नेता
दोहा गीतिका
नेताओं ने ही किया,देश सदा बरबाद
नफरत के ये बीज को,देते रहते खाद
वोट कहां कैसे मिले,करते यही जुगाड़
कुर्सी की खातिर करें,बस जनता को याद
राजनीति में आ गये,खाने को मिष्ठान
वोट हमें दो तुम सदा,सुन लो ये फरियाद
याद करो इस नाम को,ये है चिन्ह चुनाव
बटन दबाकर नाम पर,हमें करो आबाद
सेवा करने आपकी,आये हैं श्रीमान
वोटर हो विनती करें,दे दो आशिर्वाद
जब हो समय चुनाव का,वोटर है भगवान
कुर्सी पाकर बन्द है,जनता से सम्वाद
शालिनी शर्मा
बाल मजदूर
2122 2122 2122 2122
वो नही करता दिखावा सादगी से रह रहा है
आसमां बनना है पर, जुड़ कर जमीं से रह रहा है
जिन्दगी से वो कभी करता शिकायत क्यों नही है
टीस सीने की भुला कर,वो खुशी से रह रहा है
खोजनी थी जिसको राहें, जलाने थे दिये
दे रहे हम दो निवाले,बंदगी से रह रहा है
मालिको को मान कर भगवान,करता चाकरी वो
साफ करके घर हमारा,गंदगी से रह रहा है
कोन उसको ये बताये,क्या सही उसके लिए है
बिन किताबो के,न रिश्ता जिंदगी से,रह रहा है
वो किसी की आँख का तारा है पर टूटा हुआ
आज तक महरुम वो हर, रोशनी से रह रहा है
फूल है,मासूम है वो,दीजिए उसको बहारे
सूख कर, खुश्बू बिना जो, ताजगी से रह रहा है
शालिनी शर्मा
212 212 212 212
जान देना नही,कीमती है बहुत
खोज लो चाँद को,चांदनी है बहुत
हार कर ही यहाँ,जीत मिलती सदा
दूर है जीत, तुममें कमी है बहुत
कायरों को कभी मान मिलता नही
जिन्दगी की लडा़ई कड़ी है बहुत
इस निराशा से होगा भला कुछ नही
आस,विश्वास की दो घड़ी है बहुत
छोड़ दो देखना,बस ये मरुथल यहाँ
प्यास अपनी बुझाओ,नदी है बहुत
जब लगे, हो अकेले जमाने में तुम
ढूंढ़ लो बस हँसी,ताजगी है बहुत
राह के सब अन्धेरे भुला कर बढ़ो
मन्जिलों पे सजी, रोशनी है बहुत
शालिनी शर्मा
HINDI POEMS
मेरी और देखेगा जो बुरी नजरो से कोई उसके लिए मैं चिन्गारी बन जाऊंगी
और कोई अत्याचार मुझपे करेगा तो मैं दुर्गा सी शेर की सवारी बन जाऊंगी
रहूंगी सजग कोई मुझको फंसा न पाये जाल जिससे कटता वो आरी बन जाऊंगी
अब न चलेगा ये फरेब न ही बहकूंगी अपने पिता की बस दुलारी बन जाऊंगी
शालिनी शर्मा
जब भी हुआ है अपमान यहां नारियो का नदियां लहू की बही शव बिछ जाते हैं
सीता का हरण किया रावण ने जब कभी लंका जलाने हनुमान चले जाते हैं
बचता नही है दुस्शासन कभी भी यहां और दुर्योधन के पैर तोड़े जाते हैं
बुरी नजरो से छोड़ो नारियों को देखना ये केश खुले द्रोपदी के,सीख दे जाते हैं
शालिनी शर्मा
मोबाइल के युग में तू, घर पर आया अहसान हुआ
हाल मेरा पूछा और अपना बतलाया अहसान हुआ
मेरे एकाकी जीवन में आकर तूने रंग भरे
दर्द मेरा सुनकर तू आँखे भर लाया अहसान हुआ
शालिनी शर्मा
वसुधा को झुक झुक नमन करेगें और चूम चूम माटी कण शीश से लगायेगें
भोर में दिवाकर का वन्दन करेगें और उजली किरण से बदन नहलायेगें
अब न रहेगें कहीं पिंजरे में खग सब खोल खोल पिंजरे विहंग उड़ायेगें
बगिया में सुमन खिला के चहुं ओर हम सोंधी खुश्बू से सारा जग महकायेगें
शालिनी शर्मा
जग को संवारने का काम जो भी करता है दुनिया में अपना वो नाम कर जाता है
जिसने भी समझी है पीर दीन दुखियों की बन के मसीहा घर दिलो में कर जाता है
जिसने भी मोह माया त्याग के किया है तप वो तो जिन्दगी के हर भंवर से तर जाता है
जिसने कठिन घड़ियों में धीर धार लिया उसका जीवन खुशियों से भर जाता है
शालिनी शर्मा
लीड़र की पहचान यही, सब झूठ कहे, सच बात छिपाये
रोज दिखा कर एक नया, उपहार छले, कर जोड़ रिझाये
और बिना कुरसी तड़पे जल नीर बिना मछली मर जाये
जोड़ करे फिर तोड़ करे, सब चाल चले,सब लोभ दिखाये
सुने न जो फरियाद दुखी की वो दरबार नही बनना
मुश्किल में जो हार मान ले वो किरदार नही बनना
थकना नही है,बढ़ते जाना है मन्जिल पा जाने तक
हो कमजोर इरादे जिसके, वो लाचार नही बनना
शालिनी शर्मा
दोहा गीतिका
जीवन में हो सादगी, ऊंचे रहे विचार
सफर जिन्दगी का कठिन,नही मानना हार
अच्छी चीजों को चुनो,अपनाओ सद्भाव
अच्छा बनने के लिए,खुद में करो सुधार
झूठ,कपट,दुर्भावना, द्वेष फेंक दो दूर
अवगुण सारे त्याग दो,हो अच्छा व्यवहार
संस्कार के फूल से, महके सकल जहान
संचित गुण का कोष हो,गुण का हो विस्तार
मोह माया अन्धियार है,करे खुशी का अन्त
छोड़ तिमिर की जिन्दगी,कर जीवन उजियार
फूल खिला सदभाव के,रोप प्रेम के बीज
सेवा कर बीमार की,कर दुखियों से प्यार
शालिनी शर्मा
गजल
सपनो की बारात सजाना अच्छा है
बुरे नही हालात बताना अच्छा है
उम्मीदो के महल हुए खडंहर कब के
मलवे का अनुपात छिपाना अच्छा है
सदमें में है गुमसुम उसको मत छोड़ो
आंसू की बरसात कराना अच्छा है
बाग बगीचे महकाते है जीवन को
गुलदस्ते में पात सजाना अच्छा है
रुठ गये अपने तो वापस ले लाओ
उन से बिगड़ी बात बनाना अच्छा है
शहर प्रदूषित हुए फैलती बीमारी
शहरों को देहात बनाना अच्छा है
साजिश रचने वालो से दूरी रखना
दुश्मन का आघात बचाना अच्छा है
शालिनी शर्मा
यहां कोई नहीं अपना,जिसे दुखड़ा सुनाओगे
मजा लेगें सभी सुनकर,जिसे भी गम बताओगे
यहां कोई कभी निर्बल,नही सम्मान पाता है
सबल,काबिल बनोगे जब तभी दुनिया झुकाओगे
बिना धन के,बिना पैसे यहां दाना नही मिलता
मरोगे बिन दवाई के नही जो बिल चुकाओगे
जरा सपने बुनो ऊंचे,तुम्हे नभ,दिव बुलाता है
बढ़ाओ तो कदम आगे सम्भलना सीख जाओगे
बिना चीखें यहां आवाज कानो तक नही जाती
पुकारोगे सभी मिलकर तभी अधिकार पाओगे
जगाओ तुम मरी सम्वेदना आओ बचाने को
किसी की मौत पे, या बस,दिये कैंड़िल जलाओगे
शालिनी शर्मा
पुल टूटे या रेल हादसा,जनता जान गवांती है
क्योंकि कि जनता बिना मोल के थोक भाव मिल जाती है
सिर्फ यहां पर जान कीमती नेताओं की होती है
जनता जनसंख्या है जो ऐसे ही कम हो पाती है
शालिनी शर्मा
पिता तुम्हारे प्यार ने,दिया हमें उत्साह
पथरीला पथ कम किया,सुगम दिखाई राह
सुगम दिखाई राह,चुने राहो के कांटे
कर जीवन गुलजार ,फूल खुशियों के बांटे
आदर हृदय अपार ,देख के दूरदर्शिता
दिया सुरक्षा भाव,बने सर्वश्रेष्ठ पिता
शालिनी शर्मा
गीत
कोई ऐसा मिले जो संवारे मुझे प्यार आँखों में भर कर निहारे मुझे
मेरी चाहत है क्या कैसे मैं खुश रहूं
हर ख़ुशी देके मुझको निखारे मुझे
हो हवाओं में जब प्यार की रागिनी
मुझको ऐसा लगे के पुकारे मुझे
देखूं जो उसको तो मुझको ऐसा लगे
सैकड़ो मिल गये ज्यों सहारे मुझे
परियों की नगरी सा उसका घर हो सजा
खूबसूरत दिखाये नजारे मुझे
मांग उसने भरी देके सातो वचन
दे गया जैसे सब चाँद तारे मुझे
पालकी लेके जाते कहारों से कह दो
आँगन में उसके उतारे मुझे
बन के दुल्हन रहूं उसके आंगन में मैं
पायलों ने किये हैं इशारे मुझे शालिनी
2122 2122 212
आँख से आंसू गिरा कर रो दिये
दर्द का दरिया, बहा कर रो दिये
पंख थे पर उड़ नही पाये कभी
नभ को पिंजरा,पर,दिखा कर रो दिये
थक गई है जिन्दगी, पाकर सजा
हो रिहायी अब, बता कर रो दिये
कर चुके थे वो कभी उपकार भी
दुश्मनी उनकी, भुला कर रो दिये
प्यार से पूछा उन्होने क्या हुआ
गम के सारे हिम गला कर रो दिये
चूम कर माथा, दुआ दी प्यार से
दुख में उनका साथ पाकर रो दिये
ये पता है लोट कर जाना उन्हे
कुछ घड़ी को मुस्कुरा कर रो दिये
शालिनी शर्मा
गिरा कर बूंद पलको से इशारा कर गया मौसम
गमों के दौर में हमसे किनारा कर गया मौसम
जमाने की तरह गर्दिश में वो भी साथ न आया
जरूरत के समय क्यों बे सहारा कर गया मौसम
शालिनी शर्मा
छन्द आनन्द वर्धक
2122 2122 212
प्यार की दुनिया बसायी प्यार से
रीत हमने सब निभायी प्यार से
वो मगर था बेवफा जाना तभी
दे गया वो भी दगा जब प्यार से
टूटने का सिलसिला भाता नही
दिल को पत्थर कर दिया है प्यार से
खो गया वो जो बहुत था कीमती
की शिकायत रब से हमने प्यार से
होशियारी से निकाले काम वो
धूल झोंके आँख में वो प्यार से
आँख कर लेते हैं टेढ़ी भी कभी
काम जब चलता नही है प्यार से
थी नही अपनी जरुरत जब वहां
हम निकल आये वहां से प्यार से
झोपडी में भी दिखी हमको खुशी
जिन्दगी की जंग लड़ते प्यार से
दुनिया गम का एक समुन्दर
जहां दफन हर आस है
जहां देखिए जिधर देखिए
पीड़ाओं का वास है
उम्मीदों के खंडहर हैं और
कब्रें हैं लाचारी की
घोर निराशाओं के वन है
आस नही है क्यारी की
हर जीवन पतझड़ के जैसा
खत्म बहारे खुशियों की
पलको से बरसे सावन
नित,नयी व्यथाएं दुखिओं की
लाशो का व्यापार यहाँ है
लाशो का अम्बार यहाँ
सम्बन्धों में कटुता
टूटे भावनाओं के तार यहाँ
यहाँ विवशता के जालो में,
कैद जिन्दगी मरती हैं
सड़ी गली मर्यादाएं
सड़को पर क्रंदन करती हैं
जीते जी वो रोज मौत का
करें सामना जीवन में
रोज सैंकड़ो इच्छाएं
मर जाती हैं मन की मन में
और अन्त में बिना कफन वो
आँख मूंद सो जाते हैं
लोग ये वो हैं जो जीते जी
मुर्दा ही कहलाते हैं
शालिनी शर्मा
दुनिया गम का एक समुन्दर
जहां दफन हर आस है
जहां देखिए जिधर देखिए
पीड़ाओं का वास है
उम्मीदों के खंडहर हैं और
कब्रें हैं लाचारी की
घोर निराशाओं के वन है
आस नही है क्यारी की
हर जीवन पतझड़ के जैसा
खत्म बहारे खुशियों की
पलको से बरसे सावन
नित,नयी व्यथाएं दुखिओं की
लाशो का व्यापार यहाँ है
लाशो का अम्बार यहाँ
सम्बन्धों में कटुता
टूटे भावनाओं के तार यहाँ
यहाँ विवशता के जालो में,
कैद जिन्दगी मरती हैं
सड़ी गली मर्यादाएं
सड़को पर क्रंदन करती हैं
जीते जी वो रोज मौत का
करें सामना जीवन में
रोज सैंकड़ो इच्छाएं
मर जाती हैं मन की मन में
और अन्त में बिना कफन वो
आँख मूंद सो जाते हैं
लोग ये वो हैं जो जीते जी
मुर्दा ही कहलाते हैं
शालिनी शर्मा
Comments