दोहे



HINDI POEMS

दोहे
कुछ को रोटी चाहिए ,कुछ को बस पकवान
नेताओं   की  भूख  का, अन्त  नही,श्री मान

किन    मुद्दो  पर  सोचिए , करना हमें विचार
महंगी  महंगी  फीस  के   ,बन्द  करो बाजार

सस्ती  शिक्षा  दीजिए , सस्ता  हो  उपचार
रोजगार  उपलब्ध  हो  , खूब   बढ़े   व्यापार

नेताओं  से   पूछिए  , क्या  इन्कम  के  स्रोत
प्रोपट्री   कैसे    बढ़ी  ,   कहां   खरीदे  प्लोट

नेता बनने के लिए , शिक्षा नही अनिवार्य
मन्त्री बन हो जायेगा ,थम्ब से ही सब कार्य

प्रोपट्री को कीजिए ,तुम आधार से लिंक
पारदर्शी हो जायेगा ,हर नेता का थिंक

नेता खरपतवार हैं ,सब नेता हैं जोंक
असली सूरत देख के,तुम जायेगें चोंक
                       शालिनी शर्मा

दोहा मुक्तक
मैं बेटी मजदूर की,  पग  मेरे मजबूत
कांधे जिम्मेदारियां,श्रम का यही सबूत
पथरीला है रास्ता, मन्जिल है अन्जान
संग हौंसलों के चली,मुझमें जोश अकूत
                      शालिनी शर्मा

बाते कही  सुनी न  दिलबर  से प्यार की
मिलती  नही  उसे  अब  राते  करार  की

वो रात दिन जिसे सुन, थकता न था कभी
भाती  नही उसे धुन,  बोली  सितार  की

कलियां नही खिली न खिले  फूल बाग में
बगिया  नहीं  सुना  रही ग़जलें बहार की

धोखा मिला, नसीब, करें क्यों भला गिला
हम  यातना  दिखा न सके  क्रूर  यार  की

आँसूं छिपा लिये न कभी भी किया गिला
हंसते रहे  लेकर सदा खुशियां उधार की

नासूर  है   सभी   गम  कोई   दवा   नही
कर दो विदा अब  देकर मिट्टी मजार की
                       शालिनी शर्मा
बद से बदतर हो गया है पश्चिम बंगाल
ममता जी के राज में, होता रोज बवाल

आँख खोलकर देखिए, नफरत का तूफान
जिन्दा जलते लोग हैं, देखो जले मकान

अपराधी बेखोफ हैं, डाल  रहे  पैट्रोल
हिमीकरण को चाहिए, योगी सा ग्लाइकोल

योगी जैसा चाहिए, बुलडोज़र के साथ
सम्भव कौरव वध तभी, कृष्ण-पार्थ हों साथ

वध करने को दुष्ट का, त्यागो ममता प्यार
ममता को बंगाल में, मिले हार इस बार

तभी चलेगा चक्र क्या, जब सौ देंगे मार
चक्र सुदर्शन का सभी, वहाँ करें इंतजार
 — शालिनी शर्मा


नेताओं को जनता से सरोकार नही है
बेपेंदी  के  लोटे  कोई  आकार नही है

करते हैं चापलूसी  सिर्फ वोटो के लिए
बाकी कोई जनता से उन्हे प्यार नही है

जनता का खून पी के  वोट ये बढ़ाते है
लाशो  के ढ़ेर  के सिवा आहार  नही है

बदलेगी सोच नेता की सम्भव नही है ये
हालत  सुधरने  के  कोई आसार नही है

ऐशो आराम खुद के लिए जनता को ठेंगा
मंहगाई, भुखमरी  दी  रोजगार  नही   है

जनता जंहा थी जैसी थी वैसी ही रहेगी
होता  यहां  पे  कोई चमत्कार  नही   है

ये  हिप्नोटिज्म  की  कला से वादे बेचते
जनता  से  बड़ा  भोला खरीदार नही है
                         
कुछ खर्च किये बिन ही मुनाफा बड़ा
मिले 
नेतागिरी को  छोड़़ कोई  व्यापार नही है
                       शालिनी शर्मा

कविता मन के भाव को ,दे शब्दो का रूप
खामोशी  है रात की , और  सुबह  की धूप
राजा   का  अभिषेक है, है निर्धन की भूख
कविता  इक अहसास है, जिसके रूप अनूप
                            शालिनी शर्मा
कविता वो है मन  में घुल कर जो संस्कार बनाती है
माँ की गोद है कविता जब माँ शिशु सुलाती है
हंसी, वेदना,प्रेम,कपट,सुख,भूख सभी अहसास है
कविता  क्या है ये पढ़, सुन कर समझ में आती है



आ री गौरैया तू आ
लेकर आ अपना चूजा

चीं चीं गाती है
दाना चुग कर जाती है
पानी पीने आती है 
फिर फुर्र से उड जाती है
काम नही कोई दूजा
आ री गौरैया तू आ-----------

तिनका तिनका लाती है
अपना नीड़ बनाती है
नजर नही अब आती है
कहां तू गुम हो जाती है
कहीं नही मत अब तू जा
आ री गौरैया तू आ-----------
                    
तुझे तलैया भाती है
डुबकी मार नहाती है
दूर गगन उड़़ जाती 
 कीट पतगें खाती है
खाये जामुन,खरबूजा
आ री गौरैया तू आ-----------
                          शालिनी शर्मा


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