उनको अपनी पीर बताना अच्छा लगता है |
उनके आगे नीर बहाना अच्छा लगता है |
वह मेरी खामोशी को कुछ कहे बिना सुन लेते हैं |
उनका मुझको धीर बंधाना अच्छा लगता है ||
शालिनी शर्मा

गीतिका
भरी महफिल में उसका सिर झुकाने जा रहे हैं वो |
किया एहसान जो उस पर जताने जा रहे हैं वो ||
बुढ़ापे में अकेला छोड़कर, माता-पिता को क्यों |
पराए देश में पैसा, कमाने जा रहे हैं वो ||
न जाने कौन उनको दे रहा, जलती मशाले ये |
बचाना था जिन्हें घर को, जलाने जा रहे हैं वो ||
करी साजिश जमाने ने, जिन्हें बर्बाद करने की |
उन्हीं के घाव पर मरहम, लगाने जा रहे हैं वो ||
गुलाबों ने कहा रोकर, बचा लो हम प्रसूनो को |
मृदा बंजर बनाकर गुल, खिलाने जा रहे हैं वो ||
परिंदों को किया बेघर, जिन्होंने काट के ड़ाली |
विटप के लाभ दुनिया को, बताने जा रहे हैं वो ||
शालिनी शर्मा
भूखे टपकाते रहे,देख रोटियां लार |
भरे पेट वाले मगर,लूट खा गये यार ||
शालिनी शर्मा
मुझे छोड़कर वो हुआ,किसी और का प्यार |
मेरे जैसा ही मिले,सनम उसे हर बार ||
शालिनी शर्मा
सारी दुनिया चाहती,मुझसे हो पहचान |
मैं जिसको पहचानती,वो मुझसे अन्जान ||
शालिनी शर्मा
नीर पास में था मगर,नही बुझायी आग
क्योंकि उनको भाते हैं,जले हुए ये बाग
शालिनी शर्मा
जब वो कहता ही नहीं,अपने मन की बात
कैसे मैं समझूं भला,बिन बोले जज्बात
लानत हैं जो कर रहे,पशुओं का संहार |
बेजुबान की चींख पर,ज़ालिम को धिक्कार
शालिनी शर्मा
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