समुन्दर

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HINDI POEMS
किरणो को देख सागर छूने उछल गया
मस्ती में मस्त लहरो का दिल मचल गया

पंछी करे कोलाहल कोयल भी गा रही
हम सो रहे ,सूरज कब का निकल गया

जब भी घिरा अन्धेरा गमगीन हम हुए
उम्मीद का दिया पर फिर से जल गया

गिरता रहा वो ठोकर खा के हर बार
कोई उसे सहारा देकर निकल गया

देखा उन्हे तो मेरी भर आयी आँख फिर
लगता है जख्म कोई फिर से छिल गया

स्वर्ग भी यही हैं और नर्क भी यहीं पर
जब से समझ में आया वो सम्भल गया
                          शालिनी शर्मा

तूफान जिन्दगी में जब आया तो डर लगा
ले जाके किनारे पे डुबाया तो डर लगा

जाने क्यों जिन्दगी थम सी गयी उसकी
उसको कभी हंसता हुआ पाया तो डर लगा

मेरी नजर से खुद को देखा नही उसने
वो जब कभी पास आया तो डर लगा

हमदर्दियां उसकी कभी आदत नही रही
जब भी कभी मरहम वो लाया तो डर लगा

आवाज देके उसको चलने को कहा साथ
वो साथ नही फिर भी आया तो डर लगा

जिसको सदा अपना ही हम मानते रहे
निकला वो जब पराया तो डर लगा

कोई मोल नही है किसी की नजर में मेरा
वो ऊँची कीमत देने आया तो डर लगा
                           शालिनी शर्मा


जीवनामृत
दिन निकला सूरज उग आया हलचल है सब ओर
नयी रश्मियों का स्वागत, है नव प्रभात,नव भोर
खुले द्वार,झाडू बुहार,सब व्यस्त हुए दिनचर्या में
पंछी नहाते,गाती कोयल संग नाचते मोर
                                        शालिनी शर्मा



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