<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-3877412461391743"
crossorigin="anonymous"></script>
मनहर घनाक्षरी छंद
वर्ण(16+15)=31
सारी दुनिया को छोड़ तेरे पास आ गए हैं
मरजी है तेरी अपना ले या के छोड़ दे
तन , मन , धड़कन सब तुझे अरपन
दिल को संभाल मेरे या के इसे तोड़ दे
अंखियों से बहे नीर दिल में है घोर पीर
जीवन की गलियों को इक नया मोड़ दे
तेरे संग बांधी मैने जीवन की ड़ोर साथी
तू भी मेरे संग पग अपने भी जोड़ दे
शालिनी शर्मा
बेटे ने पहली बार पापा कहा था उसको
खुश होके बाप सारी दौलत उछाल आया
जब हो गया बुजुर्ग वो कहता बेटा बेटा
ये बेटा उसको वृद्धो के घर में ड़ाल आया
शालिनी शर्मा
धूप में निकले तो ख्याल आया
पेड़ कटे तो ये उबाल आया
जिन्दगी उबल रही है धूप सी
लापरवाहियों का मलाल आया
कहां हैं बस्ती सपनो की यहां
जब से नेता बन दलाल आया
रोटी भी जब नही मिलती उन्हे
तब साहब के लिये माल आया
तेरा क्या बिगडा़ तेज बारिश में
छत थी तू बच्चे सम्भाल आया
हर रोज हो रहे हादसे नये नये
रोता हुआ सा कैसा साल आया
शालिनी शर्मा
किस्मत में जो भी होता मिलता जरूर है
किस्मत की जाभी तो महनत हुजूर है
ये धन,ये एैश ,दौलत किस्मत में थे मिले
ये छिन भी सकते हैं फिर क्यों गुरूर है
शालिनी शर्मा
कहाँ हो तुम तुम्हे आवाज देकर ढूढता है दिल
तुम्हारी खुशबुओं को कोने कोने सूंघता है दिल
कहा सच ही जो अपने पास कोई चीज होती है
वो खो जाये तो गम में कई दफा फिर टूटता है दिल
शालिनी शर्मा
धरती कहे पुकार के मुझे बचा लो आज
बिना खेत कैसे दूंगीं कल को तुम्हे अनाज
शालिनी शर्मा
सब हमने गवा दिया
जब तूने भुला दिया
तुझ पर गुरूर था
ये मेरा कसूर था
कुछ भी रहा न बाकी
किस बात की सजा दी
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद
वर्ण(16+15)=31
सारी दुनिया को छोड़ तेरे पास आ गए हैं
मरजी है तेरी अपना ले या के छोड़ दे
तन , मन , धड़कन सब तुझे अरपन
दिल को संभाल मेरे या के इसे तोड़ दे
अंखियों से बहे नीर दिल में है घोर पीर
जीवन की गलियों को इक नया मोड़ दे
तेरे संग बांधी मैने जीवन की ड़ोर साथी
तू भी मेरे संग पग अपने भी जोड़ दे
शालिनी शर्मा
बेटे ने पहली बार पापा कहा था उसको
खुश होके बाप सारी दौलत उछाल आया
जब हो गया बुजुर्ग वो कहता बेटा बेटा
ये बेटा उसको वृद्धो के घर में ड़ाल आया
शालिनी शर्मा
धूप में निकले तो ख्याल आया
पेड़ कटे तो ये उबाल आया
जिन्दगी उबल रही है धूप सी
लापरवाहियों का मलाल आया
कहां हैं बस्ती सपनो की यहां
जब से नेता बन दलाल आया
रोटी भी जब नही मिलती उन्हे
तब साहब के लिये माल आया
तेरा क्या बिगडा़ तेज बारिश में
छत थी तू बच्चे सम्भाल आया
हर रोज हो रहे हादसे नये नये
रोता हुआ सा कैसा साल आया
शालिनी शर्मा
किस्मत में जो भी होता मिलता जरूर है
किस्मत की जाभी तो महनत हुजूर है
ये धन,ये एैश ,दौलत किस्मत में थे मिले
ये छिन भी सकते हैं फिर क्यों गुरूर है
शालिनी शर्मा
कहाँ हो तुम तुम्हे आवाज देकर ढूढता है दिल
तुम्हारी खुशबुओं को कोने कोने सूंघता है दिल
कहा सच ही जो अपने पास कोई चीज होती है
वो खो जाये तो गम में कई दफा फिर टूटता है दिल
शालिनी शर्मा
धरती कहे पुकार के मुझे बचा लो आज
बिना खेत कैसे दूंगीं कल को तुम्हे अनाज
शालिनी शर्मा
सब हमने गवा दिया
जब तूने भुला दिया
तुझ पर गुरूर था
ये मेरा कसूर था
कुछ भी रहा न बाकी
किस बात की सजा दी
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद
जा रहे मुड़कर दोबारा देखिये
रूकने का करते इशारा देखिये
आदमी पागल है दौलत के लिये
हो रहा पागल बेचारा देखिये
हो रहे नीलाम ,नेता बिक रहे हैं
मूंद आँखें खेल सारा देखिये
धूप में घर से निकलना है बुरा
चढ़ रहा है रोज पारा देखिये
खास है मरना वतन के वास्ते
रो रहा है देश सारा देखिये
पहले अपने फर्ज पूरे कीजिए
फिर जमाने का नजारा देखिये
शालिनी शर्मा
नयी गजल आपकी नजर
दिया धोखा जो तुमने तो ये गूंगा बोल सकता है
राज जितना भी है वो सब तुम्हारा खोल सकता है
कही कुछ उनको कहने की जरूरत ही नही होती
शहीदो का लहू सारा ही किस्सा बोल सकता है
कभी जो कह नही पाते जुबां से लोग जो अक्सर
वो सारी बात आँखो का इशारा बोल सकता है
नही है हाल कुछ अच्छा मेरे गाँवों की गलियों का
वहाँ है आग नफरत की नजारा बोल सकता है
कहाँ थी चांदनी और थी अमावस की कहां छाया
कहानी रात की सारी सवेरा बोल सकता है
छिपाओ लाख अपना गम कहो चाहें किसी से ना
मगर मायूसियत गमगीन चेहरा बोल सकता है
शालिनी शर्मा
मेरी कलम
मरने वाला कम उमर है क्या करूं
रोती माँ को नही सबर है क्या करूं
गया था कह के अभी आता हूँ
किसे पता मोड़ पे गदर है क्या करूं
बुझ गया चिराग दुनिया उजड़ गयी
नफरत का ये कहर है क्या करूं
सन्नाटे चीर के आती है चींख बस
कर्फयू में बन्द रहगुजर है क्या करुं
चिन्गारी आग बनके घर जला गयी
जद में तो अब नगर है क्या करूं
सहमी हुई हैं गलियां सदमें में लोग हैं
खुद से पूछते क्या खबर है क्या करूं
ये तोड़फोड़ क्यों गुस्सा हो जो अगर
क्या अपना नही शहर है क्या करूं
शालिनी शर्मा
सांझ जब जाने लगे तब चल के आती चांदनी
रोशनी की जगमगाहट को सजाती चांदनी
रात की खामोशियों पर मुस्कुराती चांदनी
चाँद की परछाईयों में खो सी जाती चांदनी
शालिनी शर्मा
कलियां खिली बहारे उपवन में छा गयीं
निश्छल हंसी मासूमों की हर दिल लुभा गयीं
हैं दूर ये फरिश्ते दुनिया के रंजो गम से
इनकी हंसी बचपन की यादें लेके आ गयी
शालिनी शर्मा
नशा मिले ना मिले वो बहकते रहते हैं
बिना पिये भी जाम तो छलकते रहते हैं
किसे सुनाये जा के दर्द अपने जीवन का
बना के मूर्ख हमें अब वो छलते रहते हैं
सफर में साथ उनका भाये या के ना भाये
मगर करे क्या वो जब संग चलते रहते हैं
जमाने भर में कोई भी हमें ना तुझसा मिला
यूं रोज कितने बिछड़ते हैं मिलते रहते हैं
तू जो गया तो ना वापस वहां से आ पाया
समय की धूल पे आंसू फिसलते रहते हैं
तेरे बगैर जियें भी तो कैसे जी पायें
सदा ख्याल तो तेरे मचलते रहते हैं
नही बदलता कभी क्रम इनके आने का
समय से चाँद और सूरज निकलते रहते हैं
शालिनी शर्मा
Comments