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HINDI
POEMS
खूंखार हैं मत खोलिये इनको देर तक
पिंजरे में ड़ाल दीजिये इनको देर तक
हैं जख्म बेहिसाब और गम भी खूब हैं
हम हंसते हुए सहते रहे इनको देर तक
देखो बहारो ने शायद कहा है कुछ
हम मस्त बस सुनते रहे इनको देर तक
हंसते हुए ,मुस्काते हुए बच्चे दिख गये
हम बस निहारते रहे इनको देर तक
वो बेगुनाह थे कसूर उनका नही था
पर मिलती रही हैं सजा इनको देर तक
पंछी थे ,उड़ गये सभी वो आसमान में
होकर अकेले देखा किये इनको देर तक
शालिनी शर्मा
वो कितना भी सिकन्दर हो मिटेगी हस्ती उसकी भी
कफ़न होगा बदन पर जब बंधेगी रस्सी उसकी भी
शालिनी शर्मा
घिरने लगा अंधियारा अब दीपक जलाइए
हलचल है तूफानों की ना सागर में जाइए
बुनियाद में दरार इमारत है खतरे में
सब कुछ सही नही है सच को मत छुपाइए
शालिनी शर्मा
ये ज़िन्दगी ज्यादा नशीली है शराब से
ये होश उड़ा देती कभी बेहिसाब से
कांटो का दोष क्या है वो तो चुभेगें ही
जब हो गयी है दुश्मनी अपनी गुलाब से
आँचल नही रूक पा रहा चेहरे पे हमारे
उड़ जाता बार बार हवा के दबाब से
तस्वीरो में है रंग जब काला सफेद बस
फिर क्यों करे शिकायत बेरंग ख्वाब से
अब तक नही कहा था पर आज कह दिया
वो तिलमिला उठे हैं हमारे जवाब से
बादल भी हैं बिजली भी और तेज हवा भी
हालात हैं मौसम के बहुत ही खराब से
नखरे समझ से हैं परे वो है तुनकमिजाज
सीखी है नजाकत उन्होने किस नबाब से
शालिनी शर्मा
अन्दर बाहर शोलो को देखा है दहकते
कम उम्र की नस्लो को देखा है बहकते
शर्मिन्दा होना चाहिये जिस बात पे सबको
एेसी दरिन्दगी पे उनको देखा है हंसते
शालिनी शर्मा
पूछती हैं कलियां खिल के भी क्या पाया
जब इन बहारो को भी गम में सदा पाया
वो दूर भी नही हैं और पास भी नही
दोनों के दरमियां सदा एक फांसला पा़या
कोई राजदार कोई हमदम नही अपना
हमने तो खुद को भीड़ में तन्हा सदा पाया
ईटे लगाई दूसरो के महलो में सदा
मजदूर कभी अपनी नही छत बना पाया
अफलास को तो नींद पत्थरो पे आ गयी
पर एक अमीर को नही गद्दा सुला पाया
मजबूरियों ने उसको अनपढ़ बना दिया
भाई पढ़ा दिये नही खुद को पढ़ा पाया
शालिनी शर्मा
सूरज पकड़ना चाहा जब तो हाथ जल गये
आया बुरा समय तो सब अपने बदल गये
सुख दुख का हमें अब कोई अहसास ही नही
जैसा समय था हम उसी सांचे में ढ़ल गये
शालिनी शर्मा
पूछती हैं कलियां खिल के भी क्या पाया
जब इन बहारो को भी गम में सदा पाया
वो दूर भी नही हैं और पास भी नही
दोनों के दरमियां सदा एक फांसला पा़या
कोई राजदार कोई हमदम नही अपना
हमने तो खुद को भीड़ में तन्हा सदा पाया
ईटे लगाई दूसरो के महलो में सदा
मजदूर कभी अपनी नही छत बना पाया
अफलास को तो नींद पत्थरो पे आ गयी
पर एक अमीर को नही गद्दा सुला पाया
मजबूरियों ने उसको अनपढ़ बना दिया
भाई पढ़ा दिये नही खुद को पढ़ा पाया
शालिनी शर्मा
अहसास अपने दर्द का कम होने लगा है
अश्रु के बोझ से हृदय नम होने लगा है
शायद हमारे जख्म तो भर जाये कुछ दिन में
पर उसका तो नासूर जख्म होने लगा है
शालिनी शर्मा
कुछ बदले हुए हैं हालात इन दिनो
उनसे मिलते नही ख्यालात इन दिनो
हर बात से हमारी आजिज वो दिख रहे
बहुत करने लगे सवालात इन दिनो
शालिनी शर्मा
घर सिर्फ ईंटों का मकान हुआ जाता है
इसमें रहता आदमी सामान हुआ जाता है
ना मतलब तुझे मुझसे ना मुझे तेरी परवाह
अपने आप में मगन इन्सान हुआ जाता है
शालिनी शर्मा
खूंखार हैं मत खोलिये इनको देर तक
पिंजरे में ड़ाल दीजिये इनको देर तक
हैं जख्म बेहिसाब और गम भी खूब हैं
हम हंसते हुए सहते रहे इनको देर तक
देखो बहारो ने शायद कहा है कुछ
हम मस्त बस सुनते रहे इनको देर तक
हंसते हुए ,मुस्काते हुए बच्चे दिख गये
हम बस निहारते रहे इनको देर तक
वो बेगुनाह थे कसूर उनका नही था
पर मिलती रही हैं सजा इनको देर तक
पंछी थे ,उड़ गये सभी वो आसमान में
होकर अकेले देखा किये इनको देर तक
शालिनी शर्मा
वो कितना भी सिकन्दर हो मिटेगी हस्ती उसकी भी
कफ़न होगा बदन पर जब बंधेगी रस्सी उसकी भी
शालिनी शर्मा
हलचल है तूफानों की ना सागर में जाइए
बुनियाद में दरार इमारत है खतरे में
सब कुछ सही नही है सच को मत छुपाइए
शालिनी शर्मा
ये ज़िन्दगी ज्यादा नशीली है शराब से
ये होश उड़ा देती कभी बेहिसाब से
कांटो का दोष क्या है वो तो चुभेगें ही
जब हो गयी है दुश्मनी अपनी गुलाब से
आँचल नही रूक पा रहा चेहरे पे हमारे
उड़ जाता बार बार हवा के दबाब से
तस्वीरो में है रंग जब काला सफेद बस
फिर क्यों करे शिकायत बेरंग ख्वाब से
अब तक नही कहा था पर आज कह दिया
वो तिलमिला उठे हैं हमारे जवाब से
बादल भी हैं बिजली भी और तेज हवा भी
हालात हैं मौसम के बहुत ही खराब से
नखरे समझ से हैं परे वो है तुनकमिजाज
सीखी है नजाकत उन्होने किस नबाब से
शालिनी शर्मा
अन्दर बाहर शोलो को देखा है दहकते
कम उम्र की नस्लो को देखा है बहकते
शर्मिन्दा होना चाहिये जिस बात पे सबको
एेसी दरिन्दगी पे उनको देखा है हंसते
शालिनी शर्मा
पूछती हैं कलियां खिल के भी क्या पाया
जब इन बहारो को भी गम में सदा पाया
वो दूर भी नही हैं और पास भी नही
दोनों के दरमियां सदा एक फांसला पा़या
कोई राजदार कोई हमदम नही अपना
हमने तो खुद को भीड़ में तन्हा सदा पाया
ईटे लगाई दूसरो के महलो में सदा
मजदूर कभी अपनी नही छत बना पाया
अफलास को तो नींद पत्थरो पे आ गयी
पर एक अमीर को नही गद्दा सुला पाया
मजबूरियों ने उसको अनपढ़ बना दिया
भाई पढ़ा दिये नही खुद को पढ़ा पाया
शालिनी शर्मा
सूरज पकड़ना चाहा जब तो हाथ जल गये
आया बुरा समय तो सब अपने बदल गये
सुख दुख का हमें अब कोई अहसास ही नही
जैसा समय था हम उसी सांचे में ढ़ल गये
शालिनी शर्मा
पूछती हैं कलियां खिल के भी क्या पाया
जब इन बहारो को भी गम में सदा पाया
वो दूर भी नही हैं और पास भी नही
दोनों के दरमियां सदा एक फांसला पा़या
कोई राजदार कोई हमदम नही अपना
हमने तो खुद को भीड़ में तन्हा सदा पाया
ईटे लगाई दूसरो के महलो में सदा
मजदूर कभी अपनी नही छत बना पाया
अफलास को तो नींद पत्थरो पे आ गयी
पर एक अमीर को नही गद्दा सुला पाया
मजबूरियों ने उसको अनपढ़ बना दिया
भाई पढ़ा दिये नही खुद को पढ़ा पाया
शालिनी शर्मा
अहसास अपने दर्द का कम होने लगा है
अश्रु के बोझ से हृदय नम होने लगा है
शायद हमारे जख्म तो भर जाये कुछ दिन में
पर उसका तो नासूर जख्म होने लगा है
शालिनी शर्मा
कुछ बदले हुए हैं हालात इन दिनो
उनसे मिलते नही ख्यालात इन दिनो
हर बात से हमारी आजिज वो दिख रहे
बहुत करने लगे सवालात इन दिनो
शालिनी शर्मा
घर सिर्फ ईंटों का मकान हुआ जाता है
इसमें रहता आदमी सामान हुआ जाता है
ना मतलब तुझे मुझसे ना मुझे तेरी परवाह
अपने आप में मगन इन्सान हुआ जाता है
शालिनी शर्मा
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