मेरी कलम से

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HINDI POEMS

फैली अफवाहों  की ये आग पर धुआँ ना  मिला
किसी चिन्गारी का अबतक कोई पता ना मिला

आसमां  छत  है  हमारी  बिछोना  धरती  पर
हमें अब तक कोई कैसा भी आशियां ना मिला

उनकी  दौलत ने सच को कैद कर कर लिया
जहाँ  उम्मीद  थी इसकी  हमें वहाँ ना  मिला

सुनाने को बहुत है दास्ताने दिल मगर हमको
तुम्हारे  जैसा  साथी  कोई  राजदाँ  ना मिला

हमारी भी कई हसरत है पूरी काश हो जायें
खिले वो फूल जिनको कोई बागवाँ ना मिला
                                       शालिनी शर्मा

हर शक्स मुखोटे में है चलना सम्भल सम्भल
दुश्मन भी  दोस्त बनने  में  हो जाते हैं सफल
फितरत  है  जिनकी वो दगा  ही देगें आपको
क्यों हो  हमारी  जिन्दगी  में  गैरो  का दखल
                                   शालिनी शर्मा


कश्ती  भंवर में  है  और  पतवार छूट गई
जिस ड़ाल पे था घोंसला वो ड़ाल टूट गई
कैसी समय ने  अपनी ताकत  दिखायी है
जब प्यास लगी तब भरी गगरिया फूट गई
                           शालिनी शर्मा

ये जिन्दगी है छोटी ना  दिल में दरार रख
नफरत  को छोड़ दे ,दिल में  तू प्यार रख
हंस बोल के ही बीते संग में जो वक्त बीते
सबका भला हो  एेसा मन  में विचार रख
                             शालिनी शर्मा



मर्यादायें  जब  जब  टूटी ,महा  विनाश  होता  है तब
बिन महनत  कोई  किसी परीक्षा में पास होता है कब
बिन धीरज,संयम, विवेक के कभी सफलता नहीं मिले
समय पास था पर तू सोया ,क्यों  हताश होता  है अब
                               शालिनी शर्मा

कैसे  करेगें  बात   जब   वो  बोलते  नही
कुछ तो है दिल में राज जिसे खोलते नही
खामोशियां  उनकी  हमारी  जान  लेती है
अन्दर घुटन है कितनी क्यों वो तोलते नही
                                शालिनी शर्मा


अहसास अपने  दर्द  का कम  होने  लगा  है
अश्रु  के  बोझ  से  हृदय  नम  होने  लगा  है
शायद हमारे जख्म तो भर जाये कुछ दिन में
पर  उसका  तो  नासूर  जख्म  होने  लगा  है
                            शालिनी शर्मा

मेरी कलम
मरने वाला  कम उमर है क्या करूं
रोती माँ को नही सबर है क्या करूं

गया  था  कह  के  अभी  आता  हूँ
किसे पता मोड़ पे गदर है क्या करूं

बुझ गया चिराग दुनिया उजड़  गयी
नफरत  का  ये  कहर  है  क्या करूं

सन्नाटे  चीर  के आती है चींख बस
कर्फ्यू में बन्द रहगुजर है  क्या करुं

चिन्गारी  आग बनके घर जला गयी
जद  में  तो अब  नगर  है क्या करूं

सहमी हुई हैं गलियां सदमें में लोग हैं
खुद से पूछते क्या खबर है क्या करूं

ये तोड़फोड़ क्यों गुस्सा हो जो अगर
क्या अपना नही ये शहर है क्या करूं
                  शालिनी शर्मा

बांट दिया फंस गये हम उनकी गहरी चालो में
आज  भी  बहे  लहू  उनके दिये गये छालों में

पास  अपने  क्या  है और उसके है पास क्या
बीत  गयी  जिन्दगी  बेजा ही  इन  सवालो में

आओ   करीब    बैठो   कुछ  गुफ्तगु   करो
खोये हुए हो कबसे अपने ही तुम ख्यालो में

ना अब वो ताजी चटनी ना  ही मसाले  ताजे
कुछ  स्वाद ही नही पैकेट में बन्द मसालो में

जब पास  कुछ नही  है वो  चुरायेगा भी क्या
रखते भला भी क्या तिजोरी में और तालो में

उनको तो जिन्दगी में कुछ भी नही है हासिल
जिनकी  तमाम उम्र गुजरती है दो निवालो  में
                         शालिनी शर्मा

नयी गजल आपकी नजर
दिया धोखा जो  तुमने तो  ये गूंगा बोल  सकता है
राज जितना भी है वो सब तुम्हारा खोल सकता है

कही कुछ उनको कहने की जरूरत ही नही होती
शहीदो का  लहू  सारा  ही किस्सा  बोल  सकता है

कभी जो कह नही पाते जुबां से लोग जो अक्सर
वो  सारी  बात आँखो  का इशारा  बोल सकता है

नही है हाल कुछ अच्छा मेरे गाँवों की गलियों का
वहाँ है  आग नफरत  की  नजारा  बोल सकता है

कहाँ थी चांदनी और थी अमावस की कहां छाया
कहानी  रात   की  सारी  सवेरा  बोल  सकता  है

छिपाओ लाख अपना गम कहो चाहें किसी से ना
मगर मायूसियत  गमगीन  चेहरा  बोल  सकता है
                                           शालिनी शर्मा

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