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छोड़ के आप जाने लगे
फिर से हमें रूलाने लगे
हवा तेज है पानी है कम
आग फिर भी बुझाने लगे
भुला तो दिया दिल से उन्हे
पर भूलने में जमाने लगे
साथी पुराने अचानक मिले
किस्से पुराने सुनाने लगे
पूछा उनके गम का सबब
नयन जल वो छुपाने लगे
बाहर की बिगड़ी देखी हवा
हम अपना घर बचाने लगे
लगने लगे वो सच्चे हमें
हमसे नजर मिलाने लगे
शालिनी शर्मा
चारो दिशि सूखा पड़ा, खग,मृग हुए उदास
हे मेघा बरसो तनिक, बुझे सभी की प्यास
गर्मी से बेहाल सब , विचलित मन घबराय
पानी पी कर भी यहां ,प्यास न बुझने पाय
मन हर्षित होने लगा , देख घटा आकाश
बरसी बूंदे मिट रही , प्यासी भू की प्यास
कलियां भी हंसने लगी , पक्षी ताल नहाये
प्राणी जंगल के सभी जल से प्यास बुझायें
शालिनी शर्मा
शम्मा बन के रात भर जलते रहे
लेखनी में गम सभी ढ़लते रहे
बस कलम को दर्द का अहसास था
शब्द शायरी में बदलते रहे
शालिनी शर्मा0टट
आंगन,द्वार बुहार रही घर आगत के पग
धोवत है
हार श्रंगार किये ,नैनन में कजरा ड़ार निहार रही
और धीर अधीर हुई जावत ना जागत है ना सोवत है
शालिनी शर्मा
नजरे इनायते,अदाये क्या हुई
तू बेवफा,बता बफ़ाये क्या हुई
दी तुमने जो सजा मन्जूर है हमें
ये तो बताओ पर खताएं क्या हुई
बन बदली बरसती ,जो बूंद बालो से
वो काली जुल्फो की घटाये क्या हुई
मुमकिन नही दिल चीर कर दिखाना
कैसे बताये क्यूंकर जफा़एं क्या हुई
तुमने सुना दिया था फैसला अपना
जो मिलनी थी हमें सजाएं क्या हुई
गम में सिमट गयी जिन्दगी अपनी
उनसे मोहब्बत की खताएं क्या हुई
लत है उन्हे चटकारे लेने की पूछते
तकरार की कहानी सुनाएं क्या हुई
शालिनी शर्मा
बेटी की हो गई विदाई
घर में पसरी है तन्हाई
दूर इतनी है एक बहन
राखी पर भी नही आयी
जन्नत नही चाहिये उसे
काफी है माँ की परछाई
जख्म बोली के है गहरे
काम कैसे करेगी दवाई
मनमुटाव ने है बढ़ा दी
सब रिश्तो में गहरी खाई
मजबूत दीवार देख घर में
माँ की आँख भर आयी
साहूकार ने छीन ली नींद
कैसे चुकाये कर्ज की पाई
शालिनी शर्मा
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