वो बात करें अंगारो की जिनको दीये नही भाते हैं
क्या खाक उजाले देगें वो जो जलते दीये बुझाते हैं
जो रोके राहे कांटो से क्या ठीक पता समझायेगें
वो पार लगायेगें नौका क्या खुद जो नाव डुबाते हैं
सवालो के क्या देगें वो जवाब पूछते हो क्यों
चलन पे लोग जिनके आज तक उंगली उठाते हैं
तू मुझसे क्यों कहे के मुझमें हैं कमियां बहुत सारी
वो क्रोधित होते हैं जब उनकी हम कमियां गिनाते हैं
गये थे वो बड़ी उम्मीद से हम सब बदल देगें
मगर सिस्टम वो शै है जिसके रंग में रंग सब जाते हैं
समय कब अच्छा आयेगा इसी उम्मीद में हैं सब
नये ख्वाबो की तस्वीरे बना कर कर हम मिटाते हैं
बढ़ेगी इस कदर मंहगाई तो फिर सोचो होगा क्या
वो रोटी खायेगें कैसे जो थोडा़ कम कमाते हैं
शालिनी शर्मा
कांटो भरी है जिंदगी अड़चन भरा सफर
दुश्वारियों से ही शुरू हमने करा सफर
मंजिल का कुछ पता नहीं ना दूरी का पता
अनजान रहा खुल के ना मिला जरा सफर
शालिनी शर्मा
फोटो सआभार फेसबुक
कैसे करे इन्कार हम कैसे करे इकरार
जब हम हैं बरबादी के अपनी खुद ही जिम्मेदार
बिगड़ी हवाओं को ना दोष दे सकेगें हम
नफरत का बीज बोया वो अब हो गया तैयार
जब हमको कभी भायी ना इन फूलों की हंसी
खुशियों की जगह आँसूं करने होगें ही स्वीकार
घर आग से तेरा घिरा झुलसेगा मेरा भी
क्यों कि तेरे घर के हैं हम भी एक हिस्सेदार
एक एक करके पंछी सभी उड़ गये कहीं
पतझड़ गया मगर ना कभी आयी फिर बहार
सुलझायी हमने जिन्दगी पर ना सुलझ सकी
उलझन नयी आ के खड़ी हो जाती है हर बार
शालिनी शर्मा
जिन्दगी जैसी भी थी वैसी ही काट ली
खुशियां पास जितनी थी वो सारी बांट ली
उसने सफर में फूलो की राहें सभी चुनी
हमने ड़गर कांटो से भरी सारी छांट ली
हमने खटास रिश्तो में पड़ने कभी ना दी
एक एक करके खोल हमने सारी गांठ ली
जब होने लगी गहरी खाई दरमियां अपने
वो और गहरी ना हो उससे पहले पाट ली
उसने दुआएं जितनी भी दी सब समेट ली
सारी दुआं सिर आँखों पे मस्तक ललाट ली
वो बेहतरी चाहती है मेरी ड़ाटती तब ही
हमने दुआ समझ के उसकी सारी डांट ली
शालिनी शर्मा
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