गज़ल

<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-3877412461391743"
     crossorigin="anonymous"></script>
HINDI POEMS

वो काम करते हैं अफवाहों को हवा देने का
उनका  काम  यही है आतंक  मचा देने  का

तलवार सबके हाथ में  सिर काटते नही
उनका इरादा है मेरा सिर झुका देने का

वो लाइलाज रोग में भी  हसंता  हुआ मिला
कुछ तो असर हुआ है उसको दुआ देने का

सब कुछ जो जल रहा हो तो इतना कीजिये
मत कीजिये प्रयास शोलो को हवा देने का

जब अजनबी हुए हम अपनो के बीच में
षणयन्त्र चल रहा है नजरो से गिरा देने का

वो  लेते  हैं  हल्के  में  हर  बात  को  मेरी
कोई फायदा नही गम अपना बता देने का

नफरत को भी उसकी सम्भाला प्यार से हमने
उसने सिखा दिया  हुनर गुस्सा दबा  देने  का

ठोकर मिले तो भी ना होना हताश तुम
ठोकर करेगी काम नया सिखा देने का

रोटी चुरायी थी तो मौत उसको मिल गयी
अब पब्लिक करती है काम सजा देने का
                                शालिनी शर्मा

अन्धो  के  शहर को क्यों आईना दिखाते हो
गूंगा  है  ,जिसको  मंच  का  वक्ता  बनाते हो
जैसा  है  वैसा  चलने  दो  वो  सीख  दे  रहा
बहरे हैं वो जिनको तुम अपने दुख गिनाते हो
                                शालिनी शर्मा

चहुं  ओर  विषधर  मन  में अथाह पीर
वेदना कलश रिसे अँखियों में घोर  नीर
स्त्री  का  मान  नही  कोई सम्मान नही
सड़को पे फेंक गये वस्त्रो को चीर चीर
                             शालिनी शर्मा

वायु का  रूख  बदलना आसान  नही  है
मुश्किल से बच निकलना आसान नही है
अब  तो हंसी  भी  जैसे  लगती गुनाह सी
तूफानो   में   सम्भलना  आसान  नही  है
                               शालिनी शर्मा

जा रहे  मुड़कर दोबारा देखिये
रूकने का करते इशारा देखिये

आदमी पागल है दौलत के लिये
धन बिना भी नही गुजारा देखिये

हो रहे नीलाम ,नेता  बिक  रहे हैं
मूंद  आँखें   खेल   सारा  देखिये

धूप में  घर  से  निकलना है बुरा
चढ़  रहा  है  रोज  पारा  देखिये

बात शायद खास है मरना वतन
रो   रहा  है   देश  सारा  देखिये

पहले अपने फर्ज  पूरे  कीजिए
फिर जमाने  का नजारा देखिये
                    शालिनी शर्मा



सबको पता  सुकून  इस  जहान  में  नही
मन्जिल है आखिरी कहाँ ये ध्यान में नही

काट दे जो  स्वाभिमानी  सिर  को  हमारे
एेसी  कोई  तलवार  किसी  म्यान में नही

ना  बदलियां  घिरी  है  ना  धुन्ध  घिरी  है
दिखते  क्यों चाँद  तारे आसमान में  नही

हमको  पता है  दूरियां बढ़ जाती है अक्सर
कोई भी  कड़वा  तीर एेसा  कमान में नही

वो आज भी  मकां मेरा मुड़ मुड के देखता
शायद वो झोपडी़ में रहता है मकान में नही

जा  जा के हमने  खोजा  बागो में  फूल वो
हमको  पसन्द था  जो  वो बागान  में  नही

मांगोगे प्यार से अगर जान भी दे देगें हम
गुस्ताखियों को सहना हमारी शान में नही

                                शालिनी शर्मा



कैसे  कहूं  के घर में कोई बीमार नही  है
गहरा  है  जख्म  दर्द   है  करार  नही  है

फूल भी कली    भी सब मुरझाये से दिखे
उजड़ा  है  चमन  बागों  में  बहार  नही है

आहट  तुम्हारे  आने  का  सन्देशा देती  है
कैसे   कहें  के  हमको  इन्तजार  नही   है

जब दुनिया में आये हैं तो जीना भी पड़ेगा
पर  काटे शजर  बचने  के आसार नही हैं

हर    आदमी  यहाँ  पर मजबूर  सा  दिखा
इस  दुनिया  में है  कोन  जो लाचार नही है

हमने तो  अपनी सारी  जायजाद  दान  की
इस मिल्कियत का अब कोई हकदार नही है

तोहीन  वो  कदम  कदम  पे  करने लगे  हैं
लगता  है  जैसे  उनको  हमसे प्यार नही है

सारी.  तमीज  की   हदे   वो  तोड़  चुके   हैं
जाहिल   हैं  वो  इससे  हमें  इन्कार  नही  है

आवाज  नीची   करके  करो  बात  यहाँ  पर
ये   घर  है   मेरा  ये   कोई   बाजार  नही   है
                                  शालिनी शर्मा


Comments