विधाता छन्द,रोला छन्द, मुक्तक शालिनी शर्मा दोहा मुक्तक(13+11) सिंहावलोकन दोहा मुक्तक

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HINDI POEMS
 1222 1222, 1222 1222
विधाता छन्द
चढ़ा आये वतन पर सिर ,हराया था पराजय को
नही आये वो वापस फिर,रूलाया था हिमालय को
जरा जाके बुला लाओ, न लोरी जो सुनी रोया
पता क्या माँ बिचारी को,बिछा बारूद वो सोया
शालिनी शर्मा









रोला छन्द ११+१३ 
पत्थर के हैं शहर ,फसल लहरा न सकेगी
नकली हो जब फूल,तो गन्ध आ न सकेगी
चुभा पैर में कांच , चला वो जो जूते बिन
काया रगड़ से तब, तुम्हे बचा न सकेगी

फल लगे तो पेड़, कितना ज्यादा झुका है
झुक गये हवा तेज, तुम्हे हिला न सकेगी
जमाना गया गुजर,उनकी हसीं को देखे
बाकी बचा न चैन, रौनके आ न सकेगी
कोई बचा न ख्वाब, बाकी बची ना हसरत
बिन बोले क्या वजह,वो कुछ बता न सकेगी
                               शालिनी शर्मा
                   
मुक्तक 
जीवन में खलल डाल दूं मैं वो बवाल हू
निर्धन ना जिसको खा सके वो मंहगी दाल हूं
उत्तर न जिसका मिल सका क्यों थमती नही हूं
मंहगाई का उलझा हुआ वो इक सवाल हूं
शालिनी शर्मा
क्या सभ्य कहेगें उन्हे क्या वो सुशील हैं
जिनकी न बातो में कोई दम न दलील हैं
जिनका विरोध लक्ष्य चाहें बात हो सही
व्यक्ति असभ्य ,अन्य को करते जलील हैं




शालिनी शर्मा      


    सिंहावलोकन दोहा मुक्तक   

सावन में परदेस में,ढूंढे मनवा मीत

मीत बिना जग सून है,कैसी उनकी प्रीत
सखियां झूले ड़ाल के,गाये कजरी गीत
गीत सुहाये ना झूले,भाये ना ये रीत
शालिनी शर्मा
 
.लहू , जान दे वीर ने ये कहा
निछावर सभी बस वतन चाहिये
बिना ड़र परो बिन लिये हौंसला
उड़ा वो उसे बस गगन चाहिये


असम्भव यहां काम कोई नही
दुआ. और कुछ बस लगन चाहिये

रहे वो जहां चैन , आराम से
खुशियों भरा बस भवन चाहिये

कली ने कहा कुछ कमी है उसे
हसंता हुआ बस चमन चाहिये

नदी पास हो , पेड़ भी हो घने
बहे प्यार वो बस पवन चाहिये

गीतिका---2122 2122 2122 2
देश का नेता असल बनकर दिखाना है
सांस में है दम तभी तक देश खाना है

है तभी तक वास्ता तुम वोट जबतक दो
बाद में पांचो बरस ना मुख दिखाना है


फैलती है फैल जाये आग नफरत की
आग को दे कर हवा तुमको लड़ाना है

तोड़ देना जीत कर वादे सभी लोगो
झूंठ तो अपना हुनर काफी पुराना है

काम अपना लूट,चोरी, धमकियां देना
कारनामें काले करना और ड़राना है

जानते जो हैं हमें वो बोलते हैं कब
खोल अपना मुख किसे मरना मराना है
शालिनी शर्मा

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