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HINDI
POEMS
वो काम करते हैं अफवाहों को हवा देने का
उनका काम यही है आतंक मचा देने का
तलवार सबके हाथ में सिर काटते नही
उनका इरादा है मेरा सिर झुका देने का
वो लाइलाज रोग में भी हसंता हुआ मिला
कुछ तो असर हुआ है उसको दुआ देने का
सब कुछ जो जल रहा हो तो इतना कीजिये
मत कीजिये प्रयास शोलो को हवा देने का
जब अजनबी हुए हम अपनो के बीच में
षणयन्त्र चल रहा है नजरो से गिरा देने का
वो लेते हैं हल्के में हर बात को मेरी
कोई फायदा नही गम अपना बता देने का
नफरत को भी उसकी सम्भाला प्यार से हमने
उसने सिखा दिया हुनर गुस्सा दबा देने का
ठोकर मिले तो भी ना होना हताश तुम
ठोकर करेगी काम नया सिखा देने का
रोटी चुरायी थी तो मौत उसको मिल गयी
अब पब्लिक करती है काम सजा देने का
शालिनी शर्मा
अन्धो के शहर को क्यों आईना दिखाते हो
गूंगा है ,जिसको मंच का वक्ता बनाते हो
जैसा है वैसा चलने दो वो सीख दे रहा
बहरे हैं वो जिनको तुम अपने दुख गिनाते हो
शालिनी शर्मा
चहुं ओर विषधर मन में अथाह पीर
वेदना कलश रिसे अँखियों में घोर नीर
स्त्री का मान नही कोई सम्मान नही
सड़को पे फेंक गये वस्त्रो को चीर चीर
शालिनी शर्मा
वायु का रूख बदलना आसान नही है
मुश्किल से बच निकलना आसान नही है
अब तो हंसी भी जैसे लगती गुनाह सी
तूफानो में सम्भलना आसान नही है
शालिनी शर्मा
जा रहे मुड़कर दोबारा देखिये
रूकने का करते इशारा देखिये
आदमी पागल है दौलत के लिये
धन बिना भी नही गुजारा देखिये
हो रहे नीलाम ,नेता बिक रहे हैं
मूंद आँखें खेल सारा देखिये
धूप में घर से निकलना है बुरा
चढ़ रहा है रोज पारा देखिये
बात शायद खास है मरना वतन
रो रहा है देश सारा देखिये
पहले अपने फर्ज पूरे कीजिए
फिर जमाने का नजारा देखिये
शालिनी शर्मा
सबको पता सुकून इस जहान में नही
मन्जिल है आखिरी कहाँ ये ध्यान में नही
काट दे जो स्वाभिमानी सिर को हमारे
एेसी कोई तलवार किसी म्यान में नही
ना बदलियां घिरी है ना धुन्ध घिरी है
दिखते क्यों चाँद तारे आसमान में नही
हमको पता है दूरियां बढ़ जाती है अक्सर
कोई भी कड़वा तीर एेसा कमान में नही
वो आज भी मकां मेरा मुड़ मुड के देखता
शायद वो झोपडी़ में रहता है मकान में नही
जा जा के हमने खोजा बागो में फूल वो
हमको पसन्द था जो वो बागान में नही
मांगोगे प्यार से अगर जान भी दे देगें हम
गुस्ताखियों को सहना हमारी शान में नही
शालिनी शर्मा
कैसे कहूं के घर में कोई बीमार नही है
गहरा है जख्म दर्द है करार नही है
फूल भी कली भी सब मुरझाये से दिखे
उजड़ा है चमन बागों में बहार नही है
आहट तुम्हारे आने का सन्देशा देती है
कैसे कहें के हमको इन्तजार नही है
जब दुनिया में आये हैं तो जीना भी पड़ेगा
पर काटे शजर बचने के आसार नही हैं
हर आदमी यहाँ पर मजबूर सा दिखा
इस दुनिया में है कोन जो लाचार नही है
हमने तो अपनी सारी जायजाद दान की
इस मिल्कियत का अब कोई हकदार नही है
तोहीन वो कदम कदम पे करने लगे हैं
लगता है जैसे उनको हमसे प्यार नही है
सारी. तमीज की हदे वो तोड़ चुके हैं
जाहिल हैं वो इससे हमें इन्कार नही है
आवाज नीची करके करो बात यहाँ पर
ये घर है मेरा ये कोई बाजार नही है
शालिनी शर्मा
वो काम करते हैं अफवाहों को हवा देने का
उनका काम यही है आतंक मचा देने का
तलवार सबके हाथ में सिर काटते नही
उनका इरादा है मेरा सिर झुका देने का
वो लाइलाज रोग में भी हसंता हुआ मिला
कुछ तो असर हुआ है उसको दुआ देने का
सब कुछ जो जल रहा हो तो इतना कीजिये
मत कीजिये प्रयास शोलो को हवा देने का
जब अजनबी हुए हम अपनो के बीच में
षणयन्त्र चल रहा है नजरो से गिरा देने का
वो लेते हैं हल्के में हर बात को मेरी
कोई फायदा नही गम अपना बता देने का
नफरत को भी उसकी सम्भाला प्यार से हमने
उसने सिखा दिया हुनर गुस्सा दबा देने का
ठोकर मिले तो भी ना होना हताश तुम
ठोकर करेगी काम नया सिखा देने का
रोटी चुरायी थी तो मौत उसको मिल गयी
अब पब्लिक करती है काम सजा देने का
शालिनी शर्मा
अन्धो के शहर को क्यों आईना दिखाते हो
गूंगा है ,जिसको मंच का वक्ता बनाते हो
जैसा है वैसा चलने दो वो सीख दे रहा
बहरे हैं वो जिनको तुम अपने दुख गिनाते हो
शालिनी शर्मा
चहुं ओर विषधर मन में अथाह पीर
वेदना कलश रिसे अँखियों में घोर नीर
स्त्री का मान नही कोई सम्मान नही
सड़को पे फेंक गये वस्त्रो को चीर चीर
शालिनी शर्मा
वायु का रूख बदलना आसान नही है
मुश्किल से बच निकलना आसान नही है
अब तो हंसी भी जैसे लगती गुनाह सी
तूफानो में सम्भलना आसान नही है
शालिनी शर्मा
जा रहे मुड़कर दोबारा देखिये
रूकने का करते इशारा देखिये
आदमी पागल है दौलत के लिये
धन बिना भी नही गुजारा देखिये
हो रहे नीलाम ,नेता बिक रहे हैं
मूंद आँखें खेल सारा देखिये
धूप में घर से निकलना है बुरा
चढ़ रहा है रोज पारा देखिये
बात शायद खास है मरना वतन
रो रहा है देश सारा देखिये
पहले अपने फर्ज पूरे कीजिए
फिर जमाने का नजारा देखिये
शालिनी शर्मा
सबको पता सुकून इस जहान में नही
मन्जिल है आखिरी कहाँ ये ध्यान में नही
काट दे जो स्वाभिमानी सिर को हमारे
एेसी कोई तलवार किसी म्यान में नही
ना बदलियां घिरी है ना धुन्ध घिरी है
दिखते क्यों चाँद तारे आसमान में नही
हमको पता है दूरियां बढ़ जाती है अक्सर
कोई भी कड़वा तीर एेसा कमान में नही
वो आज भी मकां मेरा मुड़ मुड के देखता
शायद वो झोपडी़ में रहता है मकान में नही
जा जा के हमने खोजा बागो में फूल वो
हमको पसन्द था जो वो बागान में नही
मांगोगे प्यार से अगर जान भी दे देगें हम
गुस्ताखियों को सहना हमारी शान में नही
शालिनी शर्मा
कैसे कहूं के घर में कोई बीमार नही है
गहरा है जख्म दर्द है करार नही है
फूल भी कली भी सब मुरझाये से दिखे
उजड़ा है चमन बागों में बहार नही है
आहट तुम्हारे आने का सन्देशा देती है
कैसे कहें के हमको इन्तजार नही है
जब दुनिया में आये हैं तो जीना भी पड़ेगा
पर काटे शजर बचने के आसार नही हैं
हर आदमी यहाँ पर मजबूर सा दिखा
इस दुनिया में है कोन जो लाचार नही है
हमने तो अपनी सारी जायजाद दान की
इस मिल्कियत का अब कोई हकदार नही है
तोहीन वो कदम कदम पे करने लगे हैं
लगता है जैसे उनको हमसे प्यार नही है
सारी. तमीज की हदे वो तोड़ चुके हैं
जाहिल हैं वो इससे हमें इन्कार नही है
आवाज नीची करके करो बात यहाँ पर
ये घर है मेरा ये कोई बाजार नही है
शालिनी शर्मा
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