त्रिभंगी छन्द
मेघा ना बरसे पन घट तरसे खग मृग झुलसे दुखदायी
धरती है प्यासी घोर उदासी बूंद जरा सी दिख आयी
हर्षित मन फूले दुख सब भूले बूंद को छूले जल लायी
टप टप घन बरसे टपकत नभ से सब जन हरषे मदु छायी
शालिनी शर्मा
नेता
करते मनमानी हैं अभिमानी मीठी बानी असुरारी
जनता को ठगते जेबे भरते नव नव करते मक्कारी
सब कार्य प्रणाली धोखे वाली दे बदहाली दुखकारी
ये दुख के दाता देश विनाशा खाये सब्जी तरकारी
Comments