गजल

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HINDI POEMS
जिन्दगी  जैसी  भी  थी वैसी  ही काट ली
खुशियां पास जितनी थी वो सारी बांट ली

उसने सफर  में फूलो  की राहें  सभी चुनी
हमने ड़गर कांटो  से भरी  सारी छांट  ली
                               
हमने  खटास  रिश्तो में  पड़ने कभी ना दी
एक  एक करके खोल  हमने सारी गांठ ली

जब  होने लगी  गहरी खाई  दरमियां अपने
हमने वो और  गहरी हो  पहले  ही  पाट ली

उसने दुआएं दी जितनी भी सारी समेट ली
सारी दुआं सिर आँखों पे मस्तक ललाट ली

वो बेहतरी  चाहती  है  मेरी  ड़ाटती  तब ही
हमने दुआ समझ के  उसकी सारी डांट ली
                      शालिनी शर्मा
                                 
सूखे  नयन  में  मेरे  फिर  पानी  नही  देना
फिर से नये जख्मों  की निशानी  नही  देना

दरिया   समुन्द्र   देख  के   हैरान  हो   गया
भ्रम  टूटे  किसी  का  वो  हैरानी  नही  देना

जन्नत  है  ये दुनिया ना झूठे ख्वाब  दिखाओ
तस्वीर   इस  जहां   की  पुरानी   नही   देना

दुनिया की नजर लग गयी शीतल हवाओं को
शीतल   पवन  को   चाल मस्तानी  नही  देना

तलवार  जो अपनो  को  गहरे  घाव  दे  जाये
खंजर  की   धार  जानी  पहचानी  नही  देना

कब तक भला सूखा शजर सह पायेगा आंधी
सूखे  शजर  को   अब   परेशानी  नही   देना
                               शालिनी शर्मा

मेरे घर के आंगन में एक चिड़िया रोज चहकती है
दाना पानी दो मुझको ये कह कह रोज फुदकती है
दूर  फलक पे उड़ने को ,दो पंखो  को परवाज  मेरे
हीरे मोती झड़ते  हैं जब  फूल पे पंख  झटकती  है
                                      शालिनी शर्मा

बचपन है  मासूम  बड़ा  हर  रंजो गम से  दूर
हंसता बचपन देख  क्यारियों पे भी छाया नूर
ड़ाल गले में बाहें साथी  छोड़ जहां की चिन्ता
कंगाली  में  भी  जीवन  जीते  हैं  हम  भरपूर
                            शालिनी शर्मा

बाढ़  भयकंर  आयी  है  संकट  में  है प्रान
बारिश  के  उत्पात  से  डूबे   सभी  मकान

आपदाओं  से  त्रस्त है  केरल  का  परिवेश
बाढ़ बहा सब ले गई  कुछ  भी बचा ना शेष

नीर ही है जीवन पर  संकट  जल  ही लाया
जल   केरल   में  टीस  वेदना  लेकर  आया

पानी  ही   बस  पानी  हैं   बेघर  सारे  लोग
हम भी इनकी मदद करे  देवे  कुछ सहयोग
                                          शालिनी शर्मा

जिन्दगी  को    मौत   ने   लड़ने   नही   दिया
इस   जिन्दगी  को  उसने  संवरने  नही   दिया

तिनके की  क्या  औकात  आंधियों  के  सामने
उड़ते    बवंड़रो    ने     सम्भलने   नही   दिया

भटके  बहुत  यहाँ  वहाँ  मन्जिल की खोज में
मन्जिल  का  पता   डगर  ने चलने नही  दिया

अहसास करके घायल छिड़का नमक दगा का
उस   बेवफा   ने   चैन   से   मरने  नही   दिया

मुझे   खाक में  मिलाया  और  मिट्टी  डाल  दी
कुछ दुश्मनो को  जश्न  तक  करने  नही  दिया

वो  कब्र पे  भी आया  नम  झूठी  आँख  लेकर
मरने  के  बाद  भी   जख्म   भरने   नही  दिया

मेरी  गीली   कब्र  चूम  के  बोला अहम से  वो 
तुझको  मिटा  दिया   कुछ  कहने  नही  दिया

                                      शालिनी शर्मा

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