HINDI
POEMS
जो हमें मुर्दा समझकर छोड़ गये शमशान में
शब्द उनकी असलियत के कुछ पड़े हैं कान में
जो हमारी मोत पर रोये यहाँ सबसे अधिक
वो कहें वारिस घटा संपत्ति के सामान में
शालिनी शर्मा
चामर छन्द
212 121 212 121 212
हो न भेदभाव लोग सब यहाँ समान हों
पंख हों सभी उड़े़ अनन्त आसमान हो
हो न बन्दिशे न बेड़ियां,खुला विहान हो
हिन्द देश विश्व में सदा सदा महान हो
शालिनी शर्मा
जीवन कंटक पथ है सबको कांटो पर ही चलना है
राह के पत्थर ठोकर देगें गिर कर रोज सम्भलना है
जो राहों की बाधाओं से घबरा कर रूक जायेगा
कैसे मंजिल उसे मिले न घर से जिसे निकलना है
जगह जगह फैला अंधियारा उसको ऐसे दूर करें
वो दीपक उजियारा देगा पल पल जिसको जलना है
बीता समय न वापस आया आज में ही जीना होगा
कल पर जिसने किया भरोसा उसे समय ने छलना है
उसे नही भाता मेरा सिर स्वाभिमान से उठा हुआ
पर उसकी खातिर हमको थोड़ा भी नही बदलना है
खुशियों का व्यापार है मेरा आंसू नही सुहाते हैं
नही जिसे है परवाह उसकी खातिर न रो गलना है
शालिनी शर्मा
2122 2122 2122 212
सब भुला तेरी खता रिश्ता निभाना याद है
पोंछ के आंसू तेरे वो चुप कराना याद है
कोन है जो कर रहा गुमराह तुझको हर घड़ी
कान का खुद को तेरा कच्चा बनाना याद है
जब बड़ी नजदीकियां थी बीच अपने वो कभी
वो दिलो की बात अपनी सब बताना याद है
आ गई दीवार कैसे बीच में सबको पता
दी दगा तूने हमें, नजरे चुराना याद है
कर रहा है बिन वजह बदनाम दुनिया में हमें
वो हमारा बिन खता के सिर झुकाना याद है
छीन ली तूने हमारी सब अना, मजबूर हैं
वो जलालत का हमें सारा जमाना याद है
क्या किसी को दोष दे जब है बुरे हालात अब
तब समय अच्छा रहा,अब सब भुलाना याद है
शालिनी शर्मा
हानि लाभ जीवन मरण कुछ नही अपने हाथ
अन्त समय कुछ भी नही जाये अपने साथ
सदगुण और सत्कर्म ही देते है सन्तोष
जो भी जितना भी मिला उसे लगाओ माथ
शालिनी शर्मा
बरबादियों ने हर तरफ से घेर लिया है
न जाने क्यों खुशियों ने मुंह फेर लिया है
जीवन बता कमी कहां रही सजाने में
क्यों भाग्य पे अभाग्य को उकेर लिया है
शालिनी शर्मा
बस्तियों में आग जो मिल कर लगाते हैं यहां
वो ही सारे फायदे मिलकर उठाते हैं यहां
बिजलियों को भी पता है आज गिरना है कहां
मेरा घर जब बिजलियों को वो दिखाते हैं यहां
हैं बहुत खुश मन ही मन में जो मेरे मर जाने पे
वो ही सबसे ज्यादा आंसू,दुख जताते हैं यहां
मैं यहां सबसे बड़ा दुश्मन समझती हूं जिन्हे
मुश्किलों से हर घड़ी वो ही बचाते हैं यहां
जो यहां हैं जान मेरी,प्यारे हैं सबसे अधिक
दिल मेरा सबसे अधिक वो ही दुखाते हैं यहां
जो शरारों को हवा देते हैं अक्सर हर घड़ी
अपना घर न जाने कैसे वो बचाते हैं यहां
चाहती हूँ भूलना तुमको, न याद आओ मुझे
वो अभी भी और ज्यादा, याद आते है यहाँ
मैं जिन्हे इक आँख भी भाती नही हूं शालिनी
नाम वो बाजार में मेरा भुनाते हैं यहां
शालिनी शर्मा
गीत
न रोटी न दाल मिलेगी बस वादो को खाओ जी
वोट मांगते हैं तुमसे हमको सत्ता दिलवाओ जी
जनता की सेवा के बदले मेवा हम खुद खाते हैं
जनता कुछ गर मांग करे तो हम ठेंगा दिखलाते हैं
रोटी,कपड़ा और मकान बस हमको ही दिलवाओ जी
जनता जो देती है टैक्स,वो काम हमारे आता है
जनता को फ्री का लालच दे,देश को लूटा जाता है
देश को छोड़ो तुम तो बस, बिजली, पानी फ्री पाओ जी
रोजगार की बात करो मत,मंहगाई को रोओ मत
सेहत और शिक्षा बेहतर हो ख्वाब नयन में बोओ मत
उम्मीदो और आशाओं के दीप सभी बुझवाओ जी
पाँच बरस में एक बार बस याद हमें जनता आती
सत्ता पाते ही जनता ये हमें जरा भी न भाती
भूल गये बेशक हम तुमको पर तुम मत बिसराओ जी
शालिनी शर्मा
Comments