HINDI
POEMS
पेड़ मत काटो
दोहे
क्या देकर हम जा रहे,क्या है उनके पास
क्या सोगाते दे चले,जो हैं अपने खास
दिया प्रदूषण और दी,बीमारी सोगात
दिया धुआं इतना अधिक,लगती थमने सांस
खानपान दूषित हुआ,खत्म नीर के सोत्र
काट पेड़ काट कर कह रहे हमने किया विकास
हाय प्रदूषण बढ़ रहा,मत काटो तुम वृक्ष
बिठा परिन्दे ड़ाल पर ,दे करने परिहास
खूब निकल कर घुल रही,ये सीओटू गैस
सूरज ले हम आ गये ,तेरे जलने पास
खुश्बू उपवन में नही, सूखे फूल गुलाब
कांटो से जीवन भरा,बिखरे सारे ख्वाब
पंछी पिंजरे में पड़े,उड़ने से लाचार
बिना परो के दूर नभ, राहें हैं दुश्वार
किया समर्पण हर जगह,नीर बहे पुरजोर
नारी जीवन की व्यथा,समझ सके ना और
क्या खाये निर्धन यहाँ,महंगा बहुत अनाज
दो रोटी की खोज में,बेच रही वो लाज
छोड़ सके न कुरीतियां,पड़ी बेड़िया पैर
सिर्फ दिखावे के लिए,शिक्षित दिखे समाज
दूर अन्धविश्वास हो,प्रयत्न करे न लोग
गले लगाते शान से,सारे सड़े रिवाज
निस्वार्थ सेवा करे,काम करे जो नेक
उन्हे नमन आदर सहित,सबको उनपर नाज
बहते आँसू पोछते,रखते सेवा भाव
करते पर उपकार जो,कम प्राणी हैं आज
ज्यादा ना हम कुछ करे,थोड़ा दे सहयोग
तिमिर जहां फैला सदा,हो दिनकर आगाज
बीमारी ना ठीक हो,ठीक न होवे घाव
रोग निवारण के लिए,खोजे सही इलाज
फूल महक देगा सदा,जहर उगलता नाग
गिद्ध खायेगा लाश को,बदले नही मिज़ाज
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद उप्र
मुक्तक
असमंजस दुविधा बड़ी अपना कोन पराया
जिनको अपना था कहा ऐसा घाव लगाया
कुछ घावो के मरहम और होता नही इलाज
अभी तलक वो भरा नही सोचा तो भर आया
शालिनी शर्मा
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