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HINDI
POEMS
छन्द - बाला ( वार्णिक )
मापनी 212 212 212 2
गीतिका
आज भी आप ऐसे मिले हैं
बीच जैसे हजारो गिले हैं
कुछ लगा है बुरा तो बताओ
होंठ क्यों इस तरह से सिले हैं
देख कर यूं तुम्हे अजनबी सा
बाग में फूल भी ना खिले हैं
चांद की चांदनी में कमी है
ये सितारे भी न झिलमिले हैं
हम अभी भी इसी सोच में हैं
घाव किसने दिये जो छिले हैं
रूठना और फिर मान जाना
ये सभी प्यार के सिलसिले हैं
शालिनी शर्मा
बहुत दिनो के बाद खुली है मधुशाला
ढ़ेड़ माह से हर ठेके पर था ताला
होठ भी सूखे थे सूखा था हर प्याला
मदिरालय में पहुंचा हर पीने वाला
खैर करेगा इनकी वो उपर वाला
डर कोरोना का मदिरा ने धो ड़ाला
छूट रहा है सब्र पिला जल्दी हाला
कहीं न फिर से मोदी जी ठोकें ताला
खोल दिये ठेके जिसने, हैं दिलवाला
ठर्रा,विस्की,बीयर सब हाजिर लाला
शालिनी शर्मा
मुक्तक
जिन को पार नदी करनी,वो हर जोखिम सह जाते हैं
पस्त हौंसले वाले कब कोई ऊंचा महल बनाते हैं
जब सोचा हो हर हालत में मंजिल को पाना ही है
तब राही को नई राह के नये निशां मिल जाते हैं
शालिनी शर्मा
मुक्तक
हंसते हुए बच्चे किसे अच्छे नही लगते
मासूम ये सच्चे किसे अच्छे नही लगते
हो कर बड़ा पत्थर में बदल जाता आदमी
घट मिट्टी के कच्चे किसे अच्छे नही लगते
शालिनी शर्मा
गीत
सपने जब टूटे तेरे तो तू रो,रोकर शौक मना
खूब कोस कुदरत को, पर फिर सपनो का घर पुन: बना
कोई जब भी पढ़े तुझे ना हारा हुआ तुझे पाये
टूट के कैसे जुड़ा दुबारा वो किरदार नजर आये
कैसे सागर का खारा जल फिर पीने के योग्य बना
खूब कोस----------
कैसे सवंरेगा जीवन बस सपने,सैर सपाटो से
जीवन तो है भूलभुलइया,और युक्त है कांटो से
सपनो को पूरा करने की खातिर जग,पहचान बना
खूब कोस----------
तोड़ निराशा की जंजीरे,आल्हादित घुंघरू खनका
पंख खोल ,उड़ नील गगन में, बाज से भी ऊपर तक जा
सपनो को परवाज दे अपने, फिर,पाने का लक्ष्य बना
खूब कोस---------
शालिनी शर्मा
हास्य घनाक्षरी छन्द
रावण की बहन सूपर्णखां ने जा के वन,
राम लखन को ये धमकी सुनायी है
करना पड़ेगा तुम्हे मुझसे विवाह
मेरे,मन में छवि बसी है प्रीत समायी है
राम लखन बोले हम तो विवाहित हैं,
गलत जगह पे तूने अर्जी लगायी है
तुम हाथ जोड़ो और विनय वहां पे करो,
राहुल की मंइया अभी बहू नही लायी है
शालिनी शर्मा
छन्द - बाला ( वार्णिक )
मापनी 212 212 212 2
गीतिका
आज भी आप ऐसे मिले हैं
बीच जैसे हजारो गिले हैं
कुछ लगा है बुरा तो बताओ
होंठ क्यों इस तरह से सिले हैं
देख कर यूं तुम्हे अजनबी सा
बाग में फूल भी ना खिले हैं
चांद की चांदनी में कमी है
ये सितारे भी न झिलमिले हैं
हम अभी भी इसी सोच में हैं
घाव किसने दिये जो छिले हैं
रूठना और फिर मान जाना
ये सभी प्यार के सिलसिले हैं
शालिनी शर्मा
बहुत दिनो के बाद खुली है मधुशाला
ढ़ेड़ माह से हर ठेके पर था ताला
होठ भी सूखे थे सूखा था हर प्याला
मदिरालय में पहुंचा हर पीने वाला
खैर करेगा इनकी वो उपर वाला
डर कोरोना का मदिरा ने धो ड़ाला
छूट रहा है सब्र पिला जल्दी हाला
कहीं न फिर से मोदी जी ठोकें ताला
खोल दिये ठेके जिसने, हैं दिलवाला
ठर्रा,विस्की,बीयर सब हाजिर लाला
शालिनी शर्मा
मुक्तक
जिन को पार नदी करनी,वो हर जोखिम सह जाते हैं
पस्त हौंसले वाले कब कोई ऊंचा महल बनाते हैं
जब सोचा हो हर हालत में मंजिल को पाना ही है
तब राही को नई राह के नये निशां मिल जाते हैं
शालिनी शर्मा
मुक्तक
हंसते हुए बच्चे किसे अच्छे नही लगते
मासूम ये सच्चे किसे अच्छे नही लगते
हो कर बड़ा पत्थर में बदल जाता आदमी
घट मिट्टी के कच्चे किसे अच्छे नही लगते
शालिनी शर्मा
गीत
सपने जब टूटे तेरे तो तू रो,रोकर शौक मना
खूब कोस कुदरत को, पर फिर सपनो का घर पुन: बना
कोई जब भी पढ़े तुझे ना हारा हुआ तुझे पाये
टूट के कैसे जुड़ा दुबारा वो किरदार नजर आये
कैसे सागर का खारा जल फिर पीने के योग्य बना
खूब कोस----------
कैसे सवंरेगा जीवन बस सपने,सैर सपाटो से
जीवन तो है भूलभुलइया,और युक्त है कांटो से
सपनो को पूरा करने की खातिर जग,पहचान बना
खूब कोस----------
तोड़ निराशा की जंजीरे,आल्हादित घुंघरू खनका
पंख खोल ,उड़ नील गगन में, बाज से भी ऊपर तक जा
सपनो को परवाज दे अपने, फिर,पाने का लक्ष्य बना
खूब कोस---------
शालिनी शर्मा
हास्य घनाक्षरी छन्द
रावण की बहन सूपर्णखां ने जा के वन,
राम लखन को ये धमकी सुनायी है
करना पड़ेगा तुम्हे मुझसे विवाह
मेरे,मन में छवि बसी है प्रीत समायी है
राम लखन बोले हम तो विवाहित हैं,
गलत जगह पे तूने अर्जी लगायी है
तुम हाथ जोड़ो और विनय वहां पे करो,
राहुल की मंइया अभी बहू नही लायी है
शालिनी शर्मा
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