अन्दर से कुछ और हैं बाहर से कुछ और
चेहरे पर मुस्कान है नम नयनो के छोर
जो चाहा वो ना मिला अनचाहा है पास
खुशियां तो दिखती नही सारा जहां उदास
हर दिल में इक पीर है हर दिल गम से चूर
बेमतलब की जिन्दगी जीने को मजबूर
इन बच्चो को देखिये भूख से हैं बेहाल
ये कैसे जी पायेगें ये जब हैं कंकाल
जो अच्छा है ठीक है पर कुछ तो बेकार
अच्छे का हो अनुसरण बुरे में हो सुधार
शालिनी शर्मा
अपनी उघड़ी जिन्दगी पैबन्द से वो सी रहे
बद से भी बदतर यहाँ पर जिन्दगी जो जी रहे
सूघंने से ही जिसे हो जायेगी उल्टी हमें
लोग एेसा नालियों का जल यहाँ पर पी रहे
शालिनी शर्मा
वो आये और क्या क्या हमें कहते चले गये
शालीनता थी हममें सब सहते चले गये
भाषा का वो विष दे रहे थे हमने पी लिया
फिर जख्म आंसू बन गये बहते चले गये
शालिनी शर्मा
धुंधला धंधला चाँद चाँदनी हलकी सी छिटकी है
ओस की बूँदो की चादर में कली कली सिमटी है
आँख खोल कर धीरे तितली देख कली मुस्काती है
जो पराग की खोज में आ कर गुंचो से लिपटी है
शालिनी शर्मा
अज्ञानता के बन्धन को काटती कलम
ये ज्ञान का उजाला भी बांटती कलम
जिसने कलम को सच्चा साथी बना लिया
वो तलवे तख्तो ताज के नही चाटती कलम
शालिनी शर्मा
सुबह से पहले ही रात हो गयी
जिन्दगी दुश्वारियों में खो गयी
धूप छिटकी भी नही थी राह में
बारिशे मन्जिल का पता धो गयी
शालिनी शर्मा
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