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HINDI
POEMS
वो गिरते रहे पर सम्भलते रहे
पर हमराज अपने बदलते रहे
गिला वो भला किससे करते यहां
वो अपने ही थे जो छलते रहे
छिपे हैं बहुत आस्तीनों में वो
सांप जितने दिखे कुचलते रहे
बर्फ रिश्तो में जम ना जाये कहीं
वो बन मोम होले पिघलते रहे
अब पहले सी बागो में रौनक नही
फिर भी बागो में वो टहलते रहे
कब कटेगा शजर ये पता तो नही
पंछी घर अपना रोज बदलते रहे
वो बहाने बनाते है कुछ रोज ही
सब समझतेे हैं लेकिन बहलते रहे
कभी आप भी हमसे मिलते भला
हमी आपसे आ के मिलते रहे
परवाह नही चाँद सूरज को थी
उन्हे था निकलना निकलते रहे
शालिनी शर्मा
आपसे मिल कर सुमन सी खिल गयी है जिन्दगी
बात कर ली धड़कनो को मिल गयी है जिन्दगी
कुछ किया उपचार, पावन कुछ दुआएं भेंट की
थी फटी मरहम से तेरे सिल गयी है जिन्दगी
शालिनी शर्मा
शाम का सूरज ढलेगा, रात होगी फिर सुबह
धूप से जब तन जले ,बरसात होगी फिर सुबह
दुख भी होगा सुख के संग में, हर्ष के संग वेदना
जिनसे बिछड़े थे कभी,मुलाकात होगी फिर सुबह
शालिनी शर्मा
तेरी नजर से गिरे तो नशा भी टूट गया
तू हमसफर ना बना तो गुमां भी टूट गया
कभी बसेरा किया था जहां पे रातो को
कटा शजर तो वो घर,घौंसला भी टूट गया
जमाने भर में किसी ने तुझे सुना ना कभी
मुझे सुनाना तेरा सिलसिला भी टूट गया
ना जाने कोन सी नफरत ने तुझको घेरा था
जो घर बसाया था मिलकर बसा भी टूट गया
कभी गिरी थी कई बिजलियां मकानो पे
उन्ही में एक मेरा आशियां भी टूट गया
जवाब कितने सवालो का तो दिया ही नही
वो तोहमतो का मगर अब सिला भी टूट गया
जहां पे थे हैं वहीं पर ना मंजिलों की खबर
जो दूरियों को बताता निशां भी टूट गया
शालिनी शर्मा
सांस सांस धड़कन धड़कन में प्रीत तुम्हारी पले यहां
ख्वाबों की परछाई में तुम हाथ छुड़ाकर चले कहाँ
मौन शब्द अखियां कहती हैं मत जाओ हे प्रिय सुनो
आओ कुछ बातें कर ले हम आसमान के तले यहां
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद
वो गिरते रहे पर सम्भलते रहे
पर हमराज अपने बदलते रहे
गिला वो भला किससे करते यहां
वो अपने ही थे जो छलते रहे
छिपे हैं बहुत आस्तीनों में वो
सांप जितने दिखे कुचलते रहे
बर्फ रिश्तो में जम ना जाये कहीं
वो बन मोम होले पिघलते रहे
अब पहले सी बागो में रौनक नही
फिर भी बागो में वो टहलते रहे
कब कटेगा शजर ये पता तो नही
पंछी घर अपना रोज बदलते रहे
वो बहाने बनाते है कुछ रोज ही
सब समझतेे हैं लेकिन बहलते रहे
कभी आप भी हमसे मिलते भला
हमी आपसे आ के मिलते रहे
परवाह नही चाँद सूरज को थी
उन्हे था निकलना निकलते रहे
शालिनी शर्मा
आपसे मिल कर सुमन सी खिल गयी है जिन्दगी
बात कर ली धड़कनो को मिल गयी है जिन्दगी
कुछ किया उपचार, पावन कुछ दुआएं भेंट की
थी फटी मरहम से तेरे सिल गयी है जिन्दगी
शालिनी शर्मा
शाम का सूरज ढलेगा, रात होगी फिर सुबह
धूप से जब तन जले ,बरसात होगी फिर सुबह
दुख भी होगा सुख के संग में, हर्ष के संग वेदना
जिनसे बिछड़े थे कभी,मुलाकात होगी फिर सुबह
शालिनी शर्मा
तेरी नजर से गिरे तो नशा भी टूट गया
तू हमसफर ना बना तो गुमां भी टूट गया
कभी बसेरा किया था जहां पे रातो को
कटा शजर तो वो घर,घौंसला भी टूट गया
जमाने भर में किसी ने तुझे सुना ना कभी
मुझे सुनाना तेरा सिलसिला भी टूट गया
ना जाने कोन सी नफरत ने तुझको घेरा था
जो घर बसाया था मिलकर बसा भी टूट गया
कभी गिरी थी कई बिजलियां मकानो पे
उन्ही में एक मेरा आशियां भी टूट गया
जवाब कितने सवालो का तो दिया ही नही
वो तोहमतो का मगर अब सिला भी टूट गया
जहां पे थे हैं वहीं पर ना मंजिलों की खबर
जो दूरियों को बताता निशां भी टूट गया
शालिनी शर्मा
सांस सांस धड़कन धड़कन में प्रीत तुम्हारी पले यहां
ख्वाबों की परछाई में तुम हाथ छुड़ाकर चले कहाँ
मौन शब्द अखियां कहती हैं मत जाओ हे प्रिय सुनो
आओ कुछ बातें कर ले हम आसमान के तले यहां
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद
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