गज़ल,कविता

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HINDI POEMS

2122  1122   1122  22/112
 बादल आओ जल बरसाओ
भूमि पूछे तुम नभ पर ,घन आते क्यों हो
 बूंद नही जब बरसानी,तब छाते क्यों हो

भूमि  प्यासी  जल  चाहे , मेघो  को देखे
पूछ  लो  आकर  पोधो, मुरझाते क्यों हो

फूल ने  भी हसरत  से , ऊपर  को देखा
खूब  पानी  बरसाओ , अलसाते क्यों हो

चाहते  धान  उगायें ,पर बो ना पाये
है किसानो घर सूखा,तड़पाते क्यों हो

ताल,तालाबो,घाटो पर प्यासे खग हैं
जोर से बरसो ,थोड़ा ,बरसाते क्यों हो

हाथ  बंधे  सबके  हैं , करते   हैं  विनती
कष्ट को और,बिना जल,बढ़वाते क्यों हो
                           शालिनी शर्मा
                          गाजियाबाद उप्र

दोहा गीतिका
करे बचाव
अमर नही कोई यहां,सबको जाना छोड़
पर आये समय से ही,जीवन में ये मोड़

बचे न जिम्मेदारियां,पूरे हो सब काम
कोरोना थम जा अभी,बन्द अभी हैं रोड़
                   
व्यस्त सभी है डाक्टर,फुल है सारे बैड़
अगर पडे बीमार तो,बढ़ जायेगा लोड़

कुछ दिन घर में कैद रह,घरो में कर विश्राम
अभी नही अच्छी तेरी,बेमतलब की दोड़

वैज्ञानिक सब व्यस्त हैं,खोज रहे वैक्सीन
इटली,चीन,जापान में,लगी हुई है होड़

कुछ दिन की दूरी भली,जीते इससे जंग
इस संकट का भी हमें ,मिल जायेगा तोड़
                        शालिनी शर्मा


गज़ल
जब गलियो में सन्नाटा है
तब दोष क्या है मीनारो का

कश्ती को डुबाया मांझी ने
तब दोष क्या है पतवारो का

जब चमन उजाड़े माली ही
तब दोष क्या है गुलजारो का

घर बीच खिची दीवारे हो 
तो दोष क्या है दीवारो का

जंगल कम, बाघ शहर में हैं
तो दोष क्या है खूंखारो का

जब वारिस ही फूंके घर को
तब दोष क्या है अंगारो का

बादल बिन बरसे लौट गये
तब दोष क्या है फुंहारो का
                शालिनी शर्मा
गाजियाबाद उप्र


2122  2122  2122 212
गजल
आदमी ना एक भी घर से निकलना चाहिये
बिन वजह ना रोड़ पर कोई टहलना चाहिये

है जरूरी आँख राजा की कभी ना बन्द हो
रात में जासूस भी उसको बदलना चाहिये

मांगने का हक भला क्यों छीनते हो भूख से
सब घरो में रोज क्या चूल्हा न जलना चाहिये

सिर्फ वादो से हमें मूरख बनाते हैं सदा
सोचते हैं वो सदा हमको बहलना चाहिये

वो मुझे बंजर बना के चाहते हैं धान,वन
आदमी को भी कभी कुछ तो सम्भलना चाहिये

एक चिड़िया ही नही थी,टिड्डियों का था कहर
जो हुआ होता वही ,ना हाथ मलना चाहिये




मेरी हर उम्मीद को उसकी इक जमात ने धो ड़ाला
मेरे निर्जन खेत में उसने खरपतवार को बो ड़ाला
ये उसकी साजिश है या फिर नफरत का सैलाब कहूं
जिसकी ना पहचान कोई है जहर भी उसने वो ड़ाला
                          शालिनी शर्मा
                        गाजियाबाद उप्र

फोटो इन्टरनेट गूगल से साआभार





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