गज़ल

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HINDI POEMS
वो गिरते  रहे  पर  सम्भलते  रहे
पर  हमराज  अपने  बदलते  रहे

गिला वो भला किससे करते यहां
वो  अपने  ही  थे जो  छलते  रहे

छिपे  हैं  बहुत  आस्तीनों  में  वो
सांप जितने  दिखे  कुचलते   रहे

बर्फ रिश्तो में जम ना जाये  कहीं
वो  बन  मोम  होले  पिघलते  रहे

अब पहले सी बागो में रौनक नही
फिर  भी  बागो में वो  टहलते  रहे

कब कटेगा शजर ये पता तो नही
पंछी घर अपना रोज बदलते  रहे

वो  बहाने  बनाते है कुछ  रोज ही
सब समझतेे हैं लेकिन बहलते रहे

कभी आप भी हमसे मिलते भला
हमी  आपसे  आ  के  मिलते  रहे

परवाह  नही  चाँद  सूरज को  थी
उन्हे  था  निकलना  निकलते  रहे
                         शालिनी शर्मा

आपसे मिल कर सुमन सी खिल गयी है जिन्दगी
बात कर ली धड़कनो को मिल गयी  है  जिन्दगी
कुछ किया उपचार, पावन  कुछ दुआएं भेंट  की
थी  फटी  मरहम  से  तेरे  सिल गयी है  जिन्दगी

                                  शालिनी शर्मा

शाम  का  सूरज  ढलेगा,  रात  होगी  फिर  सुबह
धूप से जब तन  जले ,बरसात  होगी  फिर  सुबह
दुख  भी  होगा सुख के संग में, हर्ष के संग वेदना
जिनसे बिछड़े थे कभी,मुलाकात होगी फिर सुबह

                                       शालिनी शर्मा



तेरी  नजर  से  गिरे  तो  नशा  भी टूट  गया
तू  हमसफर  ना  बना तो गुमां भी टूट  गया

कभी  बसेरा  किया  था  जहां  पे रातो  को
कटा शजर  तो वो  घर,घौंसला भी टूट गया

जमाने  भर में किसी ने तुझे  सुना ना  कभी
मुझे  सुनाना  तेरा  सिलसिला  भी  टूट गया

ना  जाने कोन सी नफरत ने तुझको घेरा था
जो घर बसाया था मिलकर बसा भी टूट गया

कभी  गिरी  थी  कई  बिजलियां  मकानो  पे
उन्ही  में  एक  मेरा  आशियां  भी  टूट   गया

जवाब कितने  सवालो  का तो दिया ही  नही
वो तोहमतो का मगर अब सिला भी टूट गया

जहां पे थे हैं वहीं  पर  ना  मंजिलों की  खबर 
जो  दूरियों  को  बताता  निशां  भी  टूट  गया

                                    शालिनी शर्मा

सांस सांस धड़कन धड़कन में प्रीत तुम्हारी पले यहां
ख्वाबों की परछाई में तुम हाथ  छुड़ाकर  चले  कहाँ
मौन शब्द अखियां कहती हैं मत जाओ हे प्रिय सुनो 
आओ कुछ बातें कर ले हम आसमान  के तले यहां
                   शालिनी शर्मा

                    गाजियाबाद



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