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हिन्दी कविता
रोते रहें ये हाल हमारा कर गये
बेघर किया हमें बेसहारा कर गये
नदिया के बीच मांझी छोड़ चले हैं
मंझदार बीच हम,वो किनारा कर गये
बदली में चाँद है दीदार की है हसरत
वो देखने को आगे सितारा कर गये
रात अमावस उन्हे भाती है इस कदर
सब दिये बुझा के अन्धियारा कर गये
बाकी नही बचा, कहने का हक उनसे
रिश्ता ये खत्म अब जब सारा कर गये
सुन कर भी अनसुना वो करने लगे हैं
औकात हमारी क्या वो यारा कर गये
अच्छी हो या बुरी बात मान जाते हैं
जब साथ रहना है तो गुजारा कर गये
क्यों एक फूल भी कली भी खुश नही
कैसा वो गुलशनो का नजारा कर गये
शालिनी शर्मा
क्या उसके कह देने भर से हम कातिल बन जायेगें
झूठे इल्जामों को दामन पर चुप रह कर सहजायेगें
कितना शातिर है वो झूठी एक कहानी बना गया
जब तक दामन साफ ना होगा इन्साफ मांगने आयेगें
शालिनी शर्मा
कहां देश ये जा रहा फैल रहे अपराध
अपराधी बेखोफ हैं जेल में निरपराध
जेल में निरपराध पुलिस पैसे की मारी
सच से आँखे मूंद करे इन्क्वारी सारी
सांठ गांठ में व्यस्त है चोर पुलिस के संग
काला हो जाता वाइट ये केस के बदले रंग
शालिनी शर्मा
नफरत की चिंगारियां भड़क रही हर और
धैर्य ,दया सब लुप्त हैं कैसा आया दौर
कैसा आया दौर नही मानवता दिखती
बस स्वार्थ की रोटी हर रिश्ते में सिकती
शून्य हुई संवेदना बढ़ रहे अत्याचार
बलशाली का हंटर है और निर्धन झेले मार
शालिनी शर्मा
रोते रहें ये हाल हमारा कर गये
बेघर किया हमें बेसहारा कर गये
नदिया के बीच मांझी छोड़ चले हैं
मंझदार बीच हम,वो किनारा कर गये
बदली में चाँद है दीदार की है हसरत
वो देखने को आगे सितारा कर गये
रात अमावस उन्हे भाती है इस कदर
सब दिये बुझा के अन्धियारा कर गये
बाकी नही बचा, कहने का हक उनसे
रिश्ता ये खत्म अब जब सारा कर गये
सुन कर भी अनसुना वो करने लगे हैं
औकात हमारी क्या वो यारा कर गये
अच्छी हो या बुरी बात मान जाते हैं
जब साथ रहना है तो गुजारा कर गये
क्यों एक फूल भी कली भी खुश नही
कैसा वो गुलशनो का नजारा कर गये
शालिनी शर्मा
क्या उसके कह देने भर से हम कातिल बन जायेगें
झूठे इल्जामों को दामन पर चुप रह कर सहजायेगें
कितना शातिर है वो झूठी एक कहानी बना गया
जब तक दामन साफ ना होगा इन्साफ मांगने आयेगें
शालिनी शर्मा
कहां देश ये जा रहा फैल रहे अपराध
अपराधी बेखोफ हैं जेल में निरपराध
जेल में निरपराध पुलिस पैसे की मारी
सच से आँखे मूंद करे इन्क्वारी सारी
सांठ गांठ में व्यस्त है चोर पुलिस के संग
काला हो जाता वाइट ये केस के बदले रंग
शालिनी शर्मा
नफरत की चिंगारियां भड़क रही हर और
धैर्य ,दया सब लुप्त हैं कैसा आया दौर
कैसा आया दौर नही मानवता दिखती
बस स्वार्थ की रोटी हर रिश्ते में सिकती
शून्य हुई संवेदना बढ़ रहे अत्याचार
बलशाली का हंटर है और निर्धन झेले मार
शालिनी शर्मा
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