दुर्मिल सवैया छन्द
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नव वर्ष तुम्हें कर जोड़ करें हम वन्दन और प्रणाम सभी
नवनूतन हर्ष भरो मन में परिपूर्ण करो अब काम सभी
जग में ना रहे दुख,भूख कहीं भर दो घर के धनधाम सभी
सब लोग हँसे,चहकें सबके मन माफिक हों परिणाम सभी
शालिनी शर्मा
नया साल आ गया है फिर से नये स्वप्न कुछ लेकर
भगवन सबको खुशियां देना जाये न गम देकर
नये साल में हँस कर झेलें सारी नयी चुनोती
जीवन नैया पार लगाये खुद सब नैया खेकर
शालिनी शर्मा
जो मेरा नुकसान करें वह भी नुकसान उठाए
मेरे दुश्मन के घर कोई खुशी कभी न आए
मरे मुआं यह पाक तड़प कर मिले ना उसको पानी
मेरे सारे बुरे ग्रहों का साया उस पर छाए
शालिनी शर्मा
नमस्कार दोस्तों
31.12.2023 को पर्पल पैन की आनलाइन काव्य गोष्ठी में प्रतिभाग किया। अगर 2023 की बात करूं तो ये साल मेरे लिए साहित्यिक रूप से बहुत यादगार रहा क्योंकि इस साल कुछ बहुत अच्छी काव्य गोष्ठियों में काव्यपाठ करने का अवसर मिला और बहुत सारे सम्मान भी मिलें अभी आप लोगो के मन तक पहुंचने के लिए काफी महनत करनी पड़ेगी,खुद में बहुत कुछ सुधार करने पड़ेगें पर मुझे विश्वास है कि तमाम साहित्यिक अपरिपक्वता के बावजूद भी आप मुझे स्वीकार करेगें और आशिर्वाद,स्नेह देगें
धन्यवाद
व्यंग रचना
कोष सुरक्षा चोर करें तो काम नही है तालों का
भ्रष्टाचारी करते अब इंसाफ यहां घोटालों का
न्याय के रक्षक ही देते हैं साथ यहां अन्यायी का
करें कसाई यहां प्रबन्धन गायों की गोशालों का
शालिनी शर्मा
व्यंग रचना
ठिठुर ठिठुर कर मर गया वो सर्दी में रात
सड़क किनारे शव मिला बदत्तर थे हालात
नही खबर ये कोन है नही कोई पहचान
कहां से कब आया यहां नही किसी को ज्ञात
शालिनी शर्मा
एक हास्य गीतिका
तेरी क्या है ओकात, जो मुझसे उलझेगा
मैं सुबह हूँ तू है रात, जो मुझसे उलझेगा
तू फटा दूध बेकार,तू दधि फफूंदी दार
मैं कडक चाय प्रख्यात ,जो मुझसे उलझेगा
तू चुभता शूल बबूल,दिखता भूमि की धूल
मैं पुष्प,पत्तियां,पात,जो मुझसे उलझेगा
तू मरघट तू शमशान, तू मुर्दाघर बेजान
मैं जिन्दा दिल जज्बात,जो मुझसे उलझेगा
तू एक चिडचिड़ा व्यक्ति,तुझे हँसी नही भा सकती
मैं खुशियों की सौगात, जो मुझसे उलझेगा
शालिनी शर्मा
मात्रा भार 16+16
सबके मन में बसे हैं राम,
जय जय जय जय जय श्री राम|
सजी अयोध्या ,आओ धाम,
जय जय जय जय जय श्री राम||
कब आयेगें प्रभु धनु धारी,
राह देखते सब नर नारी,
करता नही कोई कुछ काम
जय जय जय जय जय श्री राम|
बेर लिए बैठी है शबरी,
उत्सुक है किष्किंधा नगरी,
इन्तजार में हो गई शाम,
जय जय जय जय जय श्री राम |
घायल देखो पड़ा जटायु
कम दिखती है उसकी आयु
याद करे, तुम्हे करे प्रणाम,
जय जय जय जय जय श्री राम|
सरयू के तट व्यग्र बड़े हैं
भरत पादुका लिए खड़े हैं
हनुमत करते नही विश्राम
जय जय जय जय जय श्री राम
शालिनी शर्मा
गीत
तू भी सुना कुछ नगमें
मैं भी सुनाऊं गीत
तू बन जा मेरा हमदम
मैं तेरे मन का मीत
जो आंख मेरी नम हो,
तू भी ना मुस्कुराएं
मेरी हो चिंता गर कोई
तो तू भी सो ना पाए
आ बान्धे दिल का बंधन
दिल में जगाए प्रीत
तू बन जा मेरा हम-दम
मैं तेरे मन का मीत
ऊंच नींच जाति भाषा
धर्म न विचारे
इंसानियत के संग सभी
रिश्ते हो हमारे
मैं दिल को जीतू तेरे,
तू भी मेरा दिल जीत
तू बन जा मेरा हमदम
मैं तेरे मन का मीत
आ मिल के ऐसी बस्ती
इस शहर में बसाए
बुनियाद में ही जिसकी
रस प्यार का मिलाए
आ त्याग तू भी मैं भी त्यागू
छोटेपन की रीत
तू बन जा मेरा हमदम
मैं तेरे मन का मीत
शालिनी शर्मा
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