कैसे दर्द सहेगी माँ और कैसे पिता भुलाएगें
दर्द,कराह और चींख याद कर सोते से उठ जायेगें
हंसी और मुस्कान जला दी और स्वप्न सब स्वाह किये
कब तक ये दुर्दान्त दरिन्दे जीवित इन्हे जलाएगें
क्यों इनके हसंने पर इतनी पाबन्दी हैं बेड़ी हैं
कब समाज के इन कीड़ो से हम छुटकारा पायेगें
कितना है आसान किसी को जीवित से मुर्दा करना
सांसों की कीमत को वहशी कभी समझ क्या पायेगें
इठलाती बलखाती चिड़िया का शिकार कर ड़ाला है
इन बहेलियों के जालो से कैसे चिड़ी बचायेगें
छीन रोशनी, शमा को इक निर्दयी ने पल में बुझा दिया
उस घर का अंधियारा बरसो नही दूर कर पायेगें
क्या पीड़ा संताप वेदना का भी कोई मोल यहां
क्या उनके सरकारी मरहम घांव ठीक कर जायेगें
घृणित सोच ही घृणित कार्य को उकसाती,करवाती है
कब मवाद के घावो को चीरे से साफ करायेगें
शालिनी शर्मा
घी से आग बुझाने का दिखलावा है हर बार
सूखी घांस का ढेर जमा है तीली है तैयार
मतलब की सामग्री मिलते ही विस्फोट करेगें
दूषित अफवाहों से करते मन मस्तिष्क बीमार
सम्मोहन बातो में इनकी, पास है वाक निपुणता
वैमनस्य और घृणा द्वेष का कर देगें विस्तार
इन्हे न भाये भाईचारा शान्ति और सौहार्द
गली मोहल्लों में नफरत की खड़ी करें दीवार
चुपड़ी के चक्कर में हमने सूखे ग्रास गवायें
अच्छे दिन के स्वप्न किसी ने किये नही साकार
प्यार, मौहब्बत और एकता तोड़ के लाभ उठाते
फूट ड़ालना ही हर दल का यहां मुख्य हथियार
स्वार्थ सिद्ध होता दीखे तो देश को आग लगा दें
राजनीति में दफन पड़े है नैतिक मूल्य अपार
शालिनी शर्मा
बन्द करो झूठे वादो से तुम हमको बहलाना
हमें मुफ्त के बिजली पानी के झांसे में लाना
तुम्हे देश के हित से ज्यादा अपना हित ही भाये
पांच बरस में एक बार जब हो चुनाव मत आना
नोट को रद्दी बना ठूंस के रखते हो तहखानो में
बन्द करो रिश्वत,घोटाले भ्रटाचार बढाना
सत्य छिपा कर झूठ बोलना कितना अच्छा आता है
बन्द करो छल,नकली आँसू,जन सेवक कहलाना
तुम रस्सी को सांप और लड्डू को बम कर देते
बन्द करो गिरगिट की माफिक कई रंग दिखलाना
शालिनी शर्मा
कभी जिन्दगी शोला है और कभी जिन्दगी है शबनम
कभी जिन्दगी में खुशिया़ं है़ंं और कभी जीवन में गम
कभी धूप हैं कभी छांव है फूल भी हैं और कांटे भी
कभी जिन्दगी में उजियारा और कभी है गहरा तम
कहीं बाग में पंछी चहके और कहीं पिजंरे में हैं
कहीं पे सूखी धरती व्याकुल और कहीं बारिश रिमझिम
कहीं पे धन की वर्षा होती नहीं कहीं निर्धन पर धन
कहीं प्रेम और अपनापन है और बरसते कहीं पे बम
कहीं पे लूट खसोट मची,कोई कहीं लुटाता अपना सब
कोई ऐश महलो में लेता रोड़़ पे निकले किसी का दम
सबका जीवन अलग यहां पर, सबके सुख और दर्द अलग
सभी भाग्य में जितना है उतना पाते न ज्यादा ,कम
शालिनी शर्मा
खुशहाली की अविरल धारा बहे सदा ये जतन करू
पावन भूमि मेरे देश की ,शीश झुकाऊं नमन करूं
कण कण से मोती उपजाऊं ,कण कण से पाऊं सोना
धन-दौलत, वैभव से पूरित हो हर घर, कोना कोना
देश का हित हो सबसे ऊपर निज स्वार्थो का दमन करूं
खुशहाली की --------------------
कोयल के स्वर सदा सुनाई दे बागो में उपवन में
और जंगल में हो मंगल बेखोफ पशु घूमें वन में
मेरे देश की हवा स्वच्छ हो और न दूषित पवन
पावन भूमि मेरे-------------
मेरे देश की धरती गाती गाथा शौर्य पराक्रम की
इस धरती में खेती होती मेहनत और परिश्रम की
रोज रोज नतमस्तक होकर वन्दन तेरा वतन करू
पावन भूमि मेरे देश की------------
शालिनी शर्माം
भारत मां के उन वीरो को नमन जो घर नही आते हैं
देश की रक्षा में जो अपना सब अर्पण कर जाते हैं
देश सुरक्षा की खातिर ये वीर जान दे देते हैं
नमन उन्हे है जो शहीद हो अपना लहू बहाते हैं
आसमान हो या धरती हो या हो जल की गहराई
जल में,थल मेंऔर वायु में सैनिक शौर्य दिखाते हैं
लेह,सियाचिन के बर्फीले तूफानो को सहते हैं
और तिरंगा बर्फ की ऊंची चोटी पर फहराते हैं
दुश्मन की ललकार पे सीना ताने आगे बढ़ते हैं
नही दिखाते पीठ वो गोली सीने पर ही खाते हैं
अगर आँख दिखलाये दुश्मन, या धोखे से वार करे
तब दुश्मन के घर घुस जाते हैं और उसे मिटाते हैं
शालिनी शर्मा
तुझ पर मैं कुर्बान हूँ, तू मेरी पहचान
देश नमन,वन्दन तुझे,तू मेरा अभिमान
तेरी धरती ने दिया,भोजन,अन्न,अनाज
खेतो में चंहु ओर है, गेहूँ मक्का, धान
सरसो की चूनर पहन,भू ने किया श्रृंगार
फल से, फूलो से सजे, गांवो के बागान
पुरवाई की मस्तियां, बरगद का उल्लास
पीपल पर मस्ती चढ़ी,हर्षित है उद्यान
बंगाली भी है यहां, मद्रासी हैं लोग
रंग बिरंगे भेष में , प्यारा राजस्थान
गंगा,यमुना,सरस्वती, संगम प्रयागराज
नदियों में पावन,नदी,पावन इनका स्नान
सजी धजी बारात है,आयी वधु के द्वार
स्वागत में बारात को,पेश किया है पान
फूलो की वर्षा हुई, वर ने किया प्रवेश
शहनाई की गूंज है,ढ़ोलक के संग गान
भोर तेरी मन भावनी, पंछी उड़े अनन्त
मन्त्रोचारण हैं कहीं, गूंजे कहीं अजान
तूने दुनिया को दिया,प्रेम,सत्य सन्देश
बुद्ध यहीं फैला यहीं, महावीर का ज्ञान
शालिनी शर्मा
सरस्वती वन्दना
सच्ची वाणी भी दे दो
सभी गुण हमें दो
अभी छीन लो मुझसे झूठ और अहंकार
मगर मुझको लोटा दो सद्गुण की दौलत
दू मां तेरी सेवा में जीवन गुजार
मेरे मन को छोटा सा मन्दिर बनाना
हे माँ शारदे अपनी सेवा में लाना
मुझे देना विद्या और बुद्धि का दान
हर दम रहे मेरा माँ में ही ध्यान
ना कोई दुखी हो ना हो कोई बेबस
दुखीजन को मिल जाये खुशिया हजार
सच्ची वाणी ----------------
कभी सत्य कहने से ना हिचकिचायें
सदा प्रेम की ज्योत जग में जगायें
रहें हम विनम्र ,अहिंसक और त्यागी
दरश वीणा वाली दे कर अनुरागी
रहूँ शारदे माँ मैं तेरी उपासक
दे गीतों का पावन, सरस उपहार
सच्ची वाणी ----------------
सत्कर्म ,सत्संग की राह दिखा तू
व्यवधान के कांटे राह से हटा तू
सभी लोग कर्तव्य मन से निभायें
जग सारा ये ज्ञान से जगमगाये
मिट जाये अज्ञानता की लकीरे
खिला फूल खुशियों के ,मिटा अन्धकार
शालिनी शर्मा
पहली बार बार सत्ता की शराब का चखा जो घूंट
एक नेता इसके नशे मे़ ऐसे टुन हैं
आँखों से दिखे ना कुछ,कानो से सुने ना कुछ
ब्रेन की सारी प्रणालियां तो इनकी सुन हैं
कब किसे क्या कहें,और कब क्या करेगें वो
नेता जी की कथनी और करनी भी राज है
पहली बार कुर्सी मिली थी सुख सह न पाये
कोमा में गये तो बन्द आँख और आवाज है
न्यूरो सर्जन को इलाज को बुलाया बोला
इनका तो सारा सिस्टम ही खराब है
इनको जरूरत नही है किसी अंग की
इनका तो हर अंग दे चुका जबाब है
हृदय की जरूरत तो उसको पड़ेगी दोस्त
धमनियों में रक्त का प्रवाह जहां लाल है
पानी में बदल गया सारा लहू लीड़री से
इनके लहू में ना तो जोश ना उबाल है
इनका अलग कार्य करता है टायलिन
देश को चबाने को टपकती लार है
लीवर में भोजन का संग्रह नही होता है
स्विस बैंको में जब ग्लाइकोजन अपार है
किड़नी का इनकी इलाज करवाओगे तो
एक ही रिपोर्ट तुम बार बार पाओगे
यूरीन नही खून जनता का आयेगा
जितनी भी बार डायलिसिस कराओगे
शालिनी शर्मा
गाजियाबाद उप्र
मन की वीणा से वन्दन करे देवी माँ
ज्ञान का कोष भर दे तू हे देवी माँ
श्वेत हंसो सा मन हो कमल सा हो तन
पूजा के थाल जैसा हो जीवन मरण
राह के कष्ट हर ले तू हे देवी माँ
ज्ञान का-------------
गंगाजल जैसी निर्मल हो बोली मेरी
त्याग,सदभावना हो हमजोली मेरी
सेवा का भाव दे तू मुझे देवी माँ
ज्ञान का -------------
द्वेष ,ईर्ष्या का कर दे तू अब नाश माँ
सत्य ,सत्संग पे हो मेरा विश्वास माँ
सद्विचारों का वर दे तू हे देवी माँ
ज्ञान का --------------
हो निरोगी बदन ,खुशियों का हो चमन
नम ना हो गम से मेरे कभी ये नयन
होंसलों के भी पर दे तू हे देवी माँ
ज्ञान का --------------
यश वैभव का वर दे ,सुख समृद्धि दे माँ
आय के स्रोतों में कर दे वृद्धि हे माँ
जग का कल्याण कर दे तू हे देवी माँ
शालिनी शर्मा
सूरज निकलेगा कब रूकता जुगनू के धमकाने से
शेर कहां ड़रने वाले गीदड़ के आँख दिखाने से
जिनको साजिश रचनी रच ले हम नही मिटने वाले हैं
शिलालेख कब मिट सकते अखबारो के छप जाने से
भूमि बंजर है तो क्या इसमें भी फसल उगा देगें
फूल की खुश्बू कम नही होती कांटो के उग जाने से
पंख नोच लो चाहें पंछी पिंजरे में ड़लवा दो तुम
उड़ेगा वो जिसको उड़ना हासिल क्या पंख कटाने से
जिन्हे लक्ष्य पाने की धुन है,वो आगे बढ़ते रहते
नही हटाते कदम वो पीछे बाधाओं के आने से
ज्ञान चेतना की चिंगारी धधक रही शोला बनकर
रोक सकेगा कोन उन्हे अब नयी क्रान्ति लाने से
शालिनी शर्मा
हल हो जाती है दिक्कत तू समाधान की खोज तो कर
हासिल कुछ न हो पायेगा ,बिना परिश्रम और सोकर
आज दूर मन्जिल दिखती है,राहें दिखती हैं मुश्किल
ड़गर सफलता की जाती है असफलताओं से होकर
खेत उन्ही के फसल उगाते,बाग उन्ही के देते फल
खेत में जो पानी देते हैं खेत में बीजो को बोकर
जितनी ठोकर जिसने खायी वो उतना मजबूत बना
गिर कर चल,फिर भाग तेज,ये सीख हमें देती ठोकर
रख सम्भाल कर ये मोती ,तू व्यर्थ इन्हे बरबाद न कर
कमजोरी जाहिर होती मत दिखा किसी को तू रोकर
शालिनी शर्मा
शीश समर्पित किये देश को,रक्त दिया जब भी मांगा
देश की खातिर सूली लटके दुश्मन ने जब भी टांगा
आंधी और तूफान से भी हम लोहा लेते हैं ड़टकर
दुश्मन धूल चाट कर भागा सीमा वो जब भी लांघा
शालिनी शर्मा
हार के बैठे रहने से तो काम नही बन पायेगा
हुआ सवेरा खिड़की खोलो उजियारा छन आयेगा
मार्ग खोजने वालो तुम मत करो प्रतीक्षा सूरज की
अंधियारे में नन्हा दीपक भी गाइड़ बन जायेगा
शालिनी शर्मा
माँ जैसा कोई नही , माँ तो है अनमोल
माँ की ममता को नही,कोई सकता तोल
माँ जीवन की भोर है,माँ है सुख की नींद
माँ जीवन का सार है,माँ मिश्री का घोल
माँ मूरत है प्यार की,बच्चा उसकी जान
बार बार लगती गले, चूमें लाल कपोल
मित्र सखा है दोस्त हैं,समझे सब जज़्बात
हर लेती है पीर सब, मन की खिड़की खोल
माँ का आंचल छांव दे,हिम्मत देता साथ
माँ की कोशिश से रहे,बच्चा स्वस्थ सुडोल
मुस्काए दुख में सदा,खोये कभी न धीर
माँ क्या है गर जानना,माँ का हृदय टटोल
माँ मन्दिर है ईश है, माँ पूजा का थाल
चरणामृत, नैवेद्य माँ, शुभाशीष के बोल
शालिनी शर्मा
तुम अपनी आंखों में कितने ख्वाब सजाये बैठे हो
कितने हो मासूम जो सच से आँख चुराये बैठे हो
यहाँ पे निर्धन को आकाश में उड़़ने का अधिकार नही
और हो तुम जो पंख होंसलों के फैलाये बैठे हो
कदम कदम पर यहाँ तुम्हारे लिए शूल हैं कंकड़ हैं
और तुम हो कि बिना चप्पले मन्जिल पाये बैठे हो
तुमने दुनिया को दिखलाया तुम्हे न कोई रोक सका
तुम सूरज हो चमक से तम को दूर भगाये बैठे हो
सदा चुनोती सही हैं तुमने और बाधाऐं पार करी
हर मुश्किल पे जीत का ध्वज तुम नित फहराये बैठे हो
नही किसी पर किया भरोसा खुद पर ही विश्वास किया
हुए सफल और रूतबा पाया,विश्व झुकाये बैठे हो
शालिनी शर्मा
निजीकरण गर सही है तो सरकार भी निजी बना दो
दस और बीस हजार की तनख्वा पे मंत्री रखवा दो
संसद में ये नेता अपना वेतन खूब बढ़ाते
और कहते हैं कर्मचारियों की पे कम करवा दो
शालिनी शर्मा
नेता बांट रहे हैं हमको अपने मतलब की खातिर
नेता इक अभिशाप बने सरकारी मकतब की खातिर
सरकारी स्कूलो को सरकार बन्द करना चाहती
निर्धन बच्चा प्रश्न चिन्ह है यहां पे हम सब की खातिर
शालिनी शर्मा
आसमान भी रो रहा, धरा दिखी गमगीन
जब शहीद होने चला, पंच तत्व में लीन
सूनी माँ की गोद है, चिता लिटाया लाल
अग्नि दे रहे हैं पिता, हृदयविदारक सीन
शालिनी शर्मा
मैं शराब हूँ मैं मिल बांट के खाना उन्हे सिखाती हूँ
मैं शराब हूँ नोटो की मोटी गड्डी दिलवाती हूँ
टमेरा करिश्मा झूठ को सच और सच को झूठ बना देता
मैं शराब हूंँ राणा के नये वंशज भी बनवाती हूँ
शालिनी शर्मा
बेहिसाब धन वहीं पे निकला जहां भी छापे ड़ाले हैं
नेताओं के वस्त्र श्वेत पर धन्धे सबके काले हैं
भ्रष्टाचारी लूट रहे हैं देश को दोनो हाथो से
जिसका जितना पद ऊंचा है उतने बड़े घोटाले हैं
राजनीति के शकुनि चारो और चाल चलते हैं
अभिमन्यु है देश ,चक्रव्यूह से नेता छलते है
नही सत्य का मोल कोई,छल,झूठ कपट हावी है
नैतिकता,संस्कार के शव लाक्षाग्रह में जलते हैं
शालिनी शर्मा
नमन देश की माटी को, है प्यारा हिन्दुस्तान
इसी हिन्द की माटी से है बस अपनी पहचान
जग में ऊंचा रहे तिरंगा , हवा में हो खुशहाली
रहे हमेशा कायम इसकी आन बान और शान
शालिनी शर्मा
वो आया तो हीरे, मोती, सोंने की आभा छायी
जीवन में तारो ने जैसे धवल चांदनी फैलायी
वो दीपक का उजियारा है लिए रोशनी आया है
उसके आने से आंगन में बहने लगी है पुरवाई
शालिनी शर्मा
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