दोहा गीतिका
मात्राओं का छन्द का,नही जिन्हे है ज्ञान
जो बिल्कुल काबिल नही,वो पाते सम्मान
पैसा दे जो पा रहे,यश,ख्याति,और नाम
मंचो पर कहला रहे,ऐसे भाट महान
पैसा तय करता यहां,कैसा हो व्यवहार
निर्धन को ठोकर मिले,धनवानो को मान
फन,का कौशल शिल्प का,मिले न कुछ भी दाम
असली नकली भिन्न हैं,होते कहां समान
मंच सभी अब कर रहे,कविता का व्यापार
ज्यादा दिन पर कब टिका,जो नकली सामान
छन्द बिना कविता नही,ठोलक बिना न ताल
राग बिना संगीत क्या,सुर के बिन क्या तान
ज्ञान बड़ा अनमोल है,देती ज्ञान किताब
पर मंचो पर अब यहां,पैसा दे पहचान
फूहड़ता को दे रहे,जो कविता का नाम
क्या कविता वो पढ़ रहे,खुद भी हैं अन्जान
शालिनी शर्मा
गीतिका
टूटे हुए सपनो को अपने जोड़ रहे हैं
अन्जान दिशाओं की तरफ दोड़ रहे हैं
उम्मीद का दिया जब बुझता हुआ दिखा
विश्वास का दीपक जला के छोड़ रहे हैं
आँखों से आंसू और हम बहने नही देगें
नयनो का नीर इस लिए निचोड़ रहे हैं
उनको किया है दूर अपने आसपास से
जो आस, मनोबल हमारा तोड़ रहे हैं
किस बात की कलह है क्यों बैर भाव है
बिन बात ही आपस में क्यों सिर फोड़ रहे हैं
कैसे करेगें न्याय की उम्मीद हम वहाँ
सच को जहां पे तोड़़ वो मरोड़़ रहे हैं
शालिनी शर्मा
गिरा कर बूंद पलको से इशारा कर गया मौसम
गमों के दौर में हमसे किनारा कर गया मौसम
जमाने की तरह गर्दिश में वो भी साथ न आया
जरूरत के समय क्यों बे सहारा कर गया मौसम
शालिनी शर्मा
गीतिका
पाल पोस कर कर दिया,जिसने वत्स जवानवृद्ध आश्रम छोड़ कर,भूल गया पहचान
मात पिता के कर्ज को,सकता कोन उतार
मात पिता का तुम कभी,मत करना अपमान
ये बूढ़े माता पिता, क्यों बन जाते बोझ
जो रखते सारी उमर,सब बच्चो का ध्यान
बालक क्यों भूखा रहे,खुद सह ली थी भूख
वही रोटियों के लिए,तरस रहा इन्सान
उन आँखों में नीर है,भीगे जल से नैन
जिसने चाही थी सदा,बच्चो की मुस्कान
बच्चो की किलकारियां,भाता जिनको शोर
उन्हे पुत्र ने कह दिया,खाली करो मकान
दुआ जिन्होने की सदा,बच्चे हों खुशहाल
आज वही गमगीन हो,बांध रहे सामान
आज दुखी हो कर पिता,करते यही सवाल
ऐसी हमने प्रभु कहां,मांगी थी सन्तान
कुंडलिया छन्द
नेता करते हैं यहां , बस अपना उत्थान
जनता को ही देखिए, करने सब बलिदान
करने सब बलिदान, गिला मत करना कोई
चुप बस रहे जुबान , कसम जो आँखे रोई
देकर हमको कोर , चपाती सारी लेता
सूखी खाओ तुम , चुपडी खायेंगे नेता
शालिनी शर्मा
बैसाखी
खेतो में फसलें लहराई
हरियाली हर और है छायी
हर्षित ढोल बजाते लोग
नाच नाच के गाते लोग
हो देखो आयी बैसाखी
हो देखो आयी बैसाखी
गावों में सज गये हैं मेले
बच्चे झूलो पर खुश खेले
कहीं चूड़ियाँ खन खन बोले
गोरी न घूंघट पट खोले
चले मस्त पुरवाई
हो देखो आयी बैसाखी
हो देखो आयी बैसाखी
बैलो की घन्टी टन टन बोले
बैल गाड़ी खाये हिचकोले
मेले में हलचल है भारी
खुश होकर झूमें नर नारी
बांट रहे सब लोग मिठाई
हो देखो आयी बैसाखी
हो देखो आयी बैसाखी
कोयल गीत मधुर गाती है
बुलबुल फुदक के इठलाती है
ट्यूबवैल का बहता पानी
खेतो को दे रहा जवानी
प्यासी भू हर्षायी
हो देखो आयी बैसाखी
हो देखो आयी बैसाखी
शालिनी शर्मा
कोई मेवा खा रहा,कोई जूठा भात
वो कूड़े में फेकते,वो भूखे दिन रात
किरीट सवैया छन्द
211 211 211 211 211 211 211। 211
प्यार किया सब वार दिया कुछ चाह नही तुझको अब पाकर
जीवन के सब भूल गये दुख चैन मिला हमको अब आकर
एक हँसी सब लूट गई धन,नाज करें सबको बतलाकर
ड़ोल रहा घर आंगन में रवि जीवन की इक भोर उगाकर
शालिनी शर्मा
1222 1222 1222 1222
विदा होके हमेशा को,चले हैं दूर आजा रे
दिखावे के ही दो आंसू जनाजे पर बहा जा रे
कभी थोड़ा समय मिल कर बिताते साथ में हम तुम
हुई हैं बन्द ये आँखे,दिया घर में जला जा रे
न देना तू कभी नफरत,कभी हम याद जो आयें
तरसती आँख को आकर अभी मुखड़ा दिखा जा रे
सभी शमशान तक का ही निभाते साथ,तू भी आ
चला आ साथ में कुछ दूर, ये नाता निभा जा रे
लगा दे हाथ, कांधे पर उठा, शमशान तक तो ला
लिटा कर अंतशय्या पर,चिता अग्नि लगा जा रे
हमें आराम मिल जाता,जरा शव से लिपट जाता
चिता भी पूछती है क्यों नही आया बता जा रे
शालिनी शर्मा
गजल
सपनो की बारात सजाना अच्छा है
बुरे नही हालात बताना अच्छा है
रिश्तो को मत झूठ के वस्त्रो से ढापों
झूठ पे पश्चाताप कराना अच्छा है
उम्मीदो के महल हुए खडंहर क्यों कर
इसकी तहकीकात कराना अच्छा है
सदमें में है गुमसुम उसको मत छोड़ो
आंसू की बरसात कराना अच्छा है
बाग बगीचे महकाते है जीवन को
गुलदस्ते में पात सजाना अच्छा है
रुठ गये अपने तो वापस ले लाओ
उन से बिगड़ी बात बनाना अच्छा है
शहर प्रदूषित हुए फैलती बीमारी
शहरों को देहात बनाना अच्छा है
साजिश रचने वालो से दूरी रखना
दुश्मन का आघात बचाना अच्छा है
शालिनी शर्मा
अब हमने जज्बातो को काबू में करना सीख लिया
नही टपकने देते आंसू आँख में भरना सीख लिया
पत्थर दिल बनकर ही हम इस दुनिया में जी पायेगें
कान बन्द, चुप रहते हैं बहस से बचना सीख लिया
शालिनी शर्मा
212 212 212
आधार छन्द-वाचिक महालक्ष्मी
गीतिका
आदमी देख कर दंग है
जिन्दगी का अजब ढंग है
एक हालात कैसे रहे
जिन्दगी के कई रंग है
हारना ही पड़ा देख लो
जब समय से हुई जंग है
राज शाही कभी थी वहां
आज हर ताज बेरंग है
हाल बेहाल हैं रो रहा
हाथ उसका बड़ा तंग है
हार मानी नही, वो लड़ा
होंसलों से भरे अंग हैं
वो बदलता रहेगा सदा
एक मुख, पर कई रंग है
भीड़ में भी अकेला खड़ा
कोन किसके यहां संग है
शालिनी शर्मा
सुन्दर दिखा के स्वप्न फिर छला गया मुझे
मंझदार में वो छोड़ के चला गया मुझे
खुद सेे भी ज्यादा जिसपे यकीं था हमें सदा
छल देके गम की आग में जला गया मुझे
शालिनी शर्मा
कैसे भृष्टाचार रुकेगा और रुकेगी बेईमानी
कैसे कम हो दीन दुखी की आँखों से ये बहता पानी
छल और द्वेष कपट के भावों का परित्याग जरूरी है
परहित और सेवा से खुशियां पाते जो होते हैं दानी
शालिनी शर्मा
कितनी और परीक्षा बाकी बता जिन्दगी तू अब तो हार मान कर बैठ गये हैं,दे कुछ खुशियां तू अब तो
राह में कंटक बहुत अधिक हैं,और है मन्जिल दूर अभी
राह के कंटक दूर हटा कर,सुगम राह कर तू अब त कितनी और परीक्षा बाकी बता जिन्दगी तू अब तो
1222 1222 1222 1222
कभी आंसू तुम्हारी आँख में आने नही देगें
गमों का बोझ ले तुमको कहीं जाने नही देगें
सदा ही सींचते हैं हम धरा सूखी हुई जो है
बगीचे में कभी फूलों को मुरझाने नही देगें
शालिनी क्या
आधार छन्द--बिहारी
221 1221 1221 122
जिसके लिए अपना सभी कुछ वार दिया है
उसने लगा आरोप हमें मार दिया है
सांसे न बची,जीवन न बाकी बचा है
चाहत हमें थी फूल की पर खार दिया है
लाये न सितारे न कभी चाँद ही लाये
बस ख्वाब दिये क्या ये सरकार दिया है
आया न कभी गम में आया न खुशी में
उसने न दुआ दी न उपहार दिया है
हमने न किया शिकवा ना घाव दिखाये
बस जिन्दगी को प्यार किया प्यार दिया है
आसार अभी मौसम के ठीक नही है
धोखा नदी के बीच में हर बार दिया है
बाकी न रहा तेरा अहसान उतारा
जीता हुआ वापस सभी कुछ हार दिया है
शालिनी शर्मा
शर्मिन्दगी चेहरो पर लाते भी नही हैं
अपने बुरे कर्मो पे लजाते भी नही हैं
चादर बेशर्मियों की ओढी है इन्होने
कितने किए घोटाले बताते भी नही हैं
शालिनी शर्मा
गीतिका
भरे पेट वाले ही कमियां थाली में गिनवाते हैं
जिन्हे रोटिया नही मयस्सर वो जूठन भी खाते हैं
एक तरफ तो महफिल में महलों में सजी हैं दीवारे
और कहीं पर सर्द रात में कुछ न तन ढक पाते हैं
ये विकास कुछ का ही होता ह्रास सहे बाकी जनता
भरी तिजोरी वाले बस। सुविधा का लाभ उठाते हैं
कहां हुई है खत्म कुरीति आज भी दूल्हे बिकते हैं
पिता बेटियों की शादी की फिक्र में सो नही पाते हैं
इन्हे देखिये इन आँखों का नीर नही थम पाता है
दहशतगर्द चिराग बुझा गये घर का, ये बतलाते हैं
व्यापारी जो बड़े यहां पर उन्ही का फलता है व्यापार
छोटे व्यापारी तो लागत तक निकाल न पाते हैं
जागीरदारी खत्म हो गई है पर शोषण तो नही रूका
यहां आज भी कुछ अमीर निर्धन के हक खा जाते हैं
शालिनी शर्मा
मिलती है हमको खुशी,जब हो उनसे बात
वो ही सच्चे मीत हैं,जो समझे जज्बात
शालिनी शर्मा
122 122 122 122
तुम्हे छोड़कर अब तो जाना पड़ेगा
जहां दूसरा अब बसाना पड़ेगा
बहुत सह चुके हैं सितम हम तुम्हारे
तुम्हारा भी अब दिल दुखाना पड़ेगा
कहाँ तक जियेगें तुम्हारे सहारे
सभी बोझ खुद ही उठाना पड़ेगा
नही जिन्दगी में गमों के सिवा कुछ
किसी के लिए मुस्कुराना पड़ेगा
नही साथ दोगे अगर तुम हमारा
अकेले समय तब बिताना पड़ेगा
अना वो मेरी रोंदना चाहते हैं
कहें के तुम्हे सिर झुकाना पड़ेगा
मिटा न सकोगे ए हाकिम हमें तुम
हमें तख्त ए ताउस हिलाना पड़ेगा
चढ़े है मुखौटे मुखो पे तुम्हारे
हमें आइना अब दिखाना पड़ेगा
शालिनी शर्मा
मेरी जिन्दगी का उजाला तुम्ही हो
तुम्ही मेरी सांसे तम्ही जिन्दगानी
तुम्ही ने सजायी मेरे घर में खुशियां
तुम्ही फूल ,खुश्बू,तुम्ही ऋतु सुहानी
तुम्हे देख कर मैं हर इक गम भुला दूं
तुम्ही हो लबो पर हंसी की निशानी
न कोई थकावट,न मायूसी कोई
दी ठहरी नदी को तुम्ही ने रवानी
अहसास होने लगे थे जो बूढ़े
तुम्हे देख कर फिर लोटी जवानी
221 2121 1221 212
कोई नही जिसे हम अपना बता सके
आंसू दिखा जिसे हम पीड़ा सुना सके
ये लोग जो अभी तक देते रहे सजा
कैसे दया दिखा कर वो दुख जता सके
शालिनी शर्मा
जिससे दिल की बात कहें अब वो ऐसा हमराज नही
उसके कानो तक जो पहुंचे अब कोई आवाज नही
सोने के पिंजरे को पंछी देख रहा रोते रोते
पंख उसे हासिल हैं लेकिन पंखों में परवाज नही
शालिनी शर्मा
कैसा है संसार,यहां क्यों इतना तेरा मेरा है
क्यों इतना इस मोह माया ने इन्सानों को घेरा है
खाली हाथ यहाँ पर आये,ले भी कुछ न जायेगें
कुछ माटी के अन्दर सबका अन्तिम यहां बसेरा है
शालिनी शर्मा
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