दुनिया पैसे की तलबगार हो गयी

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HINDI POEMS
उसने कहा जो कुछ,मेरी तकरार हो गयी
फिर घर के  बीच  में खड़ी दीवार हो गयी

जन्नत की  आरजू  थी जहन्नुम  नसीब है
पूजा  ,नमाज , प्रार्थना  बेकार  हो   गयी

अब तो किसी पे भी यकीं बाकी नही बचा
तादाद   दुश्मनो   की   बेशुमार  हो   गयी

अब  तो  सलाम  ठोकना मजबूरी है  मेरी
कुर्सी कलम से ज्यादा असरदार हो  गयी

सब कुछ बिकेगा,सोच  हो चांहे जमीर हो
दुनिया सिर्फ  पैसे  की तलबगार हो  गयी

कुछ भी उछाल दो किसी की बेटी के लिये
लाड़ली  पिता  की ,अब अखबार हो  गयी
                                शालिनी शर्मा

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