दोहे,गीतिका कवि मंच की सरस्वती वन्दना शालिनी शर्मा




दोहा गीतिका
तलवारे तो मौन हैं,नही ये  चुगलखोर
लड़ता कोई और है,लड़वाता कोई और

जली दुकाने घर जले,जला प्रेम,सद्भाव
कातिल का तब फायदा,जब नफरत का जोर

जलती चिंगारी कहीं,कहीं आग है तेज
दर्द,कराहें,चींख है,चिल्लाहट,है शौर

भीड़ चली है मारने,मरते हैं निर्दोष
अफरातफरी है मची,अफवाहों का दौर

आंसू की कीमत नही,कातिल निर्दय,क्रूर
मार काट ये मच रही,तलवारें हर और

पानी बन कर बह रहा,सड़क,नालियां लाल
नफरत के इस खेल में,लहू बहे हर ओर

राजनीति के खेल में,हार न कोई जीत
मीत बने,जिनमें कभी,कटुता थी घनघोर
                        शालिनी शर्मा


कृपा करो माँ शारदे,मंच हुआ तैयार
आन विराजो तुम यहाँ,सुन लो मात पुकार

दीप प्रज्वलित कर दिया,फूल करो स्वीकार 
गीत छन्द गूंजें यहाँ,मिले तालियां हार

हंस वाहिनी शारदे,तेरी जय जयकार
सरस्वती माता सुनो,कर दो बेड़ा पार

वाणी को मधुरिम करो,हो रस का संचार
आनन्दित पंड़ाल हो,झूमें सब नर नार

हे माँ वीणा वादिनी,नमन करे सौ बार
वर दो हमको ज्ञान का,मांगे हाथ पसार

परहित की दो भावना,करे सदा उपकार
मदद दुखी की सब करें,सुखी रहे संसार
                       
भव्य मंच हो और हो,आयोजन दमदार
जो श्रोता आये, यहाँ,अभिनन्दनआभार  

कलम सृजन नित नव करे,लिखे छन्द रसदार 
गीत छन्द पायें सदा,श्रोताओं का प्यार
   
 जो श्रोता हमको सुने,नमन उन्हे हर बार
शान,मान और ज्ञान का,कर दो माँ विस्तार 

आयोजक खुश हो करें,आमन्त्रित हर बार
खूब लिफाफे भेंट दें,मिलें खूब उपहार 

                     शालिनी शर्मा



मात्रा भार 16+14
क्यों अंग्रेजी बोल रहे हम,भूल करें नादानी में 
हिन्दी भाषा इतनी सुन्दर,रस भर देती वानी में

तोड़ गुलामी बन्धन छोड़ो ,अंग्रेजी मत बोलो तुम
समझ सकेगें हम भावो को,भाषा हिन्दुस्तानी में

सूर,बिहारी,तुलसी,मीरा,हिन्दी के सिरमौर यहाँ
छन्दो का रस बस मिलता है,हिन्दी मधुर सुहानी में

कैसे पुरवा की मस्ती को,अंग्रेजी में गायेगें
हिन्दी में लय ताल मिले जब,बहती नदी रवानी में

हिन्दी दिल के तार जोड़ती,सुनो आरती हिन्दी में
प्यार मिला दादी,नानी का,बचपन सुनी कहानी में

प्रेम की अनभूति है हिन्दी,और विरह का गीत सृजन
हिन्दी में ही गीत प्रणय के ,गायें सभी जवानी में
                                     शालिनी शर्मा



 212 212 212 212
बेवफा मैं नही,आजमा लो मुझे
प्यार का गीत हूँ,गुनगुना लो मुझे

फूल बन के सदा मैं महकती रहूँ
राह के,कंटको से बचा लो मुझे

तुम रहो तुम नही मैं रहूं मैं नही
सांस के हार का नग बना लो मुझे

कांच के जैसा तन,मन भी है कांच का
टूट जाऊं न गिर के  उठा लो मुझे

जिन्दगी में मुझे तम सुहाते नही
झालरो सा,दियो सा सजा लो मुझे

तेरा साया हूं मैं , साथ में हूं सदा
हमसफर जिन्दगी का बना लो मुझे

गुनगुनाती  रहूँ ,  गीत  गाती  रहूँ
रूठ कर चुप रहूँ तो मना लो मुझे
                  शालिनी शर्मा


 आधार छंद- वाचिक स्रग्विणी मापनी- 
212 212 212 212
आप खुश हो हमें,और क्या चाहिए 
दी दुआ आपने,और क्या चाहिए 

राह की मुश्किलें,दूर की आपने
चुन लिए शूल सब,और क्या चाहिए 

थाम कर हाथ, देते रहे हौंसला
आपका साथ है और क्या चाहिए 

आपने पंख देकर उड़ाया हमें
दी जमीं आपने और क्या चाहिए 

थी नमी आँख में,आपने पोंछ दी
आँख अब नम नही,और क्या चाहिए 

चल नही पा रहे थे बिना पैर के
दे दी बैसाखियां और क्या चाहिए 

ख्वाब का टूटना दिल दुखाएं बहुत
ख्वाब लाये नये,और क्या चाहिए 
                   शालिनी शर्मा
                    गाजियाबाद
 वतन पे जां लुटा के गोद में माटी की जो सोये
जवानी देश पर कर दी निछावर पर नही रोये
तिरंगे की जो आन और शान को मिटने नही देते
चरण रज ऐसे वीरो की बड़ी ही कीमती होए
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 जख्म तो भरते गये पर  टीस  बाकी  रह  गयी
कर्ज सब चुक्ता किया पर फीस बाकी रह गयी
वो गये होटल में महंगे भारी बिल सब भर दिये
झाडू  देते  बच्चो  की बख्शीश  बाकी रह गयी
                                   शालिनी शर्मा



दोहा 
नाव डूबती जा रही,कोन लगाये पार
छेद उसी ने कर दिया,जिसको दी पतवार
                     शालिनी शर्मा



गीतिका छन्द
2122   2122  2122  212
 पीर मन की आंसुओ से क्यों न धुल पाती कभी
गाठं रिश्तों में लगी जो,क्यों न खुल पाती कभी
वो  हमारे  पास  हैं  पर  दूर  भी  वो  हैं  बहुत
हैं  अना  दोनो  में कितनी क्यों  न  तुल पाती कभी
                            शालिनी शर्मा







 212 212 212 212
बेवफा मैं नही,आजमा लो मुझे
प्यार का गीत हूँ,गुनगुना लो मुझे

फूल बन के सदा मैं महकती रहूँ
राह के,कंटको से बचा लो मुझे

तुम रहो तुम नही मैं रहूं मैं नही
सांस के हार का नग बना लो मुझे

कांच के जैसा तन,मन भी है कांच का
टूट जाऊं न गिर के  उठा लो मुझे

जिन्दगी में मुझे तम सुहाते नही
झालरो सा,दियो सा सजा लो मुझे

तेरा साया हूं मैं , साथ में हूं सदा
हमसफर जिन्दगी का बना लो मुझे

गुनगुनाती  रहूँ ,  गीत  गाती  रहूँ
रूठ कर चुप रहूँ तो मना लो मुझे
                  शालिनी शर्मा



आधार छंद- वाचिक स्रग्विणी मापनी-
 212 212 212 212
आप खुश हो हमें,और क्या चाहिए 
दी दुआ आपने,और क्या चाहिए 

राह की मुश्किलें,दूर की आपने
चुन लिए शूल सब,और क्या चाहिए 

थाम कर हाथ, देते रहे हौंसला
आपका साथ है और क्या चाहिए 

आपने पंख देकर उड़ाया हमें
दी जमीं आपने और क्या चाहिए 

थी नमी आँख में,आपने पोंछ दी
आँख अब नम नही,और क्या चाहिए 

चल नही पा रहे थे बिना पैर के
दे दी बैसाखियां और क्या चाहिए 

ख्वाब का टूटना दिल दुखाएं बहुत
ख्वाब लाये नये,और क्या चाहिए 
                   शालिनी शर्मा
                    गाजियाबाद

 वतन पे जां लुटा के गोद में माटी की जो सोये
जवानी देश पर कर दी निछावर पर नही रोये
तिरंगे की जो आन और शान को मिटने नही देते
चरण रज ऐसे वीरो की बड़ी ही कीमती होए











 जख्म तो भरते गये पर  टीस  बाकी  रह  गयी
कर्ज सब चुक्ता किया पर फीस बाकी रह गयी
वो गये होटल में महंगे भारी बिल सब भर दिये
झाडू  देते  बच्चो  की बख्शीश  बाकी रह गयी
                                   शालिनी शर्मा

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