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सजल नयन मेरे भर भर आते हैं
कैसे भूखे बच्चों का हम पेट भर पाएंगे
अश्रुओं की धारा बार-बार यही पूछती है
अच्छे दिन अब कब भारत में आएंगे
वक्त कभी क्या ऐसा आएगा यहां पे जब
भ्रष्टाचार , धोखाधड़ी न्यूज ना सुनायेगें
भेदभाव,जाति,भाषा ऊँच नीच छोड़ जब
बेटियां बचा के हम बेटियां पढायेगें
शालिनी शर्मा
गमगीन है वो पर खुशियां बांटता है
तलाश में रोटी की धूल फांकता है
भूख क्या है जरा उनसे पूछिये
जो भूखे पेट कई कई राते काटता है
शालिनी शर्मा
सत्ता पाते ही सभी को लग जाता इक रोग
कीड़े से दिखने लगते हैं अच्छे खासे लोग
फिरे मांगते द्वारे द्वारे वोटो की जो भीख
याद हमेशा रखना होगा मतदाता को ढ़ोंग
शालिनी शर्मा
सांसे है जब तलक जीना तो पड़ेगा
जिन्दगी जहर सही पीना तो पड़ेगा
जिन्दगी करम करे या फिर करे सितम
पर जख्मो को घावो को सीना तो पड़ेगा
शालिनी शर्मा
देखिये जिधर भी जिस ओर देखिये
बस भीड़ ,धक्का मुक्की, चीख, शोर देखिये
हर व्यक्ति को तलाश उस चीज की यहाँ
जो मिलती नही उसको वो दौर देखिये
शालिनी शर्मा
जान में जान है जबतक तबतक साथ तेरा ना छोडूं
वादा साथ निभाने का था कैसे वादा तोडूं
गर कांधे ना चार मिले तो मत तू चिन्ता करना
चिता पे शव खुद रख आऊं क्यों हाथ किसी के जोडूं
शालिनी
जख्म तो भरते गये पर टीस बाकी रह गयी
कर्ज सब चुक्ता किया पर फीस बाकी रह गयी
वो गये होटल में महंगे भारी बिल सब भर दिये
झाडू देते बच्चो की बख्शीश बाकी रह गयी
शालिनी शर्मा
दोहे
क्यों जीवन बेरंग है ,कहाँ खोये सब रंग
फीकी सी है चांदनी, चाल हिरण की मन्द
फीकी फीकी है हंसी , आड़म्बर चहुँ ओर
द्वेष,कपट सब में भरा, सब के मन में चोर
हर घर में दीवार है, वाणी में विषपान
भाई से भाई कहे , तोल नफा नुकसान
आज हवा में घुल गई, इक नफरत की आग
गांव ,शहर ,गलियां हुई , बैर से भरा तड़ाग
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद
HINDI
POEMSअस्त हुआ गीतो का सूरज खामोशी के साये हैं
गजल कहे फिर गाओ मुझको श्रोता सुनने आये हैं
नही सुनाई देती उनको छन्दो की, मुक्तक की पीर
नींद उन्हे कैसे आयी जिसने नित नगमें गाये है
शालिनी शर्मा
नमन
हो बुलन्दी पर अगर झुक जाना थोड़ा चाहिये
उजड़ी बस्ती भी बसे रूक जाना थोड़ा चाहिये
भागना मकसद नही है जिन्दगी का बस यहाँ
कर्ज इस वसुधा का भी चुक जाना थोड़ा चाहिये
शालिनी शर्मा
पिंजरे में है सोन चिरैया उड़ने से मजबूर
खून के आंसू रो लेती जब होती गम से चूर
जख्म भाग्य के सहती अपनो से भी ना कह पाये
घाव दिये सय्याद ने एेसे बने है जो नासूर
शालिनी शर्मा
कितना आदमी में अब विष भर गया
आदमी को काटने से सांप मर गया
बाप को दुलार की कीमत पता चली
जब वार बेटा बाप पे खंजर से कर गया
शालिनी शर्मा
कैसे भी जिन्दगी में कुछ सुधार आ जाये
उजड़ें चमन में अब तो बहार आ जाये
कब से सुलग रही है गम की तपन में ये
लेके कोई प्यार की फुंहार आ जाये
फूलों से भी हमें अब ड़र लगने लगा है
राहों में फिर ना कोई खार आ जाये
वो हमसे से बात हंस के करने लगे है फिर
कातिल अदा है उनकी ,ना प्यार आ जाये
बादल वो देखो बरसे बिन ही चले गये
बरसात में धरा पर निखार आ जा़ये
अब दुश्मनो से ड़रना जब बन्द कर दिया
परवाह नही एक संग दो चार आ जाये
शालिनी शर्मा
तू नही साथ है पर याद आया
साथ बीता जो सफर याद आया
उजड़ी बस्ती को बसाने जब गये
बीते लम्हो का कहर याद आया
जो पिया रोज हमने मर मर के
तेरा दिया वो जहर याद आया
भटके तमाम उम्र जिसकी तलाश में
मेरी मन्जिल है इधर याद आया
मां नही साथ मगर साथ रही
उसका आंचल उम्र भर याद आया
वो नचाता रहा सारी उमर बातो से
उसकी बातो का हुनर याद आया
वो चोरी चोरी नजरो से देखता मुझे
उसके देखने का असर याद आया
शालिनी शर्मा
मौसम में बदलाव है देख के मन घबराया
क्रम ऋतुओं का बदल रहा क्यों ये परिवर्तन आया
वृक्ष हीन धरती हुई रोको अत्याचार
बदली ने रो रो हमें ये कई बार समझाया
शालिनी शर्मा
जिन्दगी के जख्मो को जबसे छिपाना आ गया
हमको तबसे हर घड़ी बस मुस्कुराना आ गया
कितने हैं लाचार जब से ये हुआ अहसास है
तब से हमको सबके आगे सिर झुकाना आ गया
घावो पे मरहम लगाते थे मेरे जो प्यार से
वक्त बदला तो नमक उनको लगाना आ गया
जब भरोसा टूटता देखा किसी अपने का तो फिर
असली चेहरा सामने लेकर जमाना आ गया
कब तलक उनकी गलत बातो को हम सहते यहाँ
अब हमें भी चेहरो से पर्दा उठाना आ गया
खूबसूरत है ये दुनिया भ्रम में जीते कब तलक
टूटा है जब से भरम दर्पन दिखाना आ गया
जैसा भी जिसका मुकद्दर लिख दिया उसने यहाँ
सबको अपने भाग्य से वैसा निभाना आ गया
शालिनी शर्मा
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