दोहे पर्यावरण बचाओ

शालिनी शर्मा कीकविता
दोहे
मर्यादित हों सभ्य हों, जिन्हें सत्य से प्यार |
 राजनीति में अब कहां, दिखते ये किरदार ||

धरती तपती आग से, रोज बढ़ रहा ताप |
जंगल कटते देखकर करते जीव विलाप ||

मत काटो इन पेड़ को, यह मेरा आवास, 
हिरण मोर कोयल कहें, कर दो बंद विकास ||

आग उगलती है धरा, कैसा हुआ विकास |
पर्यावरण करे यहां, मानव का उपहास ||
                       शालिनी शर्मा

गज़ल
टूटे हुए ख्वाबों को बचाने के लिए आ |
 बढ़ती हुई दूरी को मिटाने के लिए आ ||

बिन तेरे  जिंदगी में सलीका नहीं रहा |
बिखरे हुए जीवन को सजाने के लिए आ ||

आंसू गिले शिकवे मिटा देते हैं सुना है | 
लग के गले कुछ आंसू बहाने के लिए आ ||
                       
उजड़े हुए गुलशन को बहारों की तलब है |
 तू फूल फिर चमन में खिलाने के लिए आ ||

गुजरे हुए लम्हों को सवारें भला कैसे |
बाकी पलों को हंस के बिताने के लिए आ ||
                        शालिनी शर्मा

1222  1222   1222   1222
सही राहे दिखाने को बचा है कौन अब अपना,
दुखी मन को हँसाने को बचा है कौन अब अपना ||

 पिता बस आप ही थे जो हमारा दुख समझते थे,
 हमें दुख से बचाने को बचा है कौन अब अपना ||

 लगी जब भी हमें ठोकर पिता ने ही उठाया था,
हमारा गम उठाने को बचा है कौन अब अपना ||

 हमारी एक इच्छा पर लुटा देते थे सब कुछ वो,
 हँसी मुख पर सजाने को बचा है कौन अब अपना ||

पकड़ कर उंगलियां चलना सिखाया था कभी हमको,
चुभे कांटे हटाने को बचा है कौन अब अपना ||

हमें चप्पल किताबें और कपड़े सब दिलाते थे 
 हमें कंबल उढ़ाने को बचा है कौन अब अपना ||
                        शालिनी शर्मा


बेटी   तो  बेटी  यहाँ, तनु  हो  या     शाहीन |
बहन,बेटियों की कभी,कहीं न इज्जत छीन ||

आग लगा खुश हो रहे,भारत में गद्दार | |
कैसे सुखी समाज का,सपना हो साकार |                             
जिसने भी काटे शजर,क्षम्य नहीं अपराध |
उगर उगाता तू इन्हे,मिलता लाभ अगाध ||
                      
बिना वृक्ष के कल्पना,जीवन की बेकार |
बिना वृक्ष के किस तरह,मिले अन्न आहार ||

  वृक्ष हमें देते दवा,देते हैं फल फूल |
पौधो के बिन जिन्दगी,बचे नहीं,मत भूल ||


करो दया हर जीव पर,दो इनको आवास |
इन्हे भी भोजन चाहिए,लगे इन्हे भी प्यास ||

जो विकास के नाम पर,करते लूट खसोट |
जब अनाज होगा नहीं,खायेगें क्या नोट ||

वृक्ष हमें देते दवा,देते हैं फल फूल |
पौधो के बिन जिन्दगी,बचेगी न,मत भूल ||
                      
 पेड़ो से क्यों दुश्मनी,बच्चो सा दो प्यार |
बिना वृक्ष जीवन नहीं,वृक्ष सांस आधार
                                 शालिनी शर्मा                          आग लगा खुश हो रहे,भारत में गद्दार | |
कैसे सुखी समाज का,सपना हो साकार |                             
                       शालिनी शर्मा                   
                      


Comments