शालिनी शर्मा की कविता
छन्द विधाता
1222 1222 1222 1222
उसे हमसे घृणा जो थी,मिटाने वो नही आया
हमारा शव पड़ा था पर,जलाने वो नही आया
लगी ठोकर हमें,हम गिर गये,आयी हमें चोटे
खड़ा था पास में लेकिन उठाने वो नही आया
उसे क्यों कर बताया दुख,बड़ा अफसोस होता है
कभी भी जख्म पर मरहम लगाने वो नही आया
वहाँ पर रूठना ही क्यों,जहाँ संवेदना गुम हो
हमी बेकार में रुठे, मनाने वो नही आया
उसे माली कहें कैसे,जिसे खुश्बू नही भाती
लुटी बगिया, कली, ग़ुंचे, खिलाने वो नहीं आया
पड़ोसी की खबर अब तो, पड़ोसी भी नहीं लेते
किसी का घर जला,लपटें बुझाने वो नहीं आया
नही मतलब पड़ोसी को पड़ोसी कौन है अपना
पता पूछा किसी ने तो, बताने वो नहीं आया
हमेशा जो कहा करता बचाओ कीमती हैं ये
कभी भी एक भी पौधा, उगाने वो नहीं आया
अगर देखा किसी को काटते, पेड़ों, बगीचों को
नहीं रोका उन्हें, पौधे, बचाने, वो नहीं आया
शालिनी शर्मा
डूबती नैया बचाने आइये, श्री राम जी
बात जो बिगड़ी, बनाने आइये, श्री राम जी
पथ भृमित को,पथ सही दिखने लगे, जब पथ चुने
कोई युक्ति ये सुझाने आइये, श्री राम जी
शालिनी शर्मा
आधार छन्द-गीतिका
2122 2122 2122 212
रोज जीवन में नया इक, हादसा होता रहा
जो नहीं सोचा सदा वो, वाकया होता रहा
थी विदेशी ये जमीं कैसे न जाने तुम मिले
एक इत्तेफाक था ये,सामना होता रहा
आस जिसकी हो कभी भी, वो यहां होता नहीं
जिंदगी में बेसबब सब,खामखा होता रहा
रूप उसका सादगी में भी, चमकता यूं रहा
लोग समझे चांद है भ्रम, चांद का होता रहा
चांदनी फीकी दिखी तब, रात नूरानी न थी
बदलियों में चांद जब भी, लापता होता रहा
घर जला के, लूटते हैं, बन रहे हमदर्द जो
बेवजह सारे ठगो का, फायदा होता रहा
शालिनी शर्मा
सबसे महान धर्म कोन सा है दुनिया में,
हमने बताया हिन्दु धर्म ही महान है।
वेद और पुराण इसकी महिमा बताते हमें,
दुनिया को शांति का देता वरदान है।
भाईचारा,सद्भाव,प्रेम,दया,करूणा और,
त्याग,दान बलिदान यही पहचान है।
दीन दुखियों की उसे करनी यहां पे सेवा,
जो भी है समर्थ और जो भी बलवान है।
दोहा मुक्तक
जोरावर व फतेह को, जोड़े हाथ प्रणाम
छोटी सी ही उम्र में, किया बड़ो सा काम
बलिदानी बन देश को, किये समर्पित शीश
प्राण निछावर कर दिये,त्याग किया निष्काम
शालिनी शर्मा
दोहे
तलवारो को छोड़ कर,फूल सभी को बांट,
नफरत जो फैला रही, उन बेलों को छांट|
जहां जिधर भी देखिए, बस दुख के अम्बार,
खुद ही खुद में खोजने, खुशियों के अब द्वार|
शालिनी शर्मा
112 112 112 112 112 112 112 112
प्रभु जी विनती करते हम ये, तम दूर करो सब पीर हरो
मन में उजियार भरो वर दो, उजली सबकी तकदीर करो
पग में जब शूल बबूल मिलें,मत वीर डरो , बस धीर धरो
जब धीरज दीप लगे बुझने, तुम आस दिये रघुबीर भरो
शालिनी शर्मा
112 112 112 112 112 112 112 112
पग में न कभी अब शूल मिले पग तेज धरो मत वीर डरो
प्रभु जी विनती करते हम ये, तम दूर करो सब पीर हरो
मन में उजियार भरो वर दो, उजली सबकी तकदीर करो
जब धीरज दीप लगे बुझने, तुम आस दिये रघुबीर भरो
शालिनी शर्मा
मरने से पहले जीवन में जीना बहुत जरूरी है,
जीवन एक गरल है बेशक, पीना बहुत जरूरी हैं,
आसमान में वही उड़ेगा, जिसके ऊंचे सपने हैं,
कटे परो को साहस से फिर सीना बहुत जरूरी है।
गीत
कान्हा की बाँसुरिया ने मनवा चुराया है
बाँसुरी की धुन पर सबको नचाया है
बाँसुरी की धुन न्यारी
सबको लगे है प्यारी,
सब के दिलों में एक कान्हा ही समाया है
नाचत है नर नारी
गावत बजा के तारी
यमुना के तट जब रास रचाया है
अजब छवि तुम्हारी
तुम हो बाँके बिहारी
तुमने वृन्दावन को पावन बनाया है
शालिनी शर्मा
212 212 212 212
हम उन्हें देखकर क्यों लजाने लगे
क्यों बिना बात ही मुस्कुराने लगे
दिन कभी भी न इतने लगे खुशनुमा
जिंदगी के सभी पल सुहाने लगे
डाल वरमाल अपना बनाया हमें
हर घड़ी होठ कुछ गुनगुनाने लगे
छा गई हैं बहारे चमन खिल उठे
फूल बालों में हम भी सजाने लगे
नैन को डाल कजरा किया सुरमई
नैन मिलते ही नज़रे चुराने लगे
शालिनी शर्मा
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