नमस्कार मित्रों
मानव कितना स्वार्थी हो गया मूक बेजुबान प्राणियों का आवास खत्म कर रहा है इन मूक प्राणियों का दर्द शब्दो में बयां करने का प्रयास किया है पढ़ कर बताइये कि कितना सच लिख पायी हूँ
वृक्ष हमें देते दवा,देते हैं फल फूल |
पौधो के बिन जिन्दगी,बचे नहीं,मत भूल ||
करो दया हर जीव पर,दो इनको आवास |
इन्हे भी भोजन चाहिए,लगे इन्हे भी प्यास ||
जो विकास के नाम पर,करते लूट खसोट |
जब अनाज होगा नहीं,आयेगें क्या नोट ||
रहोगे तुम क्या खुश कभी ,छिपेगा न ये पाप |
जिनके घर तुम फूंकते, वो सहते हैं ताप ||
बेजुबान कैसे कहें,अपने मन की पीर |
धरती बनती जा रही,मानव की जागीर ||
जंगल काटे जा रहे,कैसा अत्याचार |
मूक प्राणियों के लिए,जीना है दुशवार ||
आँख के आंसू देखिये,सुनिए चीख पुकार |
ये धरती हर जीव की,सबका है अधिकार ||
उजड़े जंगल पूछते,कहो हमारा दोष |
खत्म कर दिये जीव वन,तनिक नहीं है रोष ||
जंगल कटते देखकर,पंछी हुए अधीर |
हिरन,मोर रोकर कहें,अपने मन की पीर ||
इतने प्यारे जीव ये,कैसे किये तबाह |
तुझे मिटा न दे कहीं ,मासूमों की आह ||
मरी पड़ी हैं हिरणियां,बच्चे खोजे मात |
बड़ी भयावह आपदा,किये क्रूर आघात ||
इतने प्यारे जीव ये,कैसे किये तबाह |
तुझे मिटा न दे कहीं ,मासूमों की आह ||
न्याय मांगते फिर रहे,पंछी हाथ, मोर |
निन्दनीय है मामला,हो थूथू हर और ||
मोर कहे रोते हुए,हमें बचा लो आप |
किसी जीव को मारना ,बहुत बड़ा है पाप | |
पेड़ो से क्यों दुश्मनी,बच्चो सा दो प्यार |
बिना वृक्ष जीवन नहीं,वृक्ष सांस आधार
शालिनी शर्मा
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