भरे
शालिनी शर्मा
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सिस्टम नही सुधरेगा आप कुछ भी कीजिये
इसको सुधारने की ना अब सीख दीजिये
मछली बड़ी सदा ही खाती छोटी मछली को
अपने से कम का नोच नोच खून पीजिये
कुछ ले रहे झपकी और कुछ है गहरी नींद में
जिसका हो जैसा मन यहाँ बस मौज लीजिये
और हर बुराई पर्दे से बस ढ़ाप दीजिये
सच को यहां सच कहने वाले कितने बचे हैं
जैसा है ठीक चल रहा, मत आप खीजिये
शालिनी शर्मा
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पैसे का हकदार जमाना होता है
दोलत ही अनमोल खजाना होता है।
पानी की बोछार से उनको ठंड़ा कर
शोलो का तो काम जलाना होता है।
रिमझिम बूंदे टपक रही ड़ाली डाली
सावन का अन्दाज सुहाना होता है।
मयखाने में या महबूब की गलियो में
आशिक का तो यही ठिकाना होता है।
गली,मोहल्ले पास पड़ोसी अन्जाने
एक दूजे के घर कब जाना होता है।
कुछ दिन की महमान है बेटी घर मेरे
चिड़िया को एक रोज उडा़ना होता है।
शालिनी शर्मा
रस्ता नही है कोई जाऊं किधर को मैं
अपना है, कहती आयी उस गैर घर को मैं
सदियाँ गुजर गयी अपमान सहते सहते
पर अब भी पी रही हूँ कड़वे जहर को मैं
आँधी भी तेज थी और धूंप भी उमस भी
कैसे बचा के लाती सूखे श़जर को मैं
उसने दबाना चाहा फन पैरो से कुचल कर
कम करने में लगी हूँ उसके असर को मैं
अब मोम की नही हूँ पत्थर की हो रही हूँ
घर से निकल रही हूँ शब को दोपहर को मैं
शालिनी शर्मा
बेतकल्लुफ हुए ना कभी हमसे तुम
गर हो कुछ चुलबुले भी तो क्या फायदा
चाँद गुम बदलियों की कतारो तले
शब में शोखी घुले भी तो क्या फायदा
शालिनी शर्मा
- आसमान में उड़ते पंछी नयी सीख दे जाते हैं
- पंख खोल दो बेटी के क्यों पिंजरे में ड़लवाते हैं
- बड़ा वृक्ष बरगद का जिसकी घनी ड़ालियां ,कहता है
- जितना ज्यादा सीचो पोधे उतने ही बढ़ जाते हैं
इन बच्चो की हंसी अनमोल है
कब सूखे पेड़ चिड़ियों को पनाह देते हैं
सच्ची गवाही कब यहां गवाह देते हैं
उजला लिबास है मगर कालिख जमीर पर
हंसते हैं वो मजलूम जो कराह देते हैं
वो देश से फरार ,गुनहगार बैंक के
उनके गबन की किस्ते हम हर माह देते हैं
उल्टी कहावते हैं कुछ सुधार लीजिये
अब जख्म ना ही दर्द ना ही आह देते हैं
मुल्जिम उठा के लाभ भीड़ भाग जाते है
और जान सरे राह बेगुनाह देते हैं
शालिनी शर्मा
नमस्कार दोस्तो
आपने मुझे पढ़ा हार्दिक आभार सुझाव अपेक्षित है कलम को और प्रभावशाली ढंग से पेश करने के लिये मुझे आपके सुझावो की सदैव कामना है ।आभार सहित धन्यवाद
और क्या चाहिये हमसफर के सिवा
प्यार से देखती एक नजर के सिवा
लफ्जो को समेटे किताब बन गयी
मैं कुछ भी नही हूँ खबर के सिवा
सच कहने की, की मैने हिम्मत सदा
मुझमें कुछ भी नही इस हुनर के सिवा
मुझको मंजिल कभी मिली ही नही
क्या कहूँ खुद को अब ड़गर के सिवा
कश्तियां ऊंची लहरो से अन्जान हैं
कोन कश्ती ड़ुबाये लहर के सिवा
तेज गर्मी से जब काया जलने लगे
तब सहारा नही है श़जर के सिवा
वो मुड़ के कभी ना आया कभी
एेसा होता कहाँ है नगर के सिवा
आंसमा के तले जो सोते रहे
उनको क्या चाहिये घर के सिवा
जिल्लत से जीने से मरना भला
क्या खाया होगा जहर के सिवा
उनको उड़ना है वो क्या चाहेगीं
खुले आंसमा और पर के सिवा
शालिनी शर्मा🙏🙏🙏
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