गजल उमर

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HINDI POEMS
कहने की तो उमर गयी
बस अब तो सुनना बाकी है

बूढ़े सभी दरख्तो का
जड़ से उखड़ना बाकी है

कोई पूछ नही उनकी
एकान्त से मरना बाकी है

किसे फिकर है सुध किसको
सावन से ड़रना बाकी है

सामान पुराना समझ
चमन से बाहर करना बाकी है

जर्जर काया ठूंठ काठ का
चिता सा सजना बाकी है
                    शालिनी शर्मा
     

खामोशी भी कभी कभी वहां बाते करती दिखती है
व्यथा, वेदना ,टीस जहां पर धीरे धीरे रिसती है
मौन है तू भी मौन हूँ मैं भी बीच खामोशी पसरी है
मतभेदो की चक्की में दोनो की खुशियां पिसती है
                                    शालिनी शर्मा


  रगंते मासूम चेहरो की बुझा दी जायेगी
सच्चाई,झूठ की कब्र में दबा दी जायेगी

हलचल नही खबरो में,सन्नाटा क्यों है
फिर किसी अफवाह को हवा दी जायेगी

खामोश संवेदनाओं ने कहा सहम कर
फिर किसी बेगुनाह को सजा दी जायेगी

सियासत की अदा देख ,हैरान है सब
बस्तियां उजालो के लिये जला दी जायेगी
                                 शालिनी शर्मा


वक्त वक्त की बात है वक्त वक्त की बात
समय उन्हे समझा रहा क्या उनकी औकात

समय चक्र के फेर में घिरे हुए हालात
गर्दिश में अपने हुए ,बेगाने बिन बात

समय बदलता है यहां नही रूकते दिन, रात
भला समय को दे सका कोन यहां पर मात

जीवन मानव का मिला ,बहुमूल्य सौगात
बुरा वक्त है ,मारिये मत उस निराश को लात
                               शालिनी शर्मा 


          जिन्दगी जीना आसान नही है
हर वक्त गम पीना आसान नही है
पर ए दोस्त जीना तो पड़ेगा ही
फिर मिले ये नगीना ,आसान नही है
                       

मौत आनी ही है एकदिन उसकी बात ना कर
जिन्दगी जानी है एकदिन इस पे तू ध्यान धर

जिन्दगी जीने का सलीखा सीख,खुशी बहुत कम इसमें होती है
मोत का क्या वो तो हर वक्त हर क्षण कदम कदम पे होती है
                                                                                       शालिनी शर्मा
सब कुछ लुटा दिया कुछ पास नही है
खाली है जिन्दगी, कोई आस नही है

सब खुश है,मगन है हम जी रहे तन्हा
अपने लिये यहां कोई उदास नही है

सब जख्म भर गये,सूखी है आँख भी
किस्सा ये दर्द का कुछ खास नही है

कोई भला उनको बस इतना बता दे
अहसास जिन्दा हैं,हम लाश नही है

हममें भी जान है दिल दुखता है हमारा
अस्तित्व हीन हम तुम्हारे दास नही है
                                   शालिनी शर्मा


जब भी बात हमारे दिल की कोई अपना सुन लेता है
नव प्रकाश ,नव आशाएँ वो जीवन में भर देता है
हमें समझने वाला कोई साथ निभा देता है जब
वो प्रभात की उजली किरणों का सृजन सा कर देता है
                                  शालिनी शर्मा
               इस अन्धेरी रात में भी चांदनी सी है अभी
कुछ अन्धेरे घिर गये पर रोशनी सी है अभी

जुगनू ने सूरज को टक्कर देके उससे ये कहा
देख तेरी रोशनी में कुछ कमी सी है अभी

भूल कर शिकवे सभी वो आ गले से लग गये
पर ना जाने क्यूं लगा के दुश्मनी सी है अभी

जलजले से खाक में मिलने लगी है जिन्दगी
खण्डहरो के बीच में भी जिन्दगी सी है अभी

लाख वो चेहरा छुपाये लाख वो हसंता रहे
उसकी आँखों में कहीं कुछ तो नमी सी है अभी
                                    शालिनी शर्मा
                               
आसमान में सजे सितारे अन्धियारो को खलते हैं
मन्दम दीये चीर के सीना अन्धियारो का,जलते है
ठोकर देने वाले पत्थर ठोकर देते रहते हैं
पर मजबूत इरादे वाले ,सीना ठोक के चलते हैं
                                        शालिनी शर्मा

वो जमाने से यारी निभाता रहा
पर जमाना उसे ही सताता रहा
उसने सीखा गुलाबो से ये बस सबक
संग कांटो के भी वो मुस्कुराता रहा
                          शालिनी शर्मा
हर रिश्ता अनमोल है रिश्तो को ना तोल
बस रिश्तो के बीच में नापतोल कर बोल

कड़वाहट को दूर कर कड़वाहट ना घोल
तू तू मैं मैं का नही सच्चे रिश्तो में मोल

उसकी भी सुन बात को अपना भी दिल खोल
बातचीत से रिश्तो का कम होता है झोल

रिश्ते की गहराई को प्यार से जरा टटोल
सच्चाई से कह सदा बात ना कर गोलमोल
                                  शालिनी शर्मा
 ये सोचते हैं दिल को हम बहलाये किस तरह
वो मांगता है चाँद ,चाँद लाये किस तरह
हर आरजू पूरी नही होती वो समझे ना
बदली में छिपा चाँद बाहर लाये किस तरह
                        शालिनी शर्मा
हम जो खामोश रहेगें  तो हवा बोलेगी
बीमार हुए जो अगर तो दवा बोलेगी

मायूस दिल को समझाया ,कहा उसे
दवा भी बेअसर हुई तो दुआ बोलेगी

जब भी उसे कहा कुछ कड़वा ही कहा
कुछ तो कभी मधुर ये जुबां बोलेगी

जा तू निकल जा घर से मां ने मुझे कहा
इतना ही कह दिया और क्या बोलेगी

आती तो है समझ में उसकी लाचारियां
शर्मिन्दा होगें उस दिन जब अना बोलेगी
                            शालिनी शर्मा

हस्ती मिटा दी उसने कुछ भी नही बकाया
बस कब्र ने ही सबको उसका पता बताया

नफरत थी ये सही है ,पर कर्ज ना चुकाया
कैसी अना ये उसकी, ना कांधा देने आया

पत्थर का तूने कैसे दिल अपना ये बनाया
माँ मर गयी मगर तू परदेस से ना आया

क्या उसके पास पूंजी,क्या उम्र भर कमाया
अन्तिम समय में जिसके नजदीक बस पराया
                                      शालिनी शर्मा

कभी मुड़ के खुद को दुबारा न देखा
एक पल को भी बेसहारा न देखा

कभी जिन्दगी में जो ठोकर मिली
खुद को पल को भी हारा न देखा

सदा हिम्मतो से पतवार खेई
समुन्दर में बेशक किनारा न देखा

जलते चिरागो ने हंस के कहा ये
हमने कभी अंधियारा न देखा
                       शालिनी शर्मा

तेरा जब जिक्र करते है किसी से
बड़ा सुकूं मिलता है हमें ,इसी से


सबको बताया हाले दिल अपना
कह ना सके हम, बस उसी से

दिल में बस जाता है कोई कैसे
बस इक बार की नाजुक हंसी से

खत्म हो जाये इन्तजार के लम्हे 
काश आ जाये सामने वो कहीं से
                          शालिनी शर्मा

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