शालिनी शर्मा की कविता
नमस्कार दोस्तों आप के बीच फिर हाज़िर हूँ अपनी नई रचनाओं के साथ हर्ष का विषय है मेरे लिए कि मैं आप तक पहुँच पा रही हूँ पाठक बिना लेखन बेकार है आप का स्नेह,आशीर्वाद यूँ ही बना रहे
दोहा मुक्तक
टूट गई उम्मीद गर,फिर से वापस जोड़
असफलता से सीख ले,और निराशा छोड़
नाकामी को भूल कर,फिर कर पुन: प्रयास
जीवन गाड़ी को नयी,किसी ड़गर पर मोड़
शालिनी शर्मा
दोहा
तब टूटा संबंध जब वो था बहुत करीब
हम दोनों के बीच में आया कौन रकीब
शालिनी शर्मा
दोहा
नदियां ने कुछ यूं कहा,सागर के जा पास
तुझमें मिलने आ गई, मेरा यही निवास
शालिनी शर्मा
दोहा
दिल से दिल की बात को, जो समझे वो यार
वरना तो संसार में, मिलते लोग हजार
शालिनी शर्मा
मस्त चांदनी आ गई, मेरी छत पर रात |
चाँद भी उसके साथ था,दोनो ने की बात ||
वो धड़कन सांसे वही,वो है रक्त प्रवाह |
जीवन में मुस्कान की,एक अकेली राह ||
वो मुझको देने लगा,खुशियों का उपहार |
नन्ही सी मुस्कान से ,खूब लुटाता प्यार ||
वो टूटा तो टूट कर ,बिखर गया परिवार |
इसी लिये मत मानिए,जीवन से तुम हार ||
डूब गए तो डूब गए, क्या करना अफ़सोस |
तैर नहीं पाए कभी, यह अपना था दोष
शालिनी शर्मा
वो जीवन की छांव है,वो है मधुर पराग
वो सुख की है बांसुरी,ऋतु बसन्त की,फाग
शालिनी शर्मा
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