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जिन्दगी जैसी भी थी वैसी ही काट ली
खुशियां पास जितनी थी वो सारी बांट ली
उसने सफर में फूलो की राहें सभी चुनी
हमने ड़गर कांटो से भरी सारी छांट ली
हमने खटास रिश्तो में पड़ने कभी ना दी
एक एक करके खोल हमने सारी गांठ ली
जब होने लगी गहरी खाई दरमियां अपने
हमने वो और गहरी हो पहले ही पाट ली
उसने दुआएं दी जितनी भी सारी समेट ली
सारी दुआं सिर आँखों पे मस्तक ललाट ली
वो बेहतरी चाहती है मेरी ड़ाटती तब ही
हमने दुआ समझ के उसकी सारी डांट ली
शालिनी शर्मा
सूखे नयन में मेरे फिर पानी नही देना
फिर से नये जख्मों की निशानी नही देना
दरिया समुन्द्र देख के हैरान हो गया
भ्रम टूटे किसी का वो हैरानी नही देना
जन्नत है ये दुनिया ना झूठे ख्वाब दिखाओ
तस्वीर इस जहां की पुरानी नही देना
दुनिया की नजर लग गयी शीतल हवाओं को
शीतल पवन को चाल मस्तानी नही देना
तलवार जो अपनो को गहरे घाव दे जाये
खंजर की धार जानी पहचानी नही देना
कब तक भला सूखा शजर सह पायेगा आंधी
सूखे शजर को अब परेशानी नही देना
शालिनी शर्मा
मेरे घर के आंगन में एक चिड़िया रोज चहकती है
दाना पानी दो मुझको ये कह कह रोज फुदकती है
दूर फलक पे उड़ने को ,दो पंखो को परवाज मेरे
हीरे मोती झड़ते हैं जब फूल पे पंख झटकती है
शालिनी शर्मा
बचपन है मासूम बड़ा हर रंजो गम से दूर
हंसता बचपन देख क्यारियों पे भी छाया नूर
ड़ाल गले में बाहें साथी छोड़ जहां की चिन्ता
कंगाली में भी जीवन जीते हैं हम भरपूर
शालिनी शर्मा
बाढ़ भयकंर आयी है संकट में है प्रान
बारिश के उत्पात से डूबे सभी मकान
आपदाओं से त्रस्त है केरल का परिवेश
बाढ़ बहा सब ले गई कुछ भी बचा ना शेष
नीर ही है जीवन पर संकट जल ही लाया
जल केरल में टीस वेदना लेकर आया
पानी ही बस पानी हैं बेघर सारे लोग
हम भी इनकी मदद करे देवे कुछ सहयोग
शालिनी शर्मा
जिन्दगी को मौत ने लड़ने नही दिया
इस जिन्दगी को उसने संवरने नही दिया
तिनके की क्या औकात आंधियों के सामने
उड़ते बवंड़रो ने सम्भलने नही दिया
भटके बहुत यहाँ वहाँ मन्जिल की खोज में
मन्जिल का पता डगर ने चलने नही दिया
अहसास करके घायल छिड़का नमक दगा का
उस बेवफा ने चैन से मरने नही दिया
मुझे खाक में मिलाया और मिट्टी डाल दी
कुछ दुश्मनो को जश्न तक करने नही दिया
वो कब्र पे भी आया नम झूठी आँख लेकर
मरने के बाद भी जख्म भरने नही दिया
मेरी गीली कब्र चूम के बोला अहम से वो
तुझको मिटा दिया कुछ कहने नही दिया
शालिनी शर्मा
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