नमस्कार दोस्तों
आपका प्यार ही तो है जो मुझमें जोश भरता है
सहारा आपका है जो मेरे संकट ये हरता है
आपके लिए एक बार फिर माँ की वन्दना
मन की वीणा से वन्दन है हे देवी माँ
ज्ञान का कोष भर दे तू हे देवी माँ
श्वेत हंसो सा मन हो,कमल सा हो तन
पूजा से तन का मन का करें आचमन
राह के कष्ट हर ले तू हे देवी माँ
ज्ञान का-------------
गंगाजल जैसी निर्मल हो बोली मेरी
त्याग,सदभावना हो हमजोली मेरी
सेवा का भाव दे दे तू हे देवी माँ
ज्ञान का -------------
द्वेष ,ईर्ष्या का कर दे तू अब नाश माँ
सत्य ,सत्संग पे हो मेरा विश्वास माँ
सद्विचारों का वर दे तू हे देवी माँ
ज्ञान का --------------
हो निरोगी बदन ,खुशियों का हो चमन
नम ना हो गम से मेरे कभी ये नयन
होंसले ना कभी कम हो हे देवी माँ
ज्ञान का --------------
वर दे सम्पन्नता का, समृद्धि दे माँ
सुख में और धैर्य में कर दे वृद्धि हे माँ
जग का कल्याण कर दे तू हे देवी माँ
शालिनी शर्मा
दोहा मुक्तक
सांझ सवेरे वो उसे,करता रहा जलील
नमक जख्म पर ड़ाल कर,वो सुख करता फील
दुश्मन भी वो है नही,और न कोई बैर
बस समझे खुद को खुदा,सुनता नही दलील
शालिनी शर्मा
दोहा गीतिका
नींद जहां पर आ गई,सो जाता धर धीर
जीवन से कोई गिला,करता नही फकीर
सर्दी में वो सो रहा,बिन कम्बल लाचार
दावे हैं सरकार के,हर ली सबकी पीर
चाँद हमें वो दे रहे,सूरज के भी ख्वाब
रोटी भी देगें तुझे,क्यों तू हुआ अधीर
माँ बिन पैसो के उसे,कैसे देती दूध
पानी देकर कह रही,पी जैसे हो खीर
सबने दुत्कारा उसे,मारी हरदम लात
खाने को बस धूल है,ये उसकी तकदीर
सूखी रोटी भी उसे,लगती बेहद स्वाद
जीवन भर उसने कभी,देखा नही पनीर
वो मैट्रो के पुल तले,लेट बिताते रात
सर्द रात में ठंड से,सिकुड़ा रहा शरीर
शालिनी शर्मा
कोशिश वो करता रहा, मिलता नही करार
वही ढूंढता फिर रहा,जो मिलना दुश्वार
बेचैनी हर बात पर,नही चैन आराम
बात बात में वो करे,बेमतलब तकरार
शालिनी शर्मा
दोहा गीतिका
उसकी नजरें कह रहीं,उसके दिल की बात
हाल पूछते ही हुई ,आँखों से बरसात
आँखों में है बेबसी,डिग्री है बेकार
रोजगार मिलता नहीं,तंगी के हालात
मदद यही वो मांगता,काम दिला दो यार
स्वाभिमान पर चोट है मत देना खैरात
लड़के वाले मांगते,पैसा और दहेज
घर में बिन ब्याही सुता,कब आये बारात
आँखों में ठहराव है,दिखता बड़ा उदास
बालक घर में मांगता,रोटी,सब्जी भात
नींद नही सपने नही,है चिन्ता अवसाद
रात अमावस की घिरी,दिखता नही प्रभात
शालिनी शर्मा
दोहा मुक्तक
हर्ष, प्रेम, सद्भावना, संयम ,धीरज, ज्ञान
वैभव,धन,खुशियां मिले,खूब मिले सम्मान
रमा मात विनती करें, आओ सबके द्वार
घर आँगन उजियार हो, ऐसा लो वरदान
शालिनी शर्मा
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये
पहले नमन शहीदो को, घर उसके बाद सजायगें
नाम शहीदो का लेकर भी हम एक दीप जलायेगें
शालिनी शर्मा
211 211 211 211 211 211 211 22
दीप जले घर में, तम दूर हुआ, उजियार भयो, सुख छायो
गान करें गलियां, नर नाचत, ढोल बजावत, दीप जलायो
राम सिया पग पूजन को, चुन फूल धरे, हरि द्वार सजायो
राम लला घर लौट रहे,सब लोगन ने हरि दर्शन पायो
दोहा गीतिका
आतिशबाजी छोड़ दे,ये राकेट न दाग
छोड़ पटाखे फूंकना,घातक है ये आग
हवा शुद्ध कैसे मिले,कर ले सोच विचार
बम विनाश के स्रोत हैं,सभी मिसाइल त्याग
ताप धरा का बढ़ रहा,पिघल रही है बर्फ
कहे समुन्दर चेत जा,संकट में भूभाग
सेहत बिन कुछ भी नही,मत सेहत से खेल
वृक्ष काटना छोड़ दे,बो फुलवारी,बाग
हरियाली से प्रेम कर,कर वृक्षो से मेल
हवा धुएं से हो रही,जहरीली ज्यूं नाग
शालिनी शर्मा
डूबी है इस बार दिवाली चिन्ता दुख अवसाद में
छुपा हुआ है झूठ तेरे खुशियों के आशिर्वाद में
रोजगार के बिना दिवाली कैसे रोशन हो पाये
सुनो आंकड़े बता रहे ये भूख है बेतादाद में
शालिनी शर्मा
काट वृक्ष वो कर रहे,ताजी हवा खराब
अल्टीमेटम वृक्ष का, सुनते नही जनाब
दूर प्रदूषण पेड़ से, होगा करें प्रयास
दीवाली पर पेड़़ बो,पीपल, नीम, गुलाब
शालिनी शर्मा
कैसा आया स्वराज अरे रेरेरेरेरेरे रे बाबा
करती मंहगाई राज अरे रेरेरेरेरेरे रे बाबा
तू क्यों रोता है चूल्हे
वो तुझे जलाना भूले
जब घर में नही अनाज अरे रेरेरेरेरेरे रे बाबा
हम आम नागरिक सारे
चिल्ला चिल्ला कर हारे
कोई सुने नही आवाज अरे रेरेरेरेरेरे रे बाबा
निर्धन रोगो से हारा
तडपे,मरता बेचारा
मंहगा है बहुत इलाज अरेररररररेरेरे रे बाबा
मासूम कली मुरझाये
वो बाग कहां से लाये
जहाँ रहे सुरक्षित लाज अरे रेरेरेरेरेरे रे बाबा
कुर्सी मिलते ही यार
बदले इनका व्यवहार
ये करते नही कुछ काज अरे रेरेरेरेरेरे रे बाबा
कलिया खिलने से डरती
बेमौत कोख मैं मरती
कोई नही उठाता नाज अरेररररररेरेरे रे बाबा
जब आते यहाँ चुनाव
पब्लिक के बढ़ते भाव
नेता कहें देदो ताज अरेररररररेरेरे रे बाबा
ये नेता जब मुंह खोले
गन्दी भाषा ही बोले
नारी का नही लिहाज अरेररररररेरेरे रे बाबा
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद उप्र
भाई है अनमोल भाई से प्रिय नही कुछ होता है
आँख में मेरी हो आंसू तो अनुज संग में रोता है
पास रहूं या दूर दुआ है सुख, वैभव धन तुझे मिले
कभी तुझे ये पता चले न कि दुख भी कुछ होता है
शालिनी शर्मा
गीतिका
212 212 212 212
हम हैं नादान हमको बताते रहे
मात देकर नसीहत सिखाते रहे
जीतते वो रहे,बाजियां चाल से
जश्न भी जीत का वो मनाते रहे
भानु तो बन सकेगें नही वो कभी
दीप बन, पर सदा जगमगाते रहे
वो दुखाता रहा दिल,उन्हे प्यार था
इस लिए नाज उसके उठाते रहे
बेड़िया पैर में ड़ाल कर, उड़़ कहा
नोंच पर, आंसमा को दिखाते रहे
पेड़ पर फल लगा झुक गया बोझ से
फल हमेशा तने को झुकाते रहे
नाव जीवन की वो हौंसलो से चला
आंधियों का कहर आजमाते रहे
उनको बुजदिल नही तुम कहो दोस्तो
कुछ थी मजबूरियां सिर झुकाते रहे
बेवजह सिर कटाना नही ठीक था
होशियारी से दुश्मन हटाते रहे
शालिनी शर्मा
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