HINDI
POEMS
वापस लेकर जाते है ,निर्जीव देह फूलो की
निर्धन होना है भारत में ,सर्व उच्च अपकार
मेरी अब हर बात लगे ताना उनको
मेरे हाथ का भाता नही खाना उनको
मेरे हाथ का भाता नही खाना उनको
दाल भात को लेकर जब तन जाती है
मुश्किल हो जाता है सह पाना उनको
मुश्किल हो जाता है सह पाना उनको
पता नही किस बात पे टेढ़े हो जाये
कठिन बड़ा सीधा लेकर आना उनको
कठिन बड़ा सीधा लेकर आना उनको
ज्यों ज्यों उम्र बढ़ी तो वो सठिया गये हैं
मैने तो इतना ही बस जाना उनको
मैने तो इतना ही बस जाना उनको
पति है परमेश्वर माँ ने समझाया था
पर मैने मानव भी नही माना उनको
पर मैने मानव भी नही माना उनको
नारी अबला नही है वो अब सबला है
बात बात में अब है ये समझाना उनको
बात बात में अब है ये समझाना उनको
है पवित्र फेरो का गठबन्धन कितना
आजीवन तो पड़ेगा साथ निभाना उनको
आजीवन तो पड़ेगा साथ निभाना उनको
शालिनी शर्मा
बनी जान पे अपनी ,कोई तो कर दे उपकार
अस्पताल में आये लेकर ,हम बच्चे बीमारवापस लेकर जाते है ,निर्जीव देह फूलो की
निर्धन होना है भारत में ,सर्व उच्च अपकार
दोहे
उसको ही दो मशवरा , जो माने हर बात |
मत दो उसको राय जो ,करे कुठाराघात ||
मत दो उसको राय जो ,करे कुठाराघात ||
संकट में हो आप तो , खोये स्वयं विवेक|
बेवकूफ का साथ तब , बने मुसीबत एक |
बेवकूफ का साथ तब , बने मुसीबत एक |
बेककूफ हो दोस्त जो ,सावधान ही ठीक |
मूर्ख भरोसे मत रहो , है ये बात सटीक ||
मूर्ख भरोसे मत रहो , है ये बात सटीक ||
ड़ाली वो ही काट दी , जिस पर बैठा आप |
कण्ठ दबाता जो उसे , मूर्ख दे रहा नाप ||
शालिनी शर्मा
न अनाज , दाने को तरसे , सूखे से बेहाल
उमस जलाये, सूखे सूखे नदी तलैया ताल
बूंद गिरे,आकाश निहारे ,पर बरसे बस आग
धमकी देते ,कटे शजर बदला लेगें हर हाल
शालिनी शर्मा
उमस जलाये, सूखे सूखे नदी तलैया ताल
बूंद गिरे,आकाश निहारे ,पर बरसे बस आग
धमकी देते ,कटे शजर बदला लेगें हर हाल
शालिनी शर्मा
फोटो गूगल से आभार
फोटो गूगल से आभार
राह देखे दुष्यन्त की , शकुन्तला अकुलाये
प्रिय मिलन की आस है ,धीरज ना रख पाये
नीर भरन पनघट जाये,घट खाली वापस लाये
खाली गगरी सा मन रीता, नयन नीर ना आये
शालिनी शर्मा
प्रिय मिलन की आस है ,धीरज ना रख पाये
नीर भरन पनघट जाये,घट खाली वापस लाये
खाली गगरी सा मन रीता, नयन नीर ना आये
शालिनी शर्मा
चूंहे बिल्ली सा दिखे , घमासान हर ओर|
ताकतवर सब चाहते ,मिल जाये कमजोर ||
ताकतवर सब चाहते ,मिल जाये कमजोर ||
आगे बढ़ने की मची, सबमें इतनी होड़ |
गिरा दूसरे को सभी , पूरी करते दौड़ ||
गिरा दूसरे को सभी , पूरी करते दौड़ ||
ना मन में आदर कहीं ,नही प्रीत ना नेह |
मन में कालापन भरा ,चमक रही है देह ||
मन में कालापन भरा ,चमक रही है देह ||
शालिनी शर्मा
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