दोहे,मुक्तक



HINDI POEMS
अन्दर से कुछ और हैं  बाहर से कुछ  और
चेहरे पर  मुस्कान है  नम  नयनो  के  छोर

जो चाहा वो  ना मिला  अनचाहा  है  पास
खुशियां तो दिखती नही सारा जहां  उदास

हर दिल में इक पीर है  हर दिल गम से चूर
बेमतलब  की  जिन्दगी  जीने  को  मजबूर

इन  बच्चो  को  देखिये  भूख  से  हैं बेहाल
ये   कैसे  जी  पायेगें    ये  जब  हैं  कंकाल

जो अच्छा  है ठीक है  पर कुछ  तो  बेकार
अच्छे  का हो अनुसरण  बुरे  में  हो  सुधार
                                     शालिनी शर्मा
अपनी  उघड़ी  जिन्दगी पैबन्द से  वो सी  रहे
बद से भी बदतर यहाँ पर जिन्दगी जो जी रहे
सूघंने  से  ही   जिसे  हो  जायेगी  उल्टी  हमें
लोग  एेसा नालियों  का जल  यहाँ पर पी रहे
                                    शालिनी शर्मा

वो आये और क्या क्या हमें कहते चले गये
शालीनता थी  हममें  सब  सहते  चले  गये
भाषा का वो विष दे रहे  थे हमने पी लिया
फिर जख्म आंसू बन  गये बहते  चले  गये
                           शालिनी शर्मा

धुंधला धंधला चाँद  चाँदनी हलकी  सी  छिटकी  है
ओस की बूँदो की चादर  में कली  कली  सिमटी  है
आँख खोल कर धीरे तितली देख  कली मुस्काती है
जो पराग की खोज  में आ  कर  गुंचो से  लिपटी है
                                         शालिनी शर्मा


अज्ञानता   के  बन्धन  को  काटती  कलम
ये  ज्ञान   का   उजाला  भी  बांटती  कलम
जिसने कलम को  सच्चा साथी  बना लिया
वो तलवे तख्तो ताज के नही चाटती कलम
                             शालिनी शर्मा

सुबह से  पहले  ही रात हो  गयी
जिन्दगी  दुश्वारियों  में  खो  गयी
धूप छिटकी भी नही थी  राह  में
बारिशे मन्जिल का पता धो गयी
                         शालिनी शर्मा

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