शालिनी शर्मा की कविता

नमस्कार दोस्तों फिर हाजिर हूँ अपने दोहो के साथ आभार उनका जो इतने प्यार से काव्यपाठ के लिए बुलाते हैं कुछ छाया चित्र आपके समक्ष प्रस्तुत हैं।


212 212 212 212
बेवफा मैं नही,आजमा लो मुझे
प्यार का गीत हूँ,गुनगुना लो मुझे

फूल बन के सदा मैं महकती रहूँ
राह के,कंटको से बचा लो मुझे

तुम रहो तुम नहीं मैं रहूं मैं नहीं
सांस में,धडकनो में बसा लो मुझे

हाथ को थाम कर साथ हरदम रहो
ख्वाब के गाँव में तुम बुला लो मुझे

कांच के जैसा तन,मन भी है कांच का
टूट जाऊं न गिर के  सम्भालो मुझे

जिन्दगी में मुझे तम सुहाते नहीं
चाँदनी हूँ क़मर से चुरा लो मुझे

तेरा साया हूं मैं , साथ में हूं सदा
हमसफर जिन्दगी का बना लो मुझे

गुनगुनाती  रहूँ ,  गीत  गाती  रहूँ
रूठ कर चुप रहूँ तो मना लो मुझे
                  शालिनी शर्मा










निर्धन को मिलती नहीं,महंगी यहाँ किताब |
महंगेपन पे कर रहा,निर्धन यहाँ इताब ||
                      शालिनी शर्मा


 जब वो खुद भूखा फिरे,कैसे दे वो दान |
किस तरह दुख का तेरे,कोई मिले निदान ||
                    शालिनी शर्मा

मिटा के देखा न मिटी,बिगडी हुई लकीर |
कहा किसी ने बन्द है,हाथो में तकदीर ||
                   शालिनी शर्मा


हमने सच बेचा सदा,बिका न कुछ भी माल |
झूठ बेचते ही हुए,झटपट मालामाल ||
                   शालिनी शर्मा


सारी चीजो के लिए,हम खुद जिम्मेदार! 
 किसी और को दोष दे,ये अनुचित व्यवहार

 निष्ठा सच्ची जानकर, जिसे कहा हर राज,
उसने मारा पीठ पर, गहरा खंजर आज,
वफादारी से उठ गया, अपना तो विश्वास,
जब वह धोखा दे बना, दुश्मन का हमराज ||
                     शालिनी शर्मा

जीवन की जागीर है,साथी तेरा साथ |
विनती है मत छोडना,बीच राह में हाथ ||
                      शालिनी शर्मा



मत  घुटने टू टेक कहीं भी
ठग लेगा प्रत्येक कहीं भी

भाव भरी बातों को सुनकर
मत खा लेना केक कहीं भी

नाप रहे हैं वो फीते से 
मत लम्बी तू फेक कहीं भी

वोटो का है खेल निराला
क्या नेता है नेक कहीं भी

कहने भर को देश हमारा
क्या हम सब हैं एक कहीं भी 

डालेगा मुश्किल में हमको
थोडा भी अविवेक कहीं भी

किस्मत को चमकाने वाला 
कर देगा अभिषेक कहीं भी
                      शालिनी वर्मा

 भीख माँग कर मत करो,गरिमा चकनाचूर |
मत फैलाओ हाथ को,महनत करो हुजूर ||
                       शालिनी शर्मा

दोहा गीतिका
जब उसने मुझसे कहा,घूंघट के पट खोल |
लज्जा से पलके झुकी ,रक्तिम हुए कपोल

प्रथम मिलन की रात थी,शब्द हो गये मौन |
खामोशी के बीच थे,बस धड़कन के बोल ||

दिल की धड़कन बढ गई,महके गज़रे,फूल |
आलिंगन के, प्यार के,थे वो पल अनमोल ||

लजा रही थी चाँदनी,चंदा था मदहोश |
खन खन के संगीत पर,मन था डाँवाडोल ||

अधरों से लाली हटी,मुख से बिन्दी गोल |
हार और श्रृंगार का,रहा न कोई मोल  ||
                    
जीवन के पथ पर मिले,दो राही अन्जान |
जीवन भर को बंध गया,रिश्ता एक सुडौल ||
                        शालिनी शर्मा

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