शालिनी शर्मा की कवितायें


HINDI POEMS
नमस्कार दोस्तो
फिर से हाजिर हूँ प्रेरक प्रतिक्रिया से नवाजियेगा
मुक्तक
मुख पर घूंघट डार डार सेकत रोटी पोषक आहार
गरमागर्म खिला चूल्हे की रोटी  देती  सबको प्यार
मूरत  ममता  की सदियों से  नेह  लुटाती आयी है
बस रसोई ही जीवन उसका छोटा है उसका संसार
ऐसा कहा क्या उसने  जिसने  रूला दिया
कुछ भी गिला नही है सबकुछ भुला दिया
पत्थर से हो गये हैं  खा  खा के  चोट  हम
अहसास दर्दे--दिल का  हमने  सुला  दिया
                         शालिनी शर्मा

समुन्दर शान्त, तूफां के  मगर  आसार है अन्दर
उजाले बस दिखावे के बहुत अन्धियार है अन्दर

चमकती चाँदनी ,हीरा, तिजोरी  सब  छलावा  है
जनाजा  बेटे  का  कन्धे पे  भारी ,भार है अन्दर

निवाले छीन  के  मेरे  वो  घर  अपना  सजाते है
गरीबो  से  दिखावा  प्यार , अत्याचार  है  अन्दर

ना करना तुम कभी विश्वास बाते  दोगली उसकी
पैगामे    दोस्ती  धोखा   तनी  तलवार  है  अन्दर

ना हमदर्दी दया करूणा ना धीरज धैर्य अपनापन
बिका बेमोल ना  कुछ भी, सजा  बाजार है अन्दर

सियासत ने उठाया फायदा नफरत जगा  दिल में
सदन में तो सभी मतलब के केवल यार हैं अन्दर
                                          शालिनी शर्मा

सारे  सवाल   जिन्दगी   के   हल   नही    होते
हैं   खार  बहुत  राह  में  मखमल     नही  होते

कुछ    लोग    अश्क    देगें    परेशान    करेगें
खुशियों से  भरे   ही  यहाँ  बस  पल  नही होते

नफरत का घर बना दिया अच्छा भला दिल था
अच्छा  था  सियासी  अगर  ये  दल  नही  होते

तहजीब  और  अमन  को    बचाना  जरूरी  है
वरना  शहर  में    ये    जले   महल   नही  होते

आँखो  की  किरकिरी भी लोग  बनते  है  कभी
सब  लोग  आँख  का   मेरी  काजल  नही  होते

मासूमियत   बच्चे   की   जमाने   ने   छीन   ली
मासूम  ही   रहता   वो   अगर   छल  नही  होते
                               शालिनी शर्मा

तुम्हारा  चुप  सदा  रहना  हमारी  हार  जैसा  है
तुम्हारा  रुठना  इस  बार  भी  हर  बार जैसा  है
चाह मकरन्द की लेकर गये थे पास उसके  पर
वो दिखता है गुलाबो सा असल में खार जैसा  है
                                   शालिनी शर्मा

सच को  सच  कहने  वालो  को कष्ट उठाना पड़ता  है
सच की राहें हैं  मुश्किल  क्या  नही  गंवाना  पड़ता  है
जो  चाहते  हैं सत्य  छुपाना उनको  शायद  नही  पता
सच नही छुपता उसको   तो आगे ही  आना पड़ता है
                                        शालिनी शर्मा

नफरत की आग पे ना हाथ अपने  सेकिये
गलियों में टुकड़े कांच के ना इतने फेकिये
अपनी खडी फसल पे शत्रुओं की है  नजर
हो  बेखबर  यूं आँख  मूंद  कर  ना  लेटिये
                                 शालिनी शर्मा
             

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