शालिनी शर्मा के कविता,दोहे,छन्द










कैसे निर्धन को यहां,मिले उचित उपचार
फीस बिना खुलते नहीं,अस्पताल के द्वार
                      शालिनी शर्मा


कुडंलिया 
 जीवन की राहे बड़ी, हैं दुष्कर, दुश्वार
पथ दुर्गम  हो या सुगम,जाना मन्जिल द्वार
जाना मन्जिल द्वार,मिले कष्टो को सहले
निपटाले सब काज ,यहां चलने से पहले
सुख भी दुख भी साथ,मिले पथ में आजीवन
नित्य नये कुछ पाठ,सिखाता है ये जीवन
                      शालिनी शर्मा


 राहो  में   हो  रोशनी ,  दूर  रहे अँधियार
खुशी,हर्ष,आनन्द, सुख, हरदम चूमें  द्वार
हरदम चूमें  द्वार, फूल  सा  जीवन  महके
वैभवता  का  तेज, शक्ल  हीरे  सी  दहके
जीवन हो  मकरन्द,  मुकद्दर  हो  बाहों  में
सकल शूल हो नाश,फूल  बस हों  राहों में
                         शालिनी शर्मा

 भाईचारा अब कहां, कहां प्रेम,  सद्भाव
द्वेष,क्लेश हर ओर है,हैं खंजर के  घाव
अस्त्र शस्त्र वो बेचते,ये  उनका व्यापार
सिर्फ दिखावे के लिए,है शान्ति प्रस्ताव
                     शालिनी शर्मा

दोहा मुक्तक 
भाईचारा अब कहां, कहां प्रेम,  सद्भाव
द्वेष,क्लेश हर ओर है,हैं खंजर के घाव
अस्त्र शस्त्र वो बेचते,ये उनका व्यापार
सिर्फ दिखावे के लिए,है शान्ति प्रस्ताव
                     शालिनी शर्मा

कभी निराशा  भरे न मन  में, आशा  का संचार करें
परेशानियों  का  हल  खोजे, बाधाओं  को  पार  करें
मतभेदों का करें निवारण, मिलजुल  कर रहना सीखें
जीवन को उल्लासित करके अनुशासित व्यवहार करें








गीतिका छन्द
 2122  2122  2122  212
एक वो है जो हमेशा बददुआ देता रहा
एक वो है जो दुआ ही बस दुआ  देता रहा

जो सिखायी थी कभी नेकी वही बस पास है
सीख अच्छे कामो की मेरा पिता देता रहा

पंख देकर पिंजरे खोले बन्दिशे कोई नही
बेड़ियों को काट कर वो आंसमा देता रहता

छीन भोलापन सिखा दी होशियारी क्यों मुझे
ए  जमाने इस  तरह  तू  क्यूं  सजा  देता रहा

जो खता मैने कभी की ही नही सारी उमर
वो मुझे दे दोष अफवाह को हवा देता रहा

तू मेरी बर्बादियों का जश्न कितना भी मना
जो दिया है घाव, मुझको हौंसला देता रहा

ताज जिसको चाहिए वो पैर दाबेगा यहां
स्वाभिमानी तो हमेशा सिर कटा देता रहा

बन अधिनायक,चला चाबुक हमारी पीठ पर 
निर्बलों का साथ तो हरदम खुदा देता रहा
                        शालिनी शर्मा


गीतिका 
221  2121  1221  212
भूले तुझे ये इतना आसान तो नहीं
ये सिर्फ एक दिन की पहचान तो नहीं 

तकलीफ का तुझे कुछ अहसास ही नहीं 
तोड़ा जिसे वो दिल था सामान तो नहीं

पगड़ी जिसे हमारी भायी नहीं कभी 
देगा हमें कभी वो सम्मान तो नहीं 

अपनी यहां किसी से कोई ना दुश्मनो
 चाहें जो हम सभी को नुकसान तो नहीं

रोटी मिले हमें बस हम चाहते यही 
जो हो न पूरा वो ये अरमान तो नहीं 

तू आज है अकेला कोई नहीं सगा
तेरे किसी गुरूर का भुगतान तो नहीं

कुछ तो हुआ बुरा है, गम क्या छुपा रहे
मुख पर सजी ये सच्ची मुस्कान तो नहीं 
                     शालिनी शर्मा


 शीश झुका है विनय सुनो,सबका कर दो कल्याण 
पितृ का वन्दन करें पूर्वज देते हमको प्राण
पितृ विसर्जन करके हमने किया आपको याद
आपके आशीर्वाद से होता शान्ति का न निर्माण
                     शालिनी शर्मा 







 जिसको भी जाना होता है,वो अवश्य ही जाता हैं
कोन यहाँ से कब जायेगा कोन कहां बतलाता हैं
छोड़ गया वो हमें अचानक बिना कहे बतलाये ही
असमय जाने वालो को क्या जरा तरस नही आता हैं
                     शालिनी शर्मा



 ख़ून नजर से कर दिया,हाथ न थी तलवार
और  लगा फिर  पूछने, किसने  मारा  यार
                   शालिनी शर्मा

दोहा मुक्तक
भीतर से कुछ और हैं,बाहर से कुछ और
खुद का विश्लेषण नही, करें अन्य पर गौर
ज्ञान बघारे बेतुका, बस मतलब का स्वांग, 
श्रेष्ठ स्वयं को कह रहे, अन्य सभी को ढ़ोर
  
                   शालिनी शर्मा

(13+१२)
माटी हवा से बाते,ये चन्द कह रही है
है ताप कितना ज्यादा,क्यों मन्द बह रही है
जिनके अधूरे सपने,वो सो रहे सड़क पर
आँखे पवन की मस्ती से बन्द रह रही हैं
                       शालिनी शर्मा

मुझे आपने जो दिया,वो ही लोगे आपका
दुआ अगर दी लो दुआ, श्राप दिया तो श्राप 
 शालिनी शर्मा

13+12
माटी हवा से बाते,ये चन्द कह रही है
लोरी सुना दे जा के,क्यों मन्द बह रही है
जिनके अधूरे सपने,वो सो रहे सड़क पर
लोरी से पीर निंदिया में बन्द रह रही है
                      शालिनी शर्मा

16+14
सब कुछ खोने पर भी  हमनें नही  हौंसला खोया  है
बंजर  धरती  में फिर  हमने बीज  कर्म  का बोया  है
मेहनत   के  पानी   से   खेतों   में  हरियाली  लायेंगें
उसे नही कुछ भी मिलता जो बस आलस में सोया हैं
                         शालिनी शर्मा








धूर्त पर मक्कार पर, मत करना विश्वास
ठग लेते हैं ये उन्हें, जो भी जाए पास 

जल से जलता सोडियम,कहें भाग जा भूत 
ताबीजों के फेर में, पड़़ होता है नाश

जादू-टोना, कुछ नही,बस धोखे का खेल 
तन्त्र मन्त्र ताबीज हैं ,सिर्फ अंधविश्वास 

मरक्यूरिक क्लोराइड से फैलाते पाखंड 
काॅपर सिल्वर सा दिखे,यही रसायन खास

ढोंगी बाबा लूटते,इनसे बचिए आप
बरबादी के द्वार ये,बात नही बकवास 
                      शालिनी शर्मा 


212  212  212  212
जिंदगी हर घड़ी आजमाती रही
मुश्किलें राह की ये बढ़ाती रही

हौंसले तोड़ कर,कम मनोबल किया 
पर जरुरत नया पथ दिखाती रही

झूठ हैं ख्वाब सब ये बताया नही
रोज सपना नया ये सजाती रही

रोशनी छीन ली,और दी कालिमा
धूप से,ताप से पग जलाती रही

ये समझती नही भाव दिल के कभी
इस लिए दिल सदा ये दुखाती रही

जिन्दगी दर्द है,जिन्दगी है सजा
फैंसला ये सदा खुद सुनाती रही

जानती है हमें टूट जायेगें हम
ठेस फिर भी ये दिल पर लगाती रही

जानते हैं सभी ये दगाबाज है
पर सभी को सदा ये सुहाती रही
                        
जिस तरफ देखिए बस दिखावा दिखे
भावनाएं सदा ये भुनाती रही    
                  शालिनी शर्मा


दोहा
अंहकार किस बात का,होगा राख शरीर
अंत सभी का एक है,राधा, रंक, फकीर
                   शालिनी शर्मा 

तूफानों से घिरे हुए हैं उस पर यहाँ अकेले हैं
जीवन में है उथल पुथल जीवन मे कई  झमेले हैं
नहीं हमारा जग में कोई, हम भी नही किसी के हैं
कहने को बस भीड़भाड है और दिखावी मेले हैं
                       शालिनी शर्मा 

छन्द-मधु मंजरी
2212  2212 22
मेवा चबा खुद खा रहे नेता
 ठेंगा हमें दिखला रहे नेता

वादे कभी पूरे नहीं करते 
देखो हमें बहला रहे नेता

सुख चैन से जीने नहीं देते 
नफरत जगा भड़का रहे नेता

ये रोज पीते हैं लहू गाढ़ा
पीकर लहू इतरा रहे नेता

नोचा किया बर्बाद धोखे से 
इस देश को तुड़वा रहे नेता

मौसम चुनावी है,करे रैली
ताकत हमें बतला रहे नेता

सत्ता मिले कैसे यही सोचें
चालें सभी चलवा रहे नेता

जिस जाति के ये वोट पायेगें
उसको टिकट दिलवा रहे नेता
                   शालिनी शर्मा


https://youtu.be/d0xaW4yaq24?si=ceIo69pEkfx9a5ha
दोहे
कृपा करो माँ शारदे,मंच हुआ तैयार
आन विराजो तुम यहाँ,सुन लो मात पुकार

हंस वाहिनी शारदे,तेरी जय जयकार
सरस्वती माता सुनो,कर दो बेड़ा पार

वाणी को मधुरिम करो,सभ्य रहे व्यवहार 
द्वेष,क्लेश का नाश हो,सब जन में हो प्यार

हे माँ वीणा वादिनी,नमन करे सौ बार
वर दो हमको ज्ञान का,मांगे हाथ पसार

परहित की दो भावना,करे सदा उपकार
मदद दुखी की सब करें,सुखी रहे संसार
                       
भव्य मंच हो और हो,आयोजन दमदार
कलम सृजन नित नव करे,लिखे छन्द रसदार 

गीत छन्द पायें सदा,श्रोताओं का प्यार
जो श्रोता आये यहाँ,अभिनन्दनआभार     
 
जो श्रोता हमको सुने,नमन उन्हे हर बार
शान,मान और ज्ञान का,कर दो माँ विस्तार 
                     शालिनी शर्मा


फूल दिखा कर शूल को,देता है बाजार
जेब काटता इस तरह,जैसे दे उपहार 
ग्राहक लुट कर भी करे,चोरो का आभार
बड़ी कम्पनी कर रही,धोखे का व्यापार 
                       शालिनी शर्मा



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