बिटिया,शालिनी शर्मा


HINDI POEMS
ड़ाल के घूंघट चार नारियां खड़ी खड़ी बतियायें
कोई ससुर से दुखी किसी को सास,नन्द ना भायें
जल्दी जल्दी काम समेटा खान पान निपटाया
मिल के दिल हल्का करती जब याद पीहर की आये
शालिनी शर्मा


गीत
कैसी आन पड़ी दुश्वारी
रोती इक माता बेचारी
ढूढ़ें अपनी राजदुलारी
वापस लाओ रे
ना यूं बहलाओ रे
द्वार से वो ना नजर हटाये
बिलख बिलख कर रोती जाये
जो भी उससे मिलने आये
बच्ची का सामान दिखाये
सबसे करती है मनुहार
वापस ला दो बस इक बार
ना नजर झुकाओ रे
ना यूं------------------
कैसे मां के रूकेगें आंसू
ड़रे देख वो घर का चाकू
इसके जैसा ही वो होगा
जो आंखो में घोपा होगा
ऐसे ही से काटा होगा
तब टुकड़ो में बाटा होगा
ये दूर हटाओ रे
ना यूं------------------
तुम शर्मिंदा ये शर्मिंदा
पर मां कैसे रहेगी जिन्दा
सपनो में जब भी आयेगी
प्रश्न कई देकर जायेगी
क्या उत्तर मैं दे पाऊंगी
मां बेबस है बतलाऊंगी
चीख दबवाओ रे
ना यूं-----------------
शालिनी शर्मा

मुक्तक
सुनने वाला कोई नहीं है किससे करे पुकार
भीषण गर्मी झेल रहे हैं हम पानी की मार
बूंद - बूंद को तरस रहे हैं सूखे ताल तलैया
जल जीवन है बिना नीर जीवन कितना दुशवार 
शालिनी शर्मा



हाथ में खंजर वो ले हमको ड़राने आ गये
साथ में ले के मशाले घर जलाने आ गये


थी बड़ी खामोशियां पर फिर धुंआ उठने लगा
वो हवा शोलो को दे लपटे बढ़ाने आ गये

आजतक उन पे यकीं था पर यकीं  जाता  रहा
वो कहा करते थे सच अब सच छिपाने आ गये

थे बड़े हैरान हम ऐसा भ्रमित किसने किया
प्यार के रिश्ते भुला जो सब मिटाने आ गये

था यकीं  जिनपे  हमारा वो  ड़ुबाने लग  गये
जिनसे थी नफरत हमें पर वो बचाने आ गये
शालिनी शर्मा

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