HINDI
POEMS
बेजुबान मत बन कर बैठो खुलकर अपनी बात कहो
गीतिका
बेजुबान मत बन कर बैठो खुलकर अपनी बात कहो
दिन को दिन बोलो, मत अंधियारो को कभी ,प्रभात कहो
कुछ तो अब करना ही होगा आंख मूंद क्या काम चले
मन को कुछ करने का क्रम दो, शून्य और निर्वात भरो
शुद्ध पवन,आहार शुद्ध हो और शान्त माहोल रहे
करो मरम्मत बिल्ड़िंग की,दृड़ता से हर आघात सहो
ना जाति से छोटा कोई, ना जाति से बड़ा कोई
कर्म बड़ा तो बड़ा आदमी,कर्म को ही अभिजात कहो
गिद्ध खड़े है घेर तुम्हे, गर मरे तो वो खा जायेगें
लाश ही गिद्धो का भोजन क्या बात नही है ज्ञात कहो
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद उप्र
दोहा गीतिका
आम आदमी कितना चींखे,सुनता कोन पुकार
सत्ता में कोई भी दल हो, है समान व्यवहार
निजीकरण करना है उनको,निजीकरण हथियार
नेताओं को मनमानी का, है हासिल अधिकार
बड़े बड़े उद्योगपति जी, प्रेषित है आभार
रोजगार जब देना हमको , देना सही पगार
गिरवी सांसे तक गरीब की,है ड़कैत बाजार
नही झेलते पैसे वाले , महंगाई की मार
मजदूरो की छीन ली रोटी,और किया बेकार
दिये पांव में छाले उनको,नही किया उपचार
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद उप्र
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