HINDI
POEMS
रात में जग अलसाया सा है नींद की पाकर मदहोशी
रात ने बाते की चंदा से बीच बिछाकर खामोशी
सजा चांदनी आसमान ने चांदी का आंचल पहना
दूर सितारे करते दीखे मुंह छिपाकर सरगोशी
शालिनी शर्मा
बात चली जब सपनो की तब हुई उजागर मायूसी
नही किसी की होती जग में उसे बताकर जासूसी
बिना ज्ञान और बिन शिक्षा के कई समस्या खड़ी हुई
अन्धभक्त अनपढ़ बनते, बाते नाकर दकियानूसी
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद उप्र
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गीतिका
पंछी के पंखो को समय ने काट ड़ाला है
उड़ने की हसरते थी पर पिंजरे में ताला है
आंधी को जिद थी घर मेरा उजाड़ ड़ालेगी
सब कुछ बिखर गया मगर मैने सम्भाला है
महफूज हूं मुझे लगा जिस की पनाह में
मेरी तरफ उस शक्स ने पत्थर उछाला है
हमको पता है हमअगर टूटे बिखर गये
वो भी न बचेगा जो थोड़ा सा उजाला है
देखो मेरे महल को खंडहरो में बदलते
मजबूत दरारो ने घर को तोड़ ड़ाला है
आहट बुरे समय की कभी भी सुनी नही
हमने समय को हाथ से खुद ही निकाला है
जाना है जिसे वो कहां विनती पे रूकेगा
परदेसियों से मोह तो दुख देने वाला है
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद उप्र
औकात मेरी बतलाने वाले क्या सच को सुन सकते हैं
जिनका अपना घर कांच का हो क्या वो पत्थर चुन सकते हैं
जो उठा रहे हैं उंगली मेरे हर सच्चे किरदार पर
मेरे हिस्से में कितनी ठोकर हैं क्या वो गिन सकते हैं
मैने पूरा जीवन खोया जिसको गगन बिठाने में
उसी शक्स की खातिर मेरे अपने पर छिन सकते हैं
चोट लगाने वाले ने सोचा तो होता दर्द मेरा
कुछ घाव भरा नही करते हैं नासूर भी वो बन सकते हैं
जैसी करनी वैसी भरनी सब झूठ है सिर्फ कहावत है
छल,झूठ,कपट खुदगर्जी से तो शहनशाह भी बन सकते हैं
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद उप्र
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