दोहे -शालिनी शर्मा

यहां बुलबुले ही सदा,करते हैं अभिमान
मौन नदी कब ये कहे,वो कितनी बलवान








 हँस के सुनाये हमें अपनी वो पीर सदा
दुख भूल हँस के वो मिलता मिलाता है
जीवन को जीता है वो मस्त कलन्दर सा
दुख आये भी तो वो कभी न घबराता है
उसकी यही अदा उसे बनाती है विशेष
जीवन के दुख पे भी हँसता हंसाता है
मरने का उत्सव देखा है किसी ने कभी
पिता के मरण का भी उत्सव मनाता है
                        शालिनी शर्मा

अंग्रेजी में आजकल,होते सारे काम
हैलो,हाय,कहते सभी, कहते नहीं प्रणाम


आँसू देकर वो मुझे,देता रोज रुमाल
फिर कहता बेकार में,मत ये नीर निकाल

जीते जी पूछा नहीं,तूने मेरा हाल
मरने पर भी एक भी,आँसू  नहीं निकाल

मुझे गुरू बस चाहिए,  जो दिखलाए राह
भगवन मिले या न मिले,मुझे नहीं परवाह
                       शालिनी शर्मा










नमस्कार दोस्तों 
कोई सम्मान मुझे मिले और मै आपके साथ सांझा न करूं ऐसा हो ही नहीं सकता मुझे पर्पल पैन संस्था द्वारा हिन्दी सेवी सम्मान प्रदान किया गया है
इसके अलावा एक अन्य काव्य गोष्ठी में प्रतिभाग किया मेरी कोई भी रचना आपके स्नेह के बिना अधूरी है अत:हमेशा की तरह प्यार और आशीर्वाद बनाए रखियेगा




















शालिनी शर्मा की कविता

Comments